tag:blogger.com,1999:blog-20498071068903791912024-03-13T22:11:17.416-07:00मांदरUnknownnoreply@blogger.comBlogger128125tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-10874441576023453712017-01-31T02:00:00.000-08:002017-07-04T23:19:56.999-07:00आदिवासी हिन्दू नहीं है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div align="center" class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: center;">
<span style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt; text-align: justify;"><span style="color: magenta;"><b>८ फरवरी को म. प्र. के आदिवासी बाहुल्य जिले बैतूल में होने वाले संघ के अखिल भारतीय हिन्दू महासम्मेलन को समाजवादी जन परिषद (सजप) और श्रमिक आदिवासी संगठन (श्रआंस) ने मुख्यत: दलितों और आदिवासीयों को वापस अपनी तरफ खीचने की कयावाद बताते हुए उस पर कुछ सवाल उठाए है| आज जारी प्रेस वक्तव्य में सजप के राष्ट्रीय सचिव अनुराग मोदी और म. प्र. के उपाध्यक्ष राजेंद्र गढ़वाल और श्रआंस के सुमरलाल कोरकू ने कहा, सबसे पहले तो संघ इन दोनों समूहों को लेकर संघ अपनी वैचारिक स्थिती स्पष्ट करे|</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: magenta;"><b><span style="font-size: 12pt;"></span></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: magenta;"><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt;"> आदिवासी हिन्दू नहीं है| हिन्दू मूर्ती पूजक होता है और आदिवासी तो प्रकुती पूजक है: वो पहाड़; जंगल; नदी की पूजा करता है| दूसरा, आदिवासी को हिन्दू समाज का हिस्सा बताने के पहले संघ यह बताए कि वो आदिवासी के विशेष दर्जे को नकारते हुए उसे वनवासी बताने पर क्यों आमादा है? जब्कि, आदिवासी एक विशेष पहचान है| जिसे अंग्रेजों के समय ही, 1930 में, आदिवासी नेता और आई सी एस की नौकरी को त्यागकर ओलम्पिक हॉकी खिलाड़ी बने जयपाल मुंडा ने रखा था| जिसे हमारे सविंधान निर्माताओं ने इसे सविंधान में इसलिए जगह दी और इस विशेष सवैधानिक पहचान के चलते ही आदिवासीयों को ना सिर्फ आरक्षण बल्कि सविंधान में विशेष दर्जा और संरक्षण दिया गया| क्योंकि, बाकी जातियां समय-समय पर इस देश में आई थी, वहीं आदिवासी समूह इसी देश के मूल निवासी है| आदिवासी की इस विशेष पहचान को नकारकर उन्हें सिर्फ जंगल में रहने वाली जाती बताना ना सिर्फ आदिवासी समाज का अपमान है, बल्कि आदिवासी के विशेष दर्जे को छीनने की संघ की साजिश का हिस्सा है| क्योंकि, वनवासी का मतलब है - जंगल में निवास करने वाला कोई भी इन्सान|</span><span style="font-size: 12pt;"></span></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: magenta;"><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt;"> वहीं जबतक संघ मनु-स्मृती में दर्ज वर्णव्यवस्था के आधार पर बनी हिन्दू समाज की व्यवस्था को पूरी तरह से नकारकर, संघ सभी हिन्दू समाज बराबर है , इस व्यवस्था को अंगीकार नहीं करता, तबतक दलितों को हिन्दू बताने थोथा हल्ला है| संघ मनुस्मृती को मानता है, जिसे बाबा साहब आंबेडकर ने नाकारा था| इसलिए संघ में कभी भी किसी दलित को प्रचारक का दर्जा नहीं दिया जाता, या कोई प्रमुख पद नहीं दिया जाता|</span><span style="font-size: 12pt;"></span></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: magenta;"><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt;">हर धर्म को अपना </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt;">–</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt;">अपना सम्मलेन और प्रचार करने का अधिकार है, लेकिन जब उसे एक राजनैतिक पार्टी के एजंडे के तहत किया जाता है, तो फिर उसमें धर्म के असली उपदेश काहीं बहुत पीछे छूट जाते है| इस ना वो धर्म आगे बढ़ता है और ना ही उस धर्म के मानने वाले| हाँ इससे सिर्फ इस तरह के सम्मेलनों से जुडी राजनैतिक पार्टी भर को फायदा होता है|</span><span style="font-size: 12pt;"></span></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt;"><span style="color: magenta;"><b>आज हिन्दू धर्म को संघ की कट्टरता की नहीं बल्कि उदार और साझी परम्परा को समझ मानव समाज को बचाने की जरूरत है ना की वोट के नाम पर उन्हें लड़ाने की|</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: magenta;"><b><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt;">हिन्दू समाज में भक्ती आन्दोलन की उस उदार परम्परा की रही है, जिसे नौवीं सदी में शंकराचार्य ने जिस शुरुवात करी थी, जो बाद में संत तुकाराम, नानक, कबीर, मीराबा से लेकर रसखान कई सूफी संतों ने पोषा| जिस हिन्दू धर्म की परिभाषा स्वामी विवेकानंद से लेकर गांधीजी ने रखी उस सहिषुणता और गंगा-जमनी धर्म को मानने वाले उस हिन्दू धर्म की जरूरत है, जो हमें आपसी लड़ाई भुलाकर विकास के असली रास्ते पर ले जाए|</span><span style="font-size: 12pt;"></span></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt;"><span style="color: magenta;"><b>अनुराग मोदी </b></span></span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-86549490099375177932016-08-06T18:19:00.002-07:002017-01-31T02:00:44.394-08:00एक और सुनामी ( Aloka)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhI75C3eYcqG7rALLHe_yS2DURh6v8Pdt1w3SHQSZqpBHi_jrDhRVYEb8qtCKr8BssZukAMq4cEJ_P30yaoEis0TbOKpZa2_H5IdL8JDD6dWPePuBziRsYXDJdKtREYlK1bRPhbXkpl8eU/s1600/IMG_0001.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><b><img border="0" height="203" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhI75C3eYcqG7rALLHe_yS2DURh6v8Pdt1w3SHQSZqpBHi_jrDhRVYEb8qtCKr8BssZukAMq4cEJ_P30yaoEis0TbOKpZa2_H5IdL8JDD6dWPePuBziRsYXDJdKtREYlK1bRPhbXkpl8eU/s320/IMG_0001.JPG" width="320" /></b></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><b>Add ca</b></td></tr>
</tbody></table>
<div style="text-align: justify;">
<b>एक और सुनामी </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>आलोका </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>उपन्यास - रह गयी दि’ाांए इसी पार, में उपन्यासकार संजीव जी ने भारतीय समाज के कई भाषा संस्कृति के साथ विदे’ाी भाषा के आगमन को तारम्तार से पात्रों को जोड़ा है। बदलती समाजिक, परिवारिक बदलाव में विज्ञान का जर्बस्त भूमिका को हिन्दी उपन्यास में पहली बार पढ़ने को मिला। जड़ी बूटी चिकित्सा, वैद्य और विज्ञान के साथ भारतीय समाज में मानसिकता का बदलाव में विज्ञान की भूमिका को काफी मजबूती से दिखाया है। भारत का समाज में विदे’ाी आगमन के साथ तमाम व्यवस्था को समाज में एक नये लूक को दर्’ााता है। यह उपन्यास कई मायने में महत्वपूर्ण है। छुपती पुरानी सामाजिक व्यवस्था और आगमन में नये वैज्ञानिक व्यवस्था सिर्फ काम काज में ही नहीं पूरे मानव जीवन में यह अपनी स्थान बना चुका है। महिलाओं के वैज्ञानिक सोच ने परिवार की चाहत में बदलाव को दिखाया। उपन्यास पढ़ने के क्रम में लगा की भारत के अन्दर वैज्ञानिक चेतना के साथ वैज्ञानिक परिवर्तन तो आया है। इस परिवर्तन से समाज में नयी समस्या और नये समाधान के कई नये रास्तें में पलायन कर महिलाओं की भूमिका को भूमिका दिखती। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>अलग अलग प्रांतों के अलग अलग सामाजिक परिवे’ा ने खोज की अपनी समझ को साफ तरीके से लिखना और पाठक को बताना एक बड़ी चुनौती है। तकनीकी विज्ञान का विकास ने मानव जीवन के कई खोजो को सरल बनाया हैं। इस सरलता के साथ मानव के जरूरत और बदलेते परिवे’ा को यानि की सेक्स परिवर्तन और समलैगिंगता को कहानी में जगह मिली है। कुछ समय बात तक की कहानीयों में भारत के गांव के साथ परिवार के दृ’य को पढतें सुने को मिलता रहा है। जिसमें कई परम्परा के चादरों से ढका भारतीय समाज की कथा में यह उपन्यास लेखकों के लेखने के कई नये रास्ते खोलते हैं। चल रही समाजिक परिवर्तन की लहर ने कहानी में वो सब कुछ बदल दिया है जहां की राजनीति व्यवस्था ही बदल रहें है। छोटी- छोटी सामाजिक संगठनों के नेताओं की भूमिका और मुद्दों आधारित आंदोलन का स्वरूपों में महिलाओं नेतत्व का उद्भव को लेखक ने जीवन्त रूप में लिखा है।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>इट इज सिम्पली इम्पाॅसिबुल- में ’ााहनवाज को शहनाज तक के बनने प्रक्रिया में विज्ञान एक मात्र कारण नहीं रहा इसमें वहां के राजनीति व्यवस्था से लेकर अपने परिवार बचाने बनाये रखने में कुछ हद तक जिम्मेदार रहा है। ‘‘ एक छोटा सा अं’ा में’’ कटहल के काये- से- ठूंसे बदबू और सीलन भरे मकानों के बीच फंसा एक अदद मकान। हजार परिवारों के दलदल से उभरता छह जवान होती बेटियों और एक जवान बेटे ’ााहनवाज वाले जाकिर का एक अदद परिवार।पार्टी का कार्यकर्ता बनकर ’ााहनवाज को एक नौकरी हासिल हुई- सम्प्लायमेंट एक्सचेंज की क्लर्की। जाकिर- परिवार के दिन अब दलदल से निकलने वाले थे कि वह दूसरे दलदल में जा फंसे। ’ााहनवाज औरतों- सी हरकतें करने लगा। आरिफ ने यह समस्या जिम को बतायी औ रजिम से ’ााहनवाज को अपने कंप्युटर में डाल दिया। ’ााहनवाज को इस जिन्न से कौन छुडाएगा। बहुत पीर- दरगाह की बेटियों से यह खबर अम्मी तक अम्मी से अब्बा तक, सबसे पहले सझली बेटी कुलसूम ने देखा, फिर उसने अपनी बाकी बहनों के दिखाया, बहनों ने अपनी अम्मी को, किवाड़ की झिर्री पर चस्पा हो गई सात जोडी आंखे! अंदर ’ााहनवाज सलवार जंफर- चूड़ी, बिन्दी में औरत बना आलमारी के ’ाी’ो में अपने को निहार रहा था। अपने सीने को मसल रहा था, मुस्करा रहा था।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>बंदिनी- लड़कियों का पलायन काम की तला’ा और प्राकृतिक द्वारा दिया मछली के उत्पादन में श्रमिकों का आना जाना गरीबी और पूंजी का अभाव से कई परिवार अपने जरूरत को पूरा करने जैसे कामों में लड़कियां और औरतों का पलायन काम की खोज और बेरोजगारी को दिखाता ये कहानी में पलायन कर जाने के बाद भी वहां किस हाल में लडकियां रहती है की व्यवस्था को दिखाता है। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>एक और सूनामी- में मछली के जूडे संगठनों के साथ एनजीओ की भूमिका को रेखाकिंत किया है कि समुद्र एक डस्टबिन हो गया है। कोस्टल रेगुलेटरी जोन पांच सौ किलो मीटर का सागर तट से पांच सौ मीटर के अंदर आप कोई निर्माण कार्य नहीं कर सकते लेकिन इसका उल्लधंन सर्वत्र है, खुद सरकार के हाथों ही दृ। आप यहांही देख लें, हारबर से भीमली तक विकास, आधुनिकीकरण और सुंदरीकरण के नाम पर सरकार ने जगह-जगह वायोलेट किया है। दूसरे, स्टील प्लांट, विद्युत उत्पादन और दूसरी इंडस्टीर का कचरा कहां गिरता तो समुद्र में पूरे ‘’ाहर का कचरा यहां कहां गिरेगा तो समुद्र में! मोटर निर्माण उद्योग, पर्यटन उद्योग, फिल्म उद्योग, आ रहे हैं। इनका कचरा भी समुद्र में ही आयेगा। मछलियां जिंदा रहें तो कैसे? मछलियां मरेंगी तो मछुआरे मरेंगे। वे भाग रहे हैं। अंडमान, भाग रहे है पुरी भाग रहे है। दूसरी जगह... से समुद्र बचाओं। समुद्र बचा तो मछलियां बचेंगी, मछलियां बचेंगी तो मछुआरे बचेंगे। जैसे घटना पर आंदोलन की औरतों की भूमिका और आंदोलन का मछुवाओं की आरपार की लडाई को इस किताब में जगह दिये है। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>302 पेज की यह उपन्यास ने भारत के अलग अलग प्रांतों के घटनाक्रम के साथ हर एक भूमिका को आंखों के सामने ऐसा उतारा कि उपन्यास पर सोचने को विव’ा करती है। यह उपन्यास की दुनिया का सुनामी ही तो है। मेरे जन्म दिन में रणेन्द्र जी ने संजीव जी के उपन्यास को पढने के यह किताब मुझे दिये। इसके लिए उपन्यासकार और रणेन्द्रे जी दोनों को धन्यवाद।। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-19608423484136107912016-08-06T18:19:00.001-07:002016-08-06T18:23:25.061-07:00एक और सुनामी ( Aloka)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhI75C3eYcqG7rALLHe_yS2DURh6v8Pdt1w3SHQSZqpBHi_jrDhRVYEb8qtCKr8BssZukAMq4cEJ_P30yaoEis0TbOKpZa2_H5IdL8JDD6dWPePuBziRsYXDJdKtREYlK1bRPhbXkpl8eU/s1600/IMG_0001.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><b><img border="0" height="203" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhI75C3eYcqG7rALLHe_yS2DURh6v8Pdt1w3SHQSZqpBHi_jrDhRVYEb8qtCKr8BssZukAMq4cEJ_P30yaoEis0TbOKpZa2_H5IdL8JDD6dWPePuBziRsYXDJdKtREYlK1bRPhbXkpl8eU/s320/IMG_0001.JPG" width="320" /></b></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><b>Add ca</b></td></tr>
</tbody></table>
<div style="text-align: justify;">
<b>एक और सुनामी </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>आलोका </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>उपन्यास - रह गयी दि’ाांए इसी पार, में उपन्यासकार संजीव जी ने भारतीय समाज के कई भाषा संस्कृति के साथ विदे’ाी भाषा के आगमन को तारम्तार से पात्रों को जोड़ा है। बदलती समाजिक, परिवारिक बदलाव में विज्ञान का जर्बस्त भूमिका को हिन्दी उपन्यास में पहली बार पढ़ने को मिला। जड़ी बूटी चिकित्सा, वैद्य और विज्ञान के साथ भारतीय समाज में मानसिकता का बदलाव में विज्ञान की भूमिका को काफी मजबूती से दिखाया है। भारत का समाज में विदे’ाी आगमन के साथ तमाम व्यवस्था को समाज में एक नये लूक को दर्’ााता है। यह उपन्यास कई मायने में महत्वपूर्ण है। छुपती पुरानी सामाजिक व्यवस्था और आगमन में नये वैज्ञानिक व्यवस्था सिर्फ काम काज में ही नहीं पूरे मानव जीवन में यह अपनी स्थान बना चुका है। महिलाओं के वैज्ञानिक सोच ने परिवार की चाहत में बदलाव को दिखाया। उपन्यास पढ़ने के क्रम में लगा की भारत के अन्दर वैज्ञानिक चेतना के साथ वैज्ञानिक परिवर्तन तो आया है। इस परिवर्तन से समाज में नयी समस्या और नये समाधान के कई नये रास्तें में पलायन कर महिलाओं की भूमिका को भूमिका दिखती। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>अलग अलग प्रांतों के अलग अलग सामाजिक परिवे’ा ने खोज की अपनी समझ को साफ तरीके से लिखना और पाठक को बताना एक बड़ी चुनौती है। तकनीकी विज्ञान का विकास ने मानव जीवन के कई खोजो को सरल बनाया हैं। इस सरलता के साथ मानव के जरूरत और बदलेते परिवे’ा को यानि की सेक्स परिवर्तन और समलैगिंगता को कहानी में जगह मिली है। कुछ समय बात तक की कहानीयों में भारत के गांव के साथ परिवार के दृ’य को पढतें सुने को मिलता रहा है। जिसमें कई परम्परा के चादरों से ढका भारतीय समाज की कथा में यह उपन्यास लेखकों के लेखने के कई नये रास्ते खोलते हैं। चल रही समाजिक परिवर्तन की लहर ने कहानी में वो सब कुछ बदल दिया है जहां की राजनीति व्यवस्था ही बदल रहें है। छोटी- छोटी सामाजिक संगठनों के नेताओं की भूमिका और मुद्दों आधारित आंदोलन का स्वरूपों में महिलाओं नेतत्व का उद्भव को लेखक ने जीवन्त रूप में लिखा है।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>इट इज सिम्पली इम्पाॅसिबुल- में ’ााहनवाज को शहनाज तक के बनने प्रक्रिया में विज्ञान एक मात्र कारण नहीं रहा इसमें वहां के राजनीति व्यवस्था से लेकर अपने परिवार बचाने बनाये रखने में कुछ हद तक जिम्मेदार रहा है। ‘‘ एक छोटा सा अं’ा में’’ कटहल के काये- से- ठूंसे बदबू और सीलन भरे मकानों के बीच फंसा एक अदद मकान। हजार परिवारों के दलदल से उभरता छह जवान होती बेटियों और एक जवान बेटे ’ााहनवाज वाले जाकिर का एक अदद परिवार।पार्टी का कार्यकर्ता बनकर ’ााहनवाज को एक नौकरी हासिल हुई- सम्प्लायमेंट एक्सचेंज की क्लर्की। जाकिर- परिवार के दिन अब दलदल से निकलने वाले थे कि वह दूसरे दलदल में जा फंसे। ’ााहनवाज औरतों- सी हरकतें करने लगा। आरिफ ने यह समस्या जिम को बतायी औ रजिम से ’ााहनवाज को अपने कंप्युटर में डाल दिया। ’ााहनवाज को इस जिन्न से कौन छुडाएगा। बहुत पीर- दरगाह की बेटियों से यह खबर अम्मी तक अम्मी से अब्बा तक, सबसे पहले सझली बेटी कुलसूम ने देखा, फिर उसने अपनी बाकी बहनों के दिखाया, बहनों ने अपनी अम्मी को, किवाड़ की झिर्री पर चस्पा हो गई सात जोडी आंखे! अंदर ’ााहनवाज सलवार जंफर- चूड़ी, बिन्दी में औरत बना आलमारी के ’ाी’ो में अपने को निहार रहा था। अपने सीने को मसल रहा था, मुस्करा रहा था।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>बंदिनी- लड़कियों का पलायन काम की तला’ा और प्राकृतिक द्वारा दिया मछली के उत्पादन में श्रमिकों का आना जाना गरीबी और पूंजी का अभाव से कई परिवार अपने जरूरत को पूरा करने जैसे कामों में लड़कियां और औरतों का पलायन काम की खोज और बेरोजगारी को दिखाता ये कहानी में पलायन कर जाने के बाद भी वहां किस हाल में लडकियां रहती है की व्यवस्था को दिखाता है। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>एक और सूनामी- में मछली के जूडे संगठनों के साथ एनजीओ की भूमिका को रेखाकिंत किया है कि समुद्र एक डस्टबिन हो गया है। कोस्टल रेगुलेटरी जोन पांच सौ किलो मीटर का सागर तट से पांच सौ मीटर के अंदर आप कोई निर्माण कार्य नहीं कर सकते लेकिन इसका उल्लधंन सर्वत्र है, खुद सरकार के हाथों ही दृ। आप यहांही देख लें, हारबर से भीमली तक विकास, आधुनिकीकरण और सुंदरीकरण के नाम पर सरकार ने जगह-जगह वायोलेट किया है। दूसरे, स्टील प्लांट, विद्युत उत्पादन और दूसरी इंडस्टीर का कचरा कहां गिरता तो समुद्र में पूरे ‘’ाहर का कचरा यहां कहां गिरेगा तो समुद्र में! मोटर निर्माण उद्योग, पर्यटन उद्योग, फिल्म उद्योग, आ रहे हैं। इनका कचरा भी समुद्र में ही आयेगा। मछलियां जिंदा रहें तो कैसे? मछलियां मरेंगी तो मछुआरे मरेंगे। वे भाग रहे हैं। अंडमान, भाग रहे है पुरी भाग रहे है। दूसरी जगह... से समुद्र बचाओं। समुद्र बचा तो मछलियां बचेंगी, मछलियां बचेंगी तो मछुआरे बचेंगे। जैसे घटना पर आंदोलन की औरतों की भूमिका और आंदोलन का मछुवाओं की आरपार की लडाई को इस किताब में जगह दिये है। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>302 पेज की यह उपन्यास ने भारत के अलग अलग प्रांतों के घटनाक्रम के साथ हर एक भूमिका को आंखों के सामने ऐसा उतारा कि उपन्यास पर सोचने को विव’ा करती है। यह उपन्यास की दुनिया का सुनामी ही तो है। मेरे जन्म दिन में रणेन्द्र जी ने संजीव जी के उपन्यास को पढने के यह किताब मुझे दिये। इसके लिए उपन्यासकार और रणेन्द्रे जी दोनों को धन्यवाद।। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-74357881763832106012016-04-18T22:06:00.003-07:002016-04-18T22:06:48.332-07:00Himanshu Kumar लिखते हैं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; text-align: justify;">
-------------</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px; text-align: justify;">
छत्तीसगढ में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों पर किये गये अत्याचारों के हज़ारों मामलों में से कुछ मामलों को हमने कोर्ट में उठाया . <span style="line-height: 19.32px;">हमारे द्वारा उठाया गया एक भी मामला आज तक झूठा नहीं पाया गया है . </span><span style="line-height: 19.32px;">सरकार ने इन मामलों में जो कुछ भी बोला है वो सब झूठ साबित हो चुका है .</span><span style="line-height: 19.32px;">अगर हमारे द्वारा उठाये गये सारे मामलों की जांच हो जाए तो रमन सिंह जेल में पहुँच जाएगा .</span><span style="line-height: 19.32px;">लेकिन भारत में आदिवासी राजनैतिक तौर पर मज़बूत नहीं हैं .इनकी संख्या बिखरी हुई है .</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px; text-align: justify;">
आदिवासियों का नेतृत्व खुद को मिले हुए राजनैतिक पद को सरकार की कृपा मानता है इसलिये आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों के मामले में चुप रहता है .<span style="line-height: 19.32px;">मैं सैंकडों आदिवासी नेताओं को जानता हूं जो इस पूरे आदिवासी विनाश को चुपचाप देख रहे हैं </span><span style="line-height: 19.32px;">मैं अपनी बात को साबित करने के लिये तीन मामले सामने रख रहा हूं</span></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px; text-align: justify;">
पहला मामला माटवाडा का है . इस मामले में पुलिस ने सलवा जुडूम कैम्प में रहने वाले तीन आदिवासियों की चाकू से आँखें निकाल ली थीं और बाद में पत्थर से उनके सिर कुचल कर उन्हें मार डाला था . <span style="line-height: 19.32px;">इस मामले को हम हाई कोर्ट में ले गये . इस मामले की जांच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने की . मानवाधिकार आयोग ने हमारे आरोपों को सही माना . इस मामले में तीन पुलिस वाले अब जेल में हैं .</span></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px; text-align: justify;">
दूसरा मामला सिंगारम का है . इस मामले में पुलिस ने उन्नीस आदिवासी लड़के लड़कियों को घरों से खींच कर बाहर निकाला और फिर उन्हें गोली मार दी . लड़कियों के साथ बलात्कार कर के उन्हें चाकू घोंप कर मारा गया था . <span style="line-height: 19.32px;">इस मामले को भी हम हाई कोर्ट में ले कर गये . मामला अभी भी कोर्ट में लटका हुआ है .</span></div>
</div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-37241802237702566362016-04-18T07:37:00.004-07:002016-04-18T07:37:48.787-07:00खरीदनेवाला मालामाल, पहाड़ के मालिक बन रहे कंगाल तीन से आठ हजार एकड़ बिक रहा पहाड़ (Jiveshranjan Singh)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">- आठ हजार रुपये भी नहीं मिलते एक साथ</b></div>
<b><div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">-दौड़ाते हैं दबंग, देते हैं जेल भेजने की धमकी</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">-बिचौलियों के हाथों लुट रहे सीधे-साधे पहाड़िया</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">-पहले थे जमीन के मालिक, अब करते हैं क्रसर पर मजदूरी</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">-पासबुक भी लीजधारकों ने रख लिया है</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">-कैसे होगी पर्यावरण की सुरक्षा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">-कैसे बचेंगे आदिम जनजाति</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">-स्थानीय राजनीतिज्ञों ने भी साध रही है चुप्पी</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">-सरकार को भी लगा रहे चूना</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">साहिबगंज से लौट कर जीवेश</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">साहिबगंज जिले में महज तीन से आठ हजार रुपये में एक एकड़ पहाड़ लीज पर उपलब्ध है. यह पैसे भी एक साथ नहीं देने पर कोई पूछनेवाला भी नहीं. इस कारण साहिबगंज जिले के अधिकतर पहाड़ बदसूरत हो रहे. सैकड़ों की संख्या में जेसीबी और अन्य अत्याधुनिक मशीनें व भारी संख्या में लगे वैध-अवैध क्रसर पहाड़ को चकनाचूर कर रहे. लगातार चलती अॉटोमेटिक व सेमिअॉटोमेटिक मशीनों के कारण उड़ रहे धूल-कण व तेज आवाज से आसपास की खेती मारी जा रही. पेड़-पौधे सूख अौर फलरहित हो रहे, तो दूसरी अोर आसपास के ग्रामीण गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं. जिले के अधिकतर पहाड़ों का मालिकाना हक अंग्रेजों के जमाने से आदिम जनजाति पहाड़िया के पास है. सरकार की काेशिशों के बाद भी ये पहाड़ पर ही रहते हैं. इनमें अधिकतर के निरक्षर अौर सीधे होने का फायदा दबंगों ने बिचौलियों के माध्यम से उठाया है. नशा अौर दबाव के बल पर पहले दबंग पहाड़ का लीज करा लेते हैं. फिर शुरू होता अौर गरीब पहाड़िया का शोषण. घर, पहाड़ व इज्जत गंवा चुके पहाड़िया सुधार चाहते हैं, पर यह आसान नहीं. इस कारण वो परेशान हैं. जानकारों की माने, तो आज राज्य के कई प्रभावशाली लोगों ने भी यहां लीज ले रखा है. पहाड़िया परेशान हैं, पहाड़ लीज पर नहीं देते, तो दबंगों व बिचौलियों का कहर अौर दे देते हैं, तो सब कुछ नष्ट हो जाने का खतरा. अदरो पहाड़ के प्रधान बोबे पहाड़िया कहते हैं कि अब तो फंस गये. कोई बचानेवाला भी नहीं, तो बेलबदरी पहाड़ के रूपा पहाड़िया कहते हैं कि अब तो ठगा गये, अब मरने के सिवा कोई रास्ता नहीं. यहां के लीजधारक इतने पावरफुल हैं कि कई अधिकारियों का तबादला माह भर में इसलिए हो गया, क्योंकि उन्होंने अवैध क्रसरों व उत्खनन पर लगाम लगाने की कोशिश की थी. हाल ही में वर्तमान एसडीअो (ट्रेनी आइएएस) मृत्युजय वर्णवाल ने भी क्रसरों पर इस कारण रोक लगायी कि वो सभी अहर्ताअों को पूरा नहीं करते, पर चंद दिन के अंदर उन्हें पीछे हटना पड़ा. भूगर्भशास्त्री डॉ रणजीत कुमार सिंह कहते हैं साहिबगंज को दूसरा केदारनाथ बनाने में लगे हैं सब. जिले के चिकित्सक डॉ एके झा कहते हैं कि प्रदूषण के कारण यहां बीमारों की संख्या बढ़ी है. दूसरी अोर जिला प्रशासन भी इस मामले से अनजान नहीं, जिलाधिकारी उमेश प्रसाद सिंह कहते हैं कि उन्होंने पहाड़िया लोगों की स्थिति सुधारने की काफी कोशिश की है. उनके प्रयास से ही अब लीज की राशि तीन से आठ हजार रुपये प्रति साल हुई है. हर तीन वर्ष पर लीज के नवीकरण की भी सुविधा होगी. अन्य सुविधाओं को भी दिलवाने की बात वह कहते हैं. पर हालात इससे इतर हैं. जमीन के मालिक पहाड़िया अब क्रसरों पर काम कर जी रहे. जल्द इस पर काबू नहीं पाया गया, तो वो दिन दूर नहीं जब न पहाड़ रहेंगे अौर न पहाड़िया.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">.....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">बोरियो प्रखंड के लगभग सभी पहाड़ लीज पर</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">अकेले बोरियो प्रखंड में 50 से 60 क्रसर मशीनें चल रहीं. यहां के पहाड़ों में करम पहाड़, घोघी पहाड़, लोहंडा माको, तुभीटोला पहाड़, अठरो संथाली पहाड़, अठरो पहाड़ (पहाड़िया), पगाड़ो, तेतरिया, अंबाडीहा, चमठी, शहरबेड़ा, मोतीझरना पहाड़ (सकरी के पास), खुजली झरना पहाड़ (लोहंडा के पास), झिगानी पहाड़ व गदवा पहाड़ के अधिकतर हिस्से लीज पर लिये जा चुके हैं. कुछ लोगों ने अपने हिस्से लीज पर नहीं दिये हैं, पर वहां धूल के कारण वो कुछ कर भी नहीं सकते. </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">.....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">क्यों है पहाड़ पर पहाड़िया का अधिकार </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">वरीय अधिवक्ता गौतम प्रसाद सिंह के अनुसार अंग्रेजों ने पहाड़ पर रहनेवाले पहाड़ियों के लिए जीविकोपार्जन के लिए पहाड़ों की रैयती उनको दे दी थी. उसी समय से साहिबगंज की पहाड़िया जनजाति वहां के पहाड़ों के रैयत हैं. पर पहाड़ के अंदर के चीजों (खनिज, पत्थर आदि) पर सरकार का अधिकार है. इस कारण पहाड़ों का लीज पहले उसके रैयत (पहाड़िया) से लेते हैं व्यवसायी. अंदर से पत्थर निकालने के लिए सरकार से भी करार करते हैं. जानकारों के अनुसार पहाड़िया से जमीन लेने के कारण सरकार से होनेवाले लीज में घपला होते रहता है.</b></div>
</b><br />
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px; text-align: justify;">
<b>कैसे ठगे जाते हैं पहाड़िया</b></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px; margin-top: 6px;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">जानकारों के अनुसार बाहर से आये व्यवसायी पहले स्थानीय बिचौलियों को अपने से मिलाते हैं अौर फिर उनके माध्यम से वैसे पहाड़िया परिवार को चिह्नित किया जाता है, जिनकी जमीन पहाड़ पर है. बिचौलिया झूठ-सच बातें समझाते हैं. नशे का भी शिकार बना दिया जाता है सीधे-साधे पहाड़िया लोगों को. यह भी बताते हैं कि पहाड़ पर कुछ होता नहीं, लीज पर देने से पैसे मिलेंगे. पहले किसी एक का लेने के बाद दूसरे पर दबाव बनाया जाता है. कई जगह तो जितनी जमीन लीज पर ली जाती है, उससे ज्यादा में उत्खनन किया जाता है. रोकने या कुछ कहने पर धमकी भी दी जाती है. बड़ी बात यह कि अधिकतर लोग उस व्यक्ति को नहीं जानते जिसे उन्होंने अपनी जमीन लीज पर दी है.</b></div>
<b><div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">कहते हैं पीड़ित</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">अब मरना ही होगा : रूपा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">बलबदरी पहाड़ पर रूपा पहाड़िया का घर है. उनके पास पहाड़ पर 107 बिगहा, 18 कट्ठा 14 धूर जमीन है. इन्होंने झांसे में आकर लगभग 10 बिगहा जमीन माइनिंग के लिए दे दी. आज बेहाल हैं रूपा पहाड़िया. उनको एक बेटा अौर एक बेटी है. दोनों क्रसर पर मजदूरी करते हैं. घर में पत्नी के साथ अकेले रहते हैं रूपा पहाड़िया. कहते हैं कि आठ हजार रुपये एकड़ प्रति वर्ष के हिसाब से लीज दिया था, पर पैसे एक साथ नहीं मिलते. बार-बार कहने पर कुछ-कुछ पैसे कर देते हैं लीज लेनेवाले. शेष जमीन भी बेकार हो गयी. फसल नहीं हो पाता. आम-जामुन के पेड़ भी बेकार हो गये. कहते हैं कि उनकी सुध लेनेवाला कोई नहीं. लीज लेनेवाले एक एकड़ लिखवाते हैं अौर उससे ज्यादा में उत्खनन करते हैं. कभी अपनी खेती थी, अब दूसरे का खेत बंटाई पर बोते हैं. कहते हैं कि उनके पिता केशव पहाड़िया ने पहले 1200 रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से लीज पर दिया था. इस वर्ष उन्होंने सात साल के लीज पर दिया है. क्यों लीज पर देते हैं, पूछने पर कहते हैं कि अब तो सब बरबाद हो गया, नहीं देंगे तो भी तो कुछ पैदा नहीं होगा. बीमार रूपा को इस बात का भी रोष है कि सरकारी अस्पताल में उन्हें दवा नहीं मिलती. कहा जाता है कि बाहर से खरीद लो. पासबुक दिखाने की बात कहने पर कहते हैं कि वो तो लीजधारक ने ही रख लिया है. अब उन्हें पता भी नहीं चलता कि कितने पैसे उनके खाते में आये.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">पैसे मांगे तो जेल भेज दिया : सुकरा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">रूपा पहाड़िया का बेटा है सुकरा पहाड़िया. कहता है कि पैसे नहीं देने पर जब वह शिकायत करने गया, तो उसकी नहीं सुनी गयी. इस पर उसने काम रोक दिया, तो उस पर तरह-तरह का आरोप लगा कर उसे जेल भेज दिया गया. आर्मस एक्ट सहित कई मामले उस पर लगा कर उसे पिता के साथ जेल भेज दिया गया. नाराज सुकरा कहता है कि अब तो पैसे मांगना भी गुनाह है.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">पहाड़ देकर खुश नहीं : बोबे पहाड़िया</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">बोड़ियो प्रखंड के बड़ा तोफिर पंचायत का गांव है अदरो. पहाड़िया बहुल इस गांव में 33 घर हैं. यहां के 12 लोगों ने लीज पर पहाड़ दिया है. अन्य इलाको की अपेक्षा साक्षर इस गांव को तत्कालीन उपायुक्त के रविकुमार ने गोद भी लिया था. वर्तमान उपायुक्त उमेश प्रसाद सिंह भी गांव में गये थे अौर वहां कंबल बांटा था. यहां के पहाड़िया नशा नहीं करते. यहां के प्रधान बोबे पहाड़िया के अनुसार पहाड़ पर खेती करने में दिक्कत होती थी. वन विभाग ने भी वर्षों पहले पौधरोपण किया था, पर कोई फायदा नहीं हुआ. फिर बिचौलियों ने समझाया अौर महज पांच हजार सालाना पर इन्होंने दो एकड़ जमीन लीज पर दे दिया. किसको दिया पूछने पर कहते हैं कि किसी वकील साहब को दिया है. पैसे मिलते हैं या नहीं पूछने पर कहते हैं कि काफी दिक्कत है. एक साथ पांच हजार नहीं मिलते. कभी-कभी कुछ कुछ पैसे दे कर या होली-दिवाली में दो-चार सौ रुपये देकर पांच हजार पूरे कर दिये जाते हैं. </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">.....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">काश लीज कैंसिल करा सकता : रामा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">अदरो के ही रामा पहाड़िया ने मैट्रिक अौर आइटीआइ (इलेक्ट्रीकल) भी किया है. 11 लोगों ने इनकी 29 बिगहा जमीन लीज पर ली है. वो 12000 हजार रुपये सालाना देते हैं, पर रामा को कभी भी एकमुश्त राशि नहीं मिली. कहते हैं कि घर में कोई बीमार भी हो जाये, तो लीज लेनेवाले लोग पैसे नहीं देते. लीज लेने से पहले प्यार करते हैं अौर लेने के बाद दुत्कारते हैं. व्यवस्था से नाराज रामा ने कहा कि वह लीज कैंसिल करना चाहते हैं, पर नहीं कर पाते. उनके पास पैसे नहीं हैं. लोन के लिए काफी कोशिश की, राष्ट्रपति तक गये, पर कुछ नहीं मिला. कहते हैं कि कोई एक लाख रुपये दे दे तो वो कुछ कर के दिखा दें. राज्य सरकार से भी खफा हैं रामा. कहते हैं कि वर्षों से पहाड़िया बटालियन के बनने की बात सुनता था, पर आज तक कुछ नहीं हुआ. वो कहते हैं कि कोई कुछ नहीं करेगा. गरीब को गरीब ही रहना है. </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">पांच हजार मुंडा परिवार परेशान</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">बड़ा तोफी पंचायत के पूर्व मुखिया वीर कुमार मुंडा कहते हैं कि पहाड़ के तलहटी में क्रसर लगाने के लिए तीन हजार सालाना पर जमीन लीज पर देने के बाद से वहां के पांच हजार मुंडा परिवार परेशान हैं. श्री मुंडा कहते हैं कि धूल-कण व आवाज से सब परेशान हैं. खेती मर गयी अौर बीमारी बढ़ गयी है. </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">.....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">कई सुविधाएं दिलायी : डीसी</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">जिलाधिकारी उमेश प्रसाद सिंह कहते हैं कि उन्होंने पहाड़िया लोगों के लिए काफी कुछ किया है. वो खुद उनके पास जाते हैं. लीज की राशि भी तीन हजार से बढ़ा कर आठ हजार रुपये प्रति वर्ष कराया है. यह भी व्यवस्था की है कि हर तीन वर्ष पर लीज का नवीकरण हो. इसके साथ ही रैयतों को लीजधारकों द्वारा अन्य सुविधाएं भी दिलाने की शर्त तय करायी है. वो कहते हैं कि अगर इसका कहीं उल्लंघन हो रहा तो कानूनी कार्रवाई होगी.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">.....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">कोई नियम तो तय हो : डॉ सिंह</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">साहिबगंज कालेज के भूगर्भ शास्त्र विभाग के सहायक प्रध्यापक डॉ रणजीत कुमार सिंह कहते हैं कि साहिबगंज में नियमों की धज्जी उड़ायी गयी हैं. प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ होना तय है. वैसे पहाड़ों को भी काटा जा रहा है, जिनमें सिर्फ मिट्टी है. डॉ सिंह कहते हैं कि हम सब मिल कर साहिबगंज को दूसरा केदारनाथ बना रहे हैं.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">बीमारी बढ़ी है : डॉ झा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">प्रदूषण के कारण बीमारों की संख्या बढ़ने की बात कहते हैं फीजिसियन डॉ एके झा. कहते हैं कि जिले में क्षय रोग, बहरापन, चिड़चिड़ापन, चर्मरोग व अन्य तरह की समस्याएं बढ़ी हैं. </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">.....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">कितना है माइनिंग व क्रसर का लीज</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">साहिबगंज जिले में माइनिंग के लिए 267 व क्रसर के लिए 287 लोगों ने लीज लिया है. इसके अलावा अवैध रूप से भी माइनिंग करने व क्रसर चलानेवाले सैकड़ों की संख्या में हैं. मिर्जाचौकी, कोदरजन्ना, महादेवगंज, साहिबगंज, आइटीआइ पहाड, सकरीगली, महाराजपुर, करणपुरातो, तालझारी, तीनपहाड़, बाकुड़ी, पतना, बरहड़वा, कोटालपोखर व राजमहल में अवैध रूप से सैकड़ों क्रशर चल रहे हैं. इनका लेखा-जोखा कहीं भी नहीं है. </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">.....</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">क्यों यह इलाका है पहली पसंद</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">संथालपरगना का साहिबगंज व पाकुड़ जिले का स्टोन चिप्स काफी पसंद किया जाता है. खास कर यहां के काला पत्थर की क्वालिटी काफी अच्छी है. दूसरी ओर भौगोलिक दृष्टिकोण से भी यह इलाका पसंद किया जाता है. यहां से बंगाल व बिहार की सीमा सटी हुई है. इससे वैध-अवैध माल इधर से उधर करने में आसानी होती है. इसके अलावा रेल की सुविधा है. झारखंड का उपेक्षित, गरीब व कम साक्षर जिला होने के कारण भी अवैध काम करनेवालों को यहां सुविधा होती है.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">कैसे खेती योग्य जमीन हो गयी बरबाद</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">पहाड़ की तलहटी की जमीन उपजाऊ है. पर खनन के बाद पत्थर व मिट्टी नीचे तलहटी में ही डंप करते हैं सब. इस कारण नीचे की जमीन बंजर हो गयी. दूसरी अोर धूल के कारण भी सभी फलदार पेड़ व तलहटी से दूर के खेत भी बरबाद हो गये. </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">...</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">क्या है नियम</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">लीज व क्रशर के लिए नियमों की सूची लंबी है. सबसे पहले जमीन चिन्हित कर उसका एग्रिमेंट कर उसकी रसीद संबंधित प्रखंड के सीओ के पास आवेदन के साथ जमा करनी होती है. सीअो जमीन की प्रकृति तय (किसकी जमीन है अौर कैसी है) कर उसे डीएफओ को भेजता है. डीएफओ यह तय करता है कि उस जमीन को लीज पर देने से वन भूमि या क्षेत्र या पेड़ काे नुकसान तो नहीं होगा. इसके बाद पर्यावरण विभाग, रांची से उसे लीज पर देने की स्वीकृति मांगी जाती है. सभी जगह से एनओसी मिलने के बाद सीओ उसे जिला खनन पदाधिकारी के पास भेजता है. वहां से पास होने के बाद आवेदन डीसी के पास भेजा जाता है. इस प्रक्रिया में 70 हजार से एक लाख रुपये तक का खर्च आता है. हालांकि जानकार कहते हैं कि खर्च की राशि बढ़ा देने से सभी जांच कागजों पर ही हो जाता है. </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">क्या कहते हैं लीजधारक</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">जिला पत्थर व्यवसायी संघ के सचिव चंदेश्वर प्रसाद सिन्हा उर्फ बोदी सिन्हा के अनुसार सभी लीजधारक नियमों को पूरा करते हैं. उनके अनुसार पर्यावरण विभाग व अन्य विभागों से एनओसी के लिए काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. श्री सिन्हा के अनुसार प्रशासन के सहयोग से काम हो रहा है .</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">कहते हैं जिला खनन पदाधिकारी</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="line-height: 19.32px;">जिला खनन पदाधिकारी फेंकू राम के अनुसार खनन से आनेवाले राजस्व के मामले में साहेबगंज जिला आगे है. उन्होंने फोन पर बताया कि समय-समय पर अवैध क्रशर व खदान के खिलाफ छापामारी कर कार्रवाई की जाती रही है. किसी को गलत करने की इजाजत नहीं है.</b></div>
</b></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-40149253317574373972016-03-22T18:26:00.003-07:002016-03-22T18:26:50.727-07:00स्त्री श्रम का सौंदर्य’ाास्त्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>आलोका रांची से </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>स्त्री श्रम का सौंदर्य’ाास्त्र। इस विषय पर कुछ भी लिखने से पहले हमें ‘स्त्री श्रम’ और ‘सौंदर्य’ाास्त्र’ को अलग-अलग समझने की जरूरत है। किसी भी क्षेत्र में स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले श्रम को ही ‘स्त्री श्रम’ कहा जा सकता है। ‘सौंदर्य’ाास्त्र’ पर बात करें तो सौंदर्य, कला, कल्पना, बिंब व प्रतीक इसके तत्व हैं। इसका उल्लेख हिंदी साहित्य में मिलता है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>अब इसे समझ लेने के बाद हम ‘स्त्री श्रम का सौंदर्य’ाास्त्र’ विषय पर चर्चा कर सकते हैं। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जीवन के हर पहलू में स्त्रियों की स्वतंत्रता, समता एवं प्रगति ही स्त्री श्रम का सौंदर्य’ाास्त्र है। सामाजिक जीवन में स्त्रियों की स्वतंत्र एवं समान भागीदारी से हो रही चातुर्दिक प्रगति में सौंदर्य की आभा भी है और कला की खनक भी। कल्पना की उड़ान भी है और बिंब व प्रतीक की झलक भी। इन्हें स्त्री श्रम के विविध रूपों में देखा-समझा भी जा सकता है।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b> खेत में धान रोपती स्त्री, पहाड़ पर पत्थर तोड़ती स्त्री, कमर पर घड़ा लिए पनघट से लौटती स्त्री, अपनी कल्पना को कैनवास पर उतारती स्त्री, किसी दफ्तर में कंप्यूटर और मौस के बीच उलझी स्त्री, खेल के मैदान में उछलती-कूदती स्त्री या युद्धाभ्यास में पसीना बहाती स्त्री। स्त्री श्रम के इन विविध रूपों में ही तो निहित है स्त्री श्रम का सौंदर्य’ाास्त्र। आज के आधुनिक युग में तो स्त्री श्रम के सौंदर्य’ाास्त्र का दायरा और भी बढ़ गया है। कभी चहारदिवारियों के मध्य टिमटिमाने वाला स्त्री श्रम का यह सौंदर्य अब दे’ा-दुनिया के कोने-कोने में अपनी अभा बिखेर रहा है। स्त्रियों के इस सौंदर्य से पूरा जगत चकाचैंध हो रहा है। कृषि से कारोबार तक, बाजार से दफ्तर तक, मीडिया से राजनीति तक, सामाजिक विकास के संघर्ष से रणक्षेत्र के सरहद तक, तकनीक की दुनिया से खेल के मैदान तक और कला की जमीन से कलाबाजी के आकास तक। ’ाायद ही कोई कोना ऐसा हो, जहां स्त्री श्रम के सौंदर्य की किरण नहीं पहुंची है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>जहिर है कि हमारे समाज में स्त्री श्रम का सौंदर्य अदभुत और अनोखा है। पर हकीकत यह है कि अब भी स्त्री श्रम को वो मूल्य हासिल नहीं है, जो पुरूषों को है। आज भी दुनिया के कई इलाकों में स्त्री श्रम को मान्यता नहीं दी गई है। जहां दी भी गई, वहां यह बहुत सस्ता है। जहां स्त्री श्रम को मान्यता नहीं है, वहां इसका का महत्व भी नहीं है। स्त्रियां मुख्य रूप से दो तरह का श्रम करती हैं। एक तो ये घर परिवार चलाने के लिए श्रम करती हैं और दूसरे में ये राज्य व समाज के विकास के लिए भी योगदान देती हैं। अगर कोई स्त्री दफ्तर में बैठकर फाइलें निपटाती हैं, तो वह भी श्रम करती हैं और कोई स्त्री खेतों में पसीने बहाती हैं, तो वह भी श्रम ही करती हैं। दफ्तर में बैठकर श्रम करने वाली स्त्री को उनके श्रम का मूल्य तो मिलता है, लेकिन खेतों में काम करने वाली महिलाओं को अब भी श्रम के बदले मूल्य नहीं मिलता। खेतों में काम करना हमारे यहां की औरतों के लिए जैसी उसकी नियति बन गई है। पूरी दूनिया में घरेलू श्रम सबसे ज्यादा स्त्री ही करती हैं। लेकिन इसका ‘वैल्यू’ भी घरों तक ही सीमित है। इसे स्त्रियों का श्रम नहीं, सिर्फ सेवा भाव समझा जाता है। भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं कृषि कार्य में हाथ बंटाती हैं। ये दिन रात खेतों में काम करती हैं और फसलों के उत्पादन में अहम भूमिका अदा करती हैं। लेकिन अबतक इन्हें स्त्री किसान का दर्जा हासिल नहीं है। दे’ा के अलग-अलग हिस्से में भारी संख्या में स्त्रियां अलग-अलग पे’ो से जुड़ी हैं, पर इन्हें भी उनके श्रम के बदले अपेक्षित मूल्य नहीं मिलता है। ऐसी स्त्रियों में बीड़ी बनाने वाली महिलाएं, अगरबत्ती-मोमबत्ती के रोजगार से जुड़ी महिलाएं, नर्स के रूप में काम करने वाली महिलाएं, बकरी पालन, भेड़ पालन, मुर्गी पालन व सुअर पालन के धंधे में लगी महिलाएं शामिल हैं। ये महिलाएं जीतोड़ श्रम करने के बाद भी गरीब और मजबूर हैं। इन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती। ऐसी स्त्रियां आज भी गुलामी की जंजीरों से जकड़ी हुई हैं। </b></span></div>
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>सबसे दुखद बात तो यह है कि स्त्री श्रम और उसके मूल्य को लेकर आज कहीं भी बहस नहीं चल रही है। जबकि श्रम के क्षेत्र में स्त्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ये स्त्रियां श्रम तो कर रही हैं, लेकिन इसके बदले वाजिब मूल्य के लिए न कोई सवाल खड़ा कर रही हैं और न ही कोई आंदोलन कर रही हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह महिला श्रमिकों का असंगठित होना है। इन्हें संगठित करने के लिए ट्रेड युनियन भी अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं। स्त्री मुक्ति की बात तो आंदोलन बना, लेकिन स्त्री श्रम का मुद्दा आज भी आंदोलन की शक्ल अख्तियार नहीं कर पाया। स्त्री श्रम का मुद्दा बहस का विषय भी नहीं बना। परिवार और पलायन के बीच स्त्री श्रम दुनिया के कोने-कोने में बिकता रहा, लेकिन इसका मूल्य का हिसाब नहीं लगा। 21वीं सदी के श्रमिक स्त्रीकाल में आज भी सरकार के विभाग में स्त्री का स्थान सुनि’िचत नहीं है। स्त्री श्रम का सौंदर्य’ाास्त्र तब और समृद्ध और व्यापक होगा, जब दे’ा के हर तबके की स्त्रियों को उनके श्रम का वाजिब मूल्य मिलने लगेगा। स्त्रियों को अपने श्रम का वाजिब मूल्य हासिल करने के लिए संघर्ष का रास्ता अख्तियार करना होगा। </b></span></div>
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<div style="text-align: justify;">
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-15471433623145331732016-03-22T18:24:00.004-07:002016-03-22T18:24:52.465-07:00स्त्री श्रम कानून<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-size: large;">आलोका</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">यू तो दुनिया में स्त्री श्रम की मान्या कई क्षेत्रों में नहीं दिया गया जहां मान्यता दिया भी गया है वहां श्रम सस्ता है। जहां मान्यता नहीं वहां स्त्री श्रम का महत्व सेवा भाव के साथ जूड़ जाता रहा हैै। जैसे पूरी दूनिया में घरेलू श्रम सबसे ज्यादा स्त्री ही करती है जिसका मूल्य निधारित नहीं उसे समाज में सेवा के भाव से जोड़ दिया गया है। वही किसान स्त्री दिन रात खेतों में काम करती है उनके काम को श्रम का मान्यता प्राप्त नहीं है। यह स्थिति पूरे भारत में आज भी विधामान है </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">श्रमिक कौन है? उनकी जरूरत क्या है? जिसने अपने श्रम के बदले मूल्य लिया है। उनकी जरूरत श्रम और बदले में जरूरत की पूर्ति वह भी परिवार को चलाने के लिए जहां भूख और गरीबी दोनों स्त्री के जीवन में समाहित है। स्त्री, श्रम परिवार चलाने के लिए करती है। वो दो तरह के श्रम करती है। एक वह जो श्रमदान अपने परिवार का भरण पो’ाण के लिए करती है। दूसरा वह जो समाज और राज्य के विकास में अपना योगदान दे रही है। इन दोनों में स्त्री श्रम गुलामी के चक्रव्यूह में कैद है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">दुनिया में म”ाीनी यूग का प्रेव”ा से स्त्रियों के जीवन में थोड़ी आजादी मिली है पर उसके सामने गरीबी, भूख, बेरोजगारी जैसे समस्या सामने लगातार बनी रही है। ऐसे स्थिति में स्त्री को श्रम करना एक मजबूरी बनाता है। वही तकनीकि विकास का असर यह हुआ कि स्त्री को संस्ती श्रम के साथ खड़ा किया गया है। जिसमें वें अपने जरूरत कि चीजे तक पूरी नहीं कर पा रही है और न काम का घंटा ही तय कर पा रहे है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">वर्ततमान में स्त्री श्रम को लेकर कही भी बहस नहीं चल रहा है। जबकि तेजी से स्त्रियों के श्रम के क्षेत्र में लाया गया है। सबसे बड़ी आबादी के स्त्री श्रम के साथ जुडी हूई हैै। इन श्रमिक स्त्री ने अपने सवाल के साथ कभी आंदोलन का रूख अपनाया नहीं कारण कि जिन जिन क्षेत्र में स्त्री श्रम की बहुतायता है वह क्षेत्र असंगठित रहा है जहां टेड युनियन की बु तक नहीं आती है। स्त्री आंदोलन कि खासीयत यह रही कि स्त्री मुक्ति की बात अंादोलन का मुद्दा बना पर श्रमिक स्त्री की समस्याएं बहस का वि’ाय नहीं बन पाया परिवार और पलायन के बीच श्रम दूनिया के कौने कौने में बिकती रही जिसमें आधी आबादी का श्रम का माप-जोख कही दिखता नहीं है। दुनिया में श्रमिकों के कई आंदोलन गरजे पर इस गरजन में स्त्री की बात कही छुआ तक नहीं। 21वीं सदी के श्रमिक स्त्रीकाल में आज भी सरकार के विभाग में स्त्री का स्थान सुनि”चत नहीं है। जबकि कई बहुरा’टीय कम्पनी जैसे पत्थर खदान, बीडी कम्पनी, निर्माण मजदूर जैसे अनेकों स्थान में स्त्री श्रम के बल पर विकास के काम कर रहीं है और यह पूरा का पूरा क्षेत्र असंगठित श्रमिका का एक बड़ा तपका आज भी हमारे सामने अपने अधिकार और श्रम के वास्तिवक मूल्य पर आवाज बुलंद नहीं कर पा रहा है।इसके अलावे घरेलू कामगार श्रमिक स्त्री नर्स के रूप में काम कर रही स्त्री की संख्या आज भी बरकरार है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">60 के द”ाक से स्त्रीयों के श्रम बेचने के लिए मजबूर होती रही। यह वह वक्त है जब स्त्रीयां अपने श्रम को बेचने के लिए घर से बाहर आई। जिसमें गांव से निकल कर काम करने वाली स्त्री की संख्या में तेजी से विकास हुआ। विकास के अंधी दौड़ में किसान महिला श्रमिक बेरोगार होते चले गये। उनका श्रम का मूल्यबोध बदलता चला गया और स्त्रियों के जीवन में श्रम एक संक्रामक के रूप में उपस्थिति हो गया। सही वह समय है जब तेजी से दुनिया में नये व्यवस्था का दौर “ाुरू हुआ जिससे सस्ती श्रम के प्रति स्त्री को टारगेट किया जाने लगा। हर जिले में प्राकृतिक संसाधनों पर लूट और उनका उधोग के रूप का बदलना कम्पनी का पैदा होना के साथ स्त्री के श्रम का वेलू बढ़ना अब तक जारी है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">श्रमिकों के कानून है - कानून श्रमिकों के बने है पर वह श्रम मंत्रालय या श्रम विभाग तक ही समाहित है। दे”ा के किसी कोने के श्रमिकों से उनके कानून के बारे में जानकारी ले किसी भी श्रमिक को जो असंगठित क्षेत्र से उन्हें अपने अधिकार के बारे में नहीं जानते। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">टेड यूनियन “ाुन्य काल में- कम्पनी में पुरू’ाों कि नियूक्ति तेजी से होते रहे है भारत के आजादी के बाद स्त्री श्रमिकों के लिए स्थान सुरक्षित आज तक नहीं हो पाई है। वे आज भी रोज का कमाना रोज का खाना वाली प्रक्रिया में जूडे हुए है। इनका टेड यूनियन से किसी प्रकार का नाता रि”ता नहीं रहा और न टेड यूनियन को इनसे कोई मतलब रहा। टेड यूनियन का मतलब बड़ी कम्पनी या फैक्टी पर काम करने वाले मजदूरों के साथ ही संबध बना रहा। </span></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-10880340077699566162016-03-22T18:21:00.003-07:002016-03-22T18:21:27.596-07:00लोकतंत्र की शर्तें और जमीनी हकीकत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span></div>
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<span style="font-size: large;"><b>आलोका रांची से </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>लोकतंत्र का शब्दिक अर्थ ‘‘लोक का तंत्र’’ अर्थात् ‘‘जनता का शासन’’ से है। आजादी, समानता, स्वायत्तता, मौलिक अधिकार और सामाजिक न्याय आदि मूल्यों के मौजूद रहने की गारंटी किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था की पूर्व शर्त होती है। लेकिन क्या वर्तमान भारतीय राजनीतिक परिवे’ा में लोकतांत्रिक व्यवस्था की ये तमात शर्तें पूरी हो रही हैं ? </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>एक आंकड़े के अनुसार दे’ा के 100 अमीरों की संपत्ति 13 लाख करोड़ रूपए 276अरब डाॅलर है, जो सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी का 25 प्रति’ात है। इन ढनाढ्यों की पूंजी में प्रत्येक वर्ष 50 सेे 90 प्रति’ात तक वृद्धि हुई है। अगर हम अपने राजनेताओं की बात करें तो दे’ा के 543 सांसदों में से 310 सांसद करोड़पति हैं। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>अब एक नजर अर्जुन सेन गुप्ता की एक रिपोर्ट पर दौड़ाएं- 84 करोड़ भारतीय की रोजाना आमदनी 20 रूपए से कम है। 30 प्रति’ात ग्रामीण जनता प्रतिदिन 19 रूपए और 10 प्रति’ात शहरी जनता 13 रूपए प्रतिदिन पर जीवन जी रहे हैं। 20 करोड़ से अधिक भारतीय प्रतिदिन 12 रूपए से भी कम पर जीवन बसर कर रहे हैं। 50 करोड़ से अधिक भारतीयों दैनिक आय मात्र 12 रूपए है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>इतना ही नहीं, आज दे’ा की एक बड़ी आबादी स्लम बस्तियों में जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। मुंबई का धरावी दे’ा का सबसे बड़ा स्लम एरिया है। वहां लगभग दस लाख लोग रहते हैं। दिल्ली का भालवासा दे’ा का दूसरा सबसे बड़ा स्लम एरिया है। वहां दिल्ली की लगभग 20 फीसदी आबादी रहती है। इस मामले में तीसरे स्थान पर चेन्नई का नोचीकुप्पम, चैथे पर कोलकाता का बसंती स्लम, पांचवें पर बैंगलोर का राजेंद्र्र्र नगर, छट्ठे पर हैदराबाद का इंदिराम्मा स्लम, सातवें पर नागपुर का सरोज नगर, अठवें नंबर पर लखनउ का मोहिबुल्लापुर स्लम, नौवें पर भोपाल का सतनामी नगर स्लम एवं दसवें स्थान पर अहमदाबाद का परिवर्तन स्लम एरिया है। जबकि दे’ा के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 60 से 70 प्रति’ात आबादी को आज भी शुद्ध पेयजल, स्वास्थ्य सुविधाएं, सड़क व बिजली की सुविधाएं मय्यसर नहीं है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>ये आंकड़ें भारतीय लोकतंत्र की जरूरी मूल्यों में शामिल समानता, स्वयत्तता व मौलिक अधिकार की असली तसवीर पे’ा करते हैं। इस तसवीर में लोकतंत्र का चेहरा विकृत नजर आता है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>समाजिक न्याय की गारंटी लोकतंत्र की अन्य शर्तों में शामिल है। भरतीय लोकतंत्र में सामाजिक न्याय की गारंटी का हश्र नीचे के तथ्यों से उभरने वाली तसवीर में भी साफ तौर से देखा जा सकता है- </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>दे’ा के एक बड़े संत अपने ही विद्या आश्रम में पढ़ने वाली एक बीमार नाबालिक को झाड़-फूंक के बहाने अपने पास बुलाते हैं और उसके साथ दुष्कर्म करते हैं। इस मामले में नाबालिक के फर्द बयान पर केस दर्ज होने के बाद भी फौरी तौर पर संत की गिरफ्तारी नहीं होती। उल्टे कई राजनेताओं पर संत को बचाने का आरोप लगता है। सवाल उठता है कि क्या अगर एक आम आदमी उस नाबालिक के साथ दुष्कर्म करता तो क्या वह इस तरह बच पाता और क्या दे’ा के बड़े राजनेता और सरकार के बड़े नुमाइंदे उसके पक्ष में खड़े होते ? बिल्कुल नहीं, बल्कि वह आम आदमी आज सलाखों के पीछे कैद होता। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>झारखंड की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। वन प्रदे’ा के रूप में पहचाने जाने वाले झारखंड के 70 फीसदी से भी अधिक लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। राज्य में पलायन थम नहीं रहा है। मानव व्यापार का सिलसिला जारी है। महिला हिंसा और व्याभिचार चरम पर है। विस्थापन की मार जारी है। मानवाधिकार की धज्जियांं उड़ाई जा रही है। नक्सलवाद उन्मूलन के नाम पर ग्रीनहंट जैसे दमनकारी अभियान चलाए जा रहे हैं। निर्दोष मारेे जा रहे हैं। बेकसूर जेल भेजे जा रहे हैं। जनता परे’ाान और हल्कान है। दूसरी तरफ नेता और जन प्रतिनिधि सत्ता के बंटवारे में मदमस्त हैं। इन्हेंंं जनता की सरोकारों से कोई लेना-देना नहीं है। ने’ानल सैंपल सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 27.6 प्रति’ात लोग बेरोजगार हैं। बेरोजगारी के मामले में झारखंड अन्य तमाम राज्यों से आगे है। राज्य में 43.9 फीसदी लोग कभी स्कूल नहीं गए। दूसरी ओर राज्य भर के विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के लिए ’िाक्षक ही नहीं हैं। यही हाल स्वास्थ्य सुविधाओं का है। राज्य भर के गांवों में स्वास्थ्य की कोई सुविधा नहीं है। गांव के लोग आज भी भगवान भरोसे जी रहे हैं। राज्य में लगभग चार हजार डाॅक्टरों की जरूरत है, पर मात्र दो हजार डाॅक्टर ही कार्यरत हैं। इसी तरह राज्य के 15 हजार गांव के लोग आज भी बिजली की सुविधा से वंचित हैं।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>लेकतंत्र का लहूलुहान होता एक और चेहरा दे’ा में हो रहे नित नए घोटालों से उजागर होता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि जनता जिस पर भरोसा करती है और जिसे वोट दे अपना प्रतिनिधि बनाकर विधानसभा या लोकसभा में भेजती है, वही घोटालांे का सूत्रधार बन जाता है। दे’ा में आए दिनों नए-नए घोटालों का पर्दाफास होता रहता है और इसके लिए नेता व मंत्री ही जिम्मेदार ठहराए जाते हैं। झारखंड भी इससे अछूता नहीं है। मुख्यमंत्री मधुकोड़ा के राज्य में तकरीबन दो हजार करोड़ का घोटाला इसी राज्य में हुआ। </b></span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-41706944201805590422016-03-22T18:19:00.002-07:002016-03-22T18:19:23.196-07:00झारखण्ड की महिलाओं को लोकसभा चुनाव का बहि’कार करना चाहिए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;">.आलोका रांची से </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;">किसी भी राज्य की राजनीति स्थिति वहां की राजनीति गति”ाीलता के आधर पर बनती और बिगडती है साथ ही उस राज्य के राजनीति सोच को जन्म देती है 2014 का लोकसभा चुनाव इस राजनीति की अतिगति”ाीलता को दर्”ाता है कि राजनीति पार्टी में पुरू’ावादी सोच कायल है। पार्टी में पूत्र मोह, जाति मोह, रि”तादारी मोह ने जगह तो बनाया है पर महिला से मोह भंग कैसे हो गयज्ञं झारखण्ड को बने 14 साल तो हो गया। 14 साल से और उससे पहले से राज्य के अन्दर महिलाओं ने अपनी राजनीति गति”ाीलता के साथ राजनीति पार्टी में “ाामिल हुई पर दुरभाग्य से राज्य के अन्दर एक भी महिला राजनेता लोकसभा के लिए पैदा नहीं हो पाए। फिर से 33 प्रति”ात आरक्षण की पोल खोल दी।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;">इस चुनाव ने महिलाओं के साथ रा’टीय राजनीति पार्टी ने गदारी की है अभी तो 8 मार्च यानि की महिला दिवस गुजरा है पूरी दुनिया में महिलाओं के हक अधिकर, स”ाक्तिकरण और न जाने कितने नामें के साथ कितने वादों के साथ राजनीति पार्टी के महिला विंग ने भी मनाया और वही समाप्त हो गया। क्या विड़मना है? लोग सभा का चुनाव आया महिला नेता को राजनीति पार्टी ने नजर अंदाज कर दिया यह महिलाओं के साथ गदारी के साथ महिलाओं के अरक्षण के मांग के साथ महिलाओं को बाहर कर दिया। इस गदारी के खिलाफ महिलाओं को एक जूट होना होगा। ताकि अपनी मांग के साथ महिलाएं संडक पर राजनीति विगूल फूके। तभी झारखण्ड में दिखेगा महिला स”ाक्तिकरण की ताकत, नहीं तो पुरू’ावादी राजनीति पार्टी से पार पाना ये विंग टाइप के राजनीति से आ”ाा के किरण नहीं दिखते है यदि ये महिला पार्टी के अन्दर टीकट की मांग के साथ बगावत करती है तो उन्हेंें अगले चुनाव के आ”वासन का डर पैदा कर दिया जाएगा। और राजनीति पार्टी इस कदम को उठाने नहीं देगी पार्टी के अंदर बगावत करने नहीं देगी। तब हमारे पास सवाल बनता है महिलाओं के साथ हुए गदारी पर सवाल कौन उठाएगा। बहस कौन चलाएगा। क्या अब भी महिलाओं को लगता है कि कोई न कोई पुरू’ा वचस्र्व वाली राजनीति पार्टी महिलाओं के इस दर्द को समझेगा। तब यह महिलाओं की सबसे बड़ी भूल होगी। क्या महिला राजनेता नहीं बनेगी, बनेगी तो यही वह खेमा है । यह बहस महिलाओं को उठाना होगा । </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;">महिला स”ाक्तिकरण नाम पर औरतों अब तक ठगा गया या मान ले महिलाओं को साथ धोखा हुआ इस धोखा के बाद पूरा राज्य के महिलाओं को अपनी राजनीति खैमा तैयार करना चाहिए नही ंतो परिवार के अन्दर अधिन की स्थिति बनी थी वह राजनीति पार्टी के अन्दर भी अधिक की स्थिति मे जीयेगे। यही अधिन की स्थिति ने 2014 के चुनावी समर में महिलाओं को लात मार कर बाहर कर दिया गया है। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;">अब जरूरत है महिलाओं को अपनी ताकत के प्रदर्”ान करेे महिला संगठन से लेकर महिला मुद्दो पर काम कर रही महिलाओं को उन्हे बहस के साथ अपने राजनीति मूल्यंाकन भी करना चाहिए की राजनीति में महिलाओं के दौव्यम दर्ज क्यों? आखिर महिलाओं को राजनीति पार्टी में रह कर क्या लाभ हुआ महिलाएं तो अपनी खैमा की लड़ा वह खुद लड़ रही है। यदि वह लोकसभा के टिकट के लिए वह पार्टी के अन्दर बगावत कर उन्हें राजनीति पार्टी से अलग हो जाना चाहिए। और एक राजनीति समझदारी कि विगूल फूंक देना चाहिए महिलाओं को इस सता समीकरण अपना वोट किसको देगी और क्यों देगी इस पर संगठनिक विचार करना चाहिए। आधी आबादी को इस चुनाव का बहि’कार करना चाहिए।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;">मुझे याद है राज्य के कई महिला नेता जो संधर्’ा के मैदान में लगातार मौजूद रही है उन लोगो ने कई राजनीति पार्टी से टिकट के लिए प्रस्ताव भेजवाया पर राजनीति पार्टी ने उन महिलाओं को टिकट देने से इंकार कर दिया। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-89013309635719168072016-03-22T18:17:00.000-07:002016-03-22T18:17:08.888-07:00महिला के आंदोलन की दि”ाा क्या है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">आलोका </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">2014 के चुनाव मेरे मन में कई सवाल खड़ा कर रहा है इस चुनाव में मोदी की लहर को लोगो ने बताया की यह सता का परिवर्तन की लहर है इस परिवर्तन के दौर में सता का परिवर्तन मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की है इससे क्या परिवर्तन होने वाला है यह अदृ”य है। जिसे मेरा जेहन पचा नहीं पा रहा है इसलिए भी नहीं की चर्चा जो चल रही है वह मात्र मेरे हिसाब से सत्ता का हस्तान्तरण की हो सकती है। जिसका अभी ठोस प्रमाण नहीं है। लोकतंत्र की इस प्रक्रिया में जनत द्वारा चुना जाना ही अंतिम माना जाता रहा है जिसकी ताकत हम देखेगे। यह सत्ता परिवर्तन महासमर में एक सवाल बनता है कि महिला ताकत राजनीति राजनीति संधर्’ा में कहा है?</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैंने कई लेख महिलाओं की हित और आंदोलन के मूल्यांकन करते हुए लिखे है जिसमे राजनीति संगठन पर महिलाओं को राजनीति भागीदारी से दरकिनार जैसे कई सवाल को लिखी पर मेरा यह सवाल कागज के पन्नों पर या कागज के अक्षरों पर घुमती फिरती मुरझाती रही है यह भी सवाल आया कि महिला स”ाक्तिकरण के नाम पर लाखों महिलाओं को संगठित किया गया और यह सत्य भी है जिसे सरकार और राजनीति पार्टी ने काफी मेहनत की कई तरह के प्रेक्टिस में लाए महिलाए घर से बाहर आई ”िाक्षा ली नौकरी पाई राजनीति संगठन में भाग ली स्वतंत्र हुई कई बहस पर भाग लेती रही कई जगहों पर अपने को खड़ा कर पाई जिसके तामाम उदाहरण हमारे समाज में हमारे अगल- बगल में मौजूद है जिसका असर हुआ कि महिला हिंसा कानून से लेकर महिलाओं के आजादी तक मांग समाहित है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मुझे इस चुनाव के बाद यह लगने लगा है कि महिलाओं का राजनीति स”ाक्तिरकण किया जाना चाहिए इसलिए भी कि हर इंसान का काम का उदे्द”य का अन्तिम लक्ष्य राजनीति होता है उसी तरह महिलाओं के स”ाक्तिकरण का लक्ष्य राजनीतिकरण होना चाहिए तभी महिलाए राजनीति रूप से सोच सकेंगे। हमारे समाज की समाजिक ढ़ाचा ही कुछ ऐसा है कि महिलाओं को हर कुछ मांग कर जीना है यानि की महिलाओं को एक मालिक चाहिए जिससे वह मांग सके। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मैं जब स्कूल में पढ़ती थी उस वक्त रांची की एक महिला संगठन महिलाओं को मुददो के साथ लगातार संधर्’ा करती थी। उस संगठन को चलाने वाली महिलाए प्रोफसर थी वह महिलाओं के समस्या को लेकर सड़क से संसद तक अपनी आवाज उठाती वह भी राजनीति रूप से उनकी राजनीति समझदारी ने राजनीति में महिलाओं लाने में बाध्य होना पड़ा ये सभी महिलाएं समाज की प्रेरणा जरूर बन गयी है पर राजनीति महिला नही बन पाई ऐसी स्थिति में पूरे भारत में चल रहे महिलाओं की आंदोलन पर कड़ा सवाल उठता है िकइस आंदोलन का क्या औचत्य? </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">महिलाएं संगठित है वह भी भेडिया के समूह की तरह उनका कोई मकसद नहीं है। यदि मकसद होता तो 2014 के इस चुनावी समर में राजनीति पार्टी मे ंचुनाव के समय जिस तरह से दल- बदल का खेल चला उसे खेल का इस्तेमाल कर महिलाएं भी सत्ता परिर्वतन राजनीति की धारा में “ामिल हो सकती थी। मुख्यधारा की राजनीति का दामन थाम सकती थी पर ऐसा वह कर नहीं पाई यदि यह हुआ होता तब भारत की तस्वीर आधी आबादी के लिए कुछ और होता और महिलाएं इस सत्ता हस्तान्तरण में नहीं वास्तव में राजनीति परिवर्तन की लहर दौड़ता। संस्कृति गति”ाीलता की लहर होती हर क्षेत्र में परिर्वतन का उमग होता है। अफसोस भारत के किसी भी महिला संगठन ने राजनीति के इस गतिविधि पर सवाल नहीं किये ।तब मतलब समझ में आता है कि महिलाओं ने मलिक के लिए रास्ता साफ किया है और अभी महिलाओं को सत्ता की जरूरत नहीं दिखाई दे रहीं है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अब महिलाओं के तामाम संगठन संस्था आंदोलन को यह मूल्यांकन करना चाहिए की वह घर के अन्दर की राजनीति में आपने को फिट समझती है या फिर उन्हें चुनावी राजनीति में आने की जरूरत है यह बहुत जरूरी है कि समाज में आधी आबादी के लिए राजनीति पार्टी ने जो एजेण्डा बनाया है अपने मेनीफेसटो में उसे स्वीकार कर लेना या एस पर आत्म आलोचना जैसे कुछ संवाद की स्थिति बन पाए। महिलाओं को क्या जरूरत है? क्या समस्या है? क्या चाहिए? यह तय कौन करेगा इसे तय करने के लिए उन तामाम राजनीति पदो के लिए चुनावी समर में झोकना होगा और राजनीति में रह कर राजनीति बहस चलानी होगी। </span></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-91426862143073581152016-03-22T18:15:00.003-07:002016-03-22T18:15:36.239-07:00जमीन, जीविका और पहचान की दावेदारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-size: large;">आलोका </span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">भाजपा सरकार का भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा से पास हो चुका है। यह कानून 2013 के सबसे महत्वपूर्ण भूमि तमाम प्रावधानों को समाप्त कर देना चाहता है। भाजपा की सरकार का यह निर्णय पूरे भारत में आदिवासी, दलित किसानों के साथ मध्यम वर्ग के तमाम आम जानों को उपनिवे”ावादी कानून 1894 को ओर ले जाता है। भाजपा सरकार चाहती है की कृ’िा प्रधान,श्रम प्रधान दे”ा अब कम्पनी राज के रूप में जाना जाए पर भारत की जनता खासकर आदिवासी और दलित इस मनसूबों को कामयाब नहीं होने देना चाहती है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">भाजपा सरकार के बिल के अनुसार -ः डिफेंस, ग्रामीण अधिसंरचनात्मक ढांचे आवास, औधेगिक गलियारों, पीपीपी समेत अधिसंरख्पसत्क ढांचों की परियोजनाओं और साथ ही नीजी अस्पतालों और स्कूलों के लिए भूमि अधिग्रहण करने में किसानों की सहमति लेने की जरूरत नहीं है, और समाजिक प्रभाव आकलन की जरूरत नहीं है यह कई बहाने से किसी भी सार्वजनिक@ निजी प्रति’ठान द्वारा बगैर सहमति के भूमि कब्जे के लिये रियल इस्टेट के मकसद के लिये भी पूरी तरह दरवाजे खोल देता है। पांच सालों तक बिना उपयोग के पड़ी अधिग्रहीत भूमि भी किसानों को नहीं लौटायी जायेगी यह रिल स्टेट माफिया के लिए भूमि कब्जे बनाये रखने और फिर जमीन की कीमतें बढ़ाने पर उसे बेच डालने के लिए दरवाजे खोल देगा। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">झारखण्ड में लगातार भूमि के संधर्’ा चल रहे है। आदिवासी किसान और दलित किसान अपनी भूमि को देना नहीं चाहते है। किसानों के सवाल के साथ किसान अपनी पूर्वज के जमीन को बचाने के लिए डटे हुए है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> झारखण्ड में मजदूरों की संख्या इस रूप में भी ज्यादा है की यहां स्वयं के श्रम पर आधारित तमाम व्यवस्था जीवत है। कृ’िा से लेकर वन आधारित व्यवस्था में आदिवासियों की संख्या अधिक है। लम्बे समय से वन और कृ’िा झारखण्ड के लोगो के जीविका का आधार के साथ पहचान भी रहा है। एक एक भाजपा की सरकार का केन्द्र में बहुमत के साथ आते ही किसानों के जमीन अधिग्रहण के मामले पूरे भारत में तेज हो गये सत्ता पक्ष काॅपोरेट के लिए भाजपा ने किसानों के जमीन जो उनके जीविका के साथ रोजगार के साथ जुड़ा हुआ है एकाएक सरकार की भूमि अधिग्रहण के सवाल पूरे दे”ा के नासूर बन गयी वहीं आदिवासी और दलितों की स्थिति डगमगाने लगी। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">झारखण्ड में चतरा लातेहार गिरिडीह बोकारों, पलामू, गढ़वा जैसे इलाकों में अधिक संख्या में दलित है जिनके पास खेती के लिए कम जमीन है जहां वे अपनी परिवार का लालनपालन कर जीवन चला रहे हैं। नेहरू के काल में झारखण्ड में जमीन का हस्तांतरण औधोगिक क्षेत्र के लिए दिया गया। उस वक्त भूमि के नाम पर पैसे वितरण की गयी पर उन किसानों को जमीन के बदले जमीन नहीं मिला। नतीजा यह हुआ कि झारखण्ड में भारी संख्या में पलायान की स्थिति उत्पन्न हो गयी जिसमें आदिवासी, दलित, और महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी। यह पलायन अब के समय में विकराल रूप धारण कर लिया है। इस पलायन ने पहचान के साथ जीविका और रोजगार को छिन्न लिया बदले में उसे कुछ नहीं मिली। उनकी संस्कृति के साथ पूर्वज के इतिहास तक गौण कर दिये गये। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">वर्तमान समय में झारखण्ड में आदिवासी और दलित दोनों की स्थिति दैनिय है। आज भी चतरा और गिरिडीह बोकारों में दलित समाज अपने अलग संधर्’ा के खड़ा है वहीं भूमि अधिग्रहण बिल ने 2015 में पूरे झारखण्ड आदिवासी और दलित समाज को आत्म मंथन करने का मौका दिया है। दे”ा को विकास करना है वह भी कम्पनी और पूंजीपतियों के लिए दे”ा को विकसित राज्य बनाना है ब्रांड उत्पादन करके। यह सवाल बनता है कि आम जन आदिवासी और दलित समाज जिसके पूर्वजों अपने राज्य को अपने श्रम के आधार पर अपने लिए रोजगार और जीविका का आधार खोजा वह आधार बड़ी कम्पनी को कैसे दे देगे सिर्फ विकास के नाम पर। दुसरा सवाल उठता है आजादी के 68 सालों के तक पलायन भूखमरी, किसानों के मौत और गौण होता श्रम आधारित समाज को सरकार ने बचाने के लिए कौन सी मूहिम चला रखा है इसकी एक भी सूचना आपको नहीं मिलती है। ऐसी स्थिति में भमि अधिग्रहण के विरोध में खडा होता आदिवासी दलित समाज के निर्णय लाजमी लगती है।</span></div>
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<span style="font-size: large;">आलोका स्वतंत्र पत्रकार है जनमुद्दों पर लगातार कविता और लेख लिखती रहती है उनका लेखन भारत के कई पत्र-पत्रिका में प्रका”िात होता रहता है। दे”ा और राज्य में विभिन्न जनआंदोलन एवं सामाजिक गतिविधि में सक्रिय भागीदारी रहती है। झारखण्ड की श्रमिक महिलाये प्रथम किताब 2013 में प्रका”िात हुई है। 2011 में सरई पत्रिका झारखण्ड के चतरा जिले से प्रका”िात करने का प्रयासरत है। साथ ही महिलाओं के समस्याओं के साथ रांची महिला थाना में काउॅसेलर में सहयोग करती है। आई ए डब्लूय एस की सदस्य है। ए”िाय विमेन जॅनलिस्ट के साथ जूडाव है। रांची में सफदर संस्था में कला और संस्कृति में काम करती है। </span></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-49041143726631285322016-03-22T18:13:00.003-07:002016-03-22T18:13:38.242-07:00मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना आदिमजनजाति के लिए यह व्यवहारिक ही नहीं है।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-size: large;">आलोका सीएसडीएस के फेलोसिप के तहत</span></div>
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<span style="font-size: large;">झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए सरकार प्रायः नई-नई योजनाएं लागू करती रहती हैं। झारखंड के अस्तित्व में आने के बाद विगत 14 वर्’ाों में राज्य में गरीबों के कल्याण के लिए अनेकों योजनाएं “ाुरू की गईं। कई योजनाएं बहुत सफल भी हुईं। लेकिन दुखद बात यह है कि ऐसी योजनाएं आदिम जन जातियों को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के नाम पर “ाुरू की गई योजनाओं में आदिम जनजातियों के लिए प्राथमिकताएं तय नहीं की गईं। झारखंड गरीबों के कल्याण के लिए चलाई जा रही कई योजनाओं में से एक मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना है। यह योजना राज्य सरकार ने 15 नवंबर 2011 को लागू किया गया था। इस योजना का मुख्य उदे”य पुत्री के जन्म से समाज में फैलने वाली हीन भावना को खत्म करना, कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाना, बच्चियों की ”िाक्षा के स्तर में सुधार लाना, उनके विवाह में आने वाली आर्थिक परे”ाानियों को दूर करना, संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करना एवं बाल विवाह प्रथा का अंत करना “ाामिल था। यह योजना को लागू कर इसे लागू किए जाने के ठीक एक वर्’ा पूर्व यानी 15 नवंबर 2010 से “ाुरू भी कर दिया गया। इसका अर्थ ये हुआ कि 15 नवंबर 2010 के दिन से जन्मे बच्चियों को इस योजना में “ाामिल करते हुए उन्हें लाभुक बनाना “ाुरू कर दिया गया। इस योजना में बालिकाओं को “ाामिल करने के लिए कई “ार्तें @ पत्रता तय की गईं। इनमें यह नियम लागू किया गया कि बच्ची का परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करता हो और इसका प्रमणा पत्र उसके पास उपलब्ध हो। अधिकतम दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन दंपत्ति द्वारा अपना लिया गया हो। इसका भी प्रमाण पत्र उनके पास मौजूद हो। दूसरी पुत्री को योजना का लाभ दिलाने के लिए यह जरूरी होगा कि उनके माता-पिता नसबंदी का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करे। योजना में बच्चियों को “ाामिल कराने के लिए यह भी “ार्त तय की गई कि जन्म के एक वर्’ा के अंदर आवेदन देना अनिवार्य होगा। एक वर्’ा से अधिक पुराना जन्म का मामला मान्य नहीं होगा। प्रसव संस्थागत हो तथा जन्म प्रमाण पत्र संबंधित अस्पताल तथा सक्षम पंचायत@ नगर निकाय से निर्गत हो। ऐसे कई “ार्तों को पूरा करने और प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने वाले परिवार ही योजना में “ाामिल हो सकता है। योजना में “ाामिल होने वाली बच्चियों को मिलने वाले लाभ में कक्षा छह से 12वीं की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाने तक कुल चार बार बालिका को एकमु”त रा”िा का भुगतान किया जाता है। सातवीं में प्रवे”ा करने पर 2000, नवमी में प्रवे”ा करने पर 4000, 11 वीं में प्रवे”ा पर 7500 रूपए का एकमु”त रा”िा का भुगतान किया जाता है। 11 वीं व 12 वीं में उपरोक्त के अलावा 200 रूपए प्रतिमाह स्कालर”िाप का भी प्रावधान है। बालिका की आयु 21 वर्’ा होने तथा 12 वीं की परीक्षा में “ाामिल हो जाने पर एक लाख आठ हजार छह सौ रूपए की एकमु”त रा”िा अंतिम रूप से भुगतान किया जाता है। लेकिन इसमें भी एक “ार्त जोड़ा गया है कि यह भुगतान तब होगा जब बालिका का विवाह 18 वर्’ा की आयु प्राप्त कर लेने पर ही हुई हो। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">जाहिर है कि इस योजना का स्वरूप और उदे”य बेहतर है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले कई समुदायों के लिए यह योजना काफी बेहतर साबित हो सकती है। लेकिन योजना की “ार्तों को देखते हुए यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि यह योजना आदिम जनजातियों को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई है। आदिम जनजातियों के लिए इस योजना की “ार्तें व पात्रता पूरी करना बेहद कठिन है। जंगलों में जीवन यापन करने वाले अ”िाक्षित आदिम जनजातियां जैसे बिरहोर-बैगा के लिए इतने तरह के प्रमाण पत्र जुटाना काफी मु”िकल है। इन “ार्तों को पूरा करने में बिरहोर समुदाय के लिए व्यवहारिक कठिनाईयां भी हैं। मसलन योजना में “ाामिल होने के लिए यह जरूरी करार दिया गया है कि बच्ची का जन्म संस्थागत प्रसव के तहत हुआ हो। यानी जिस बच्ची का जन्म किसी सरकारी या गैरसरकारी अस्पताल में हुआ हो और उनके माता-पिता के पास इसका प्रमाण पत्र उपलब्ध हो तभी यह बच्ची इस योजना में “ामिल हो सकती है। लेकिन बिरहोर समाज के लिए यह व्यवहारिक ही नहीं है। इस समाज के लोग जीवन यापन अपने तरीके से करते हैं। वे आमतौर पर प्रसव के लिए अस्पतालों में जाते ही नहीं हैं। ऐसे में उनके पास संस्थागत प्रसव का प्रमाण पत्र कहां से उपलब्ध होगा। इसी तरह “ार्तों में यह “ाामिल है कि बच्ची का जन्म प्रमाण पत्र देना होगा। साथ ही योजना के लिए आवेदन जन्म के एक वर्’ा के अंदर देना होगा। एक वर्’ा से अधिक पुराना जन्म का मामला मान्य नहीं होगा। बिरहोर या किसी भी आदिम जनजाति के लिए ये प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराना आसान नहीं है। हालांकि आदिम जनजाति और लक्ष्मी लाडली योजना में अंतरविरोध को सरकार ने भी पहचाना है। ऐसे अंतरविरोध को सरकार ने दूर करने का प्रयास भी किया। फिर भी बिरहोर व अन्य आदिम जन जातियों के लिए यह काफी साबित नहीं हुआ। लक्ष्मी लाडली योजना के लागू होने के कई माह बाद राज्य सरकार ने यह महसूस किया कि इस योजना का उदे”य परिवार नियोजन को स”ाक्त बनाना भी है। लेकिन यह उदे”य आदिम जनजातियों के मामले में उल्टा पड़ गया है। क्योंकि आदिम जन जातियों का संरक्षण व संवर्धन पहली “ार्त है। ऐसे में उनके लिए परिवार नियोजन की “ार्त उचित नहीं है। फिर सरकार ने 17 फरवरी 2012 को एक आदे”ा जारी किया। इसमें कहा गया कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों में जन्मी प्रथम या द्वितीय प्रसव से उत्पन्न बालिका को मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना के तहत सुयोग्य लाभुक घो’िात किया गया है, ब”ार्ते कि प्रसव संस्थागत हो। द्वितीय बालिका के लिए इस योजना की स्वीकृति देने हेतु यह “ार्त रखी गई है कि बालिका के माता-पिता के द्वारा बंध्याकरण@परिवार नियोजन अपना लिया गया है। लेकिन समुचित विचारोपरांत यह निर्णय लिया गया कि आदिमजनजाति समूह के आवदकों के मामले में परिवार नियोजन अपनाने की “ार्त को ”िाथिल किया जाता है। मर्गदर्”िाका की अन्य “ार्तें@ निदे”ा यथावत् रहेंगे। बहरहाल, आदिम जनजातियों को ध्यान में रखे बगैर तैयार की गई इस योजना से इस समुदाय के लोगों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। पूरे झारखंड में आदिम जनजाति इस योजना के लाभ से वंचित हो रही हैं। पूरे झारखंड मे अबतक कुछ गिने -चुने बिरहोर-बैगा जाति समूह की बालिकाएं इस योजना से लाभन्वित हो पा रही हैं। </span></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-86212334457960537812016-03-22T18:09:00.000-07:002016-03-22T18:09:14.542-07:00जांच एजेन्सी + न्यालाय त्र राजनीति<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">आलोका</span></div>
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<span style="font-size: large;">तामिलनाडू के राजनीति में नया मोड़ आया है यह मोड़ 2001 में भी देखने को मिला था पर उस वक्त के चल रहे राजनीति स्थिति कुछ और थी। सीधे- सीधे कहे तो भाजपा केन्द्र पर नहीं थी। अभी स्थिति यह है कि भाजपा केन्द्र में “ाासन कर रही हैंं। तामिलनाडू के राजनीति हलचल और जांच एजेन्सी एवं न्यायलय के प्रकिया से राजनीति मोड में एक बदलाव भारत के राजनीति में भी दिखने वाली है। अन्नाद्रमुक पार्टी की बड़ी नेता जयललीता का अदालती फैसला के बाद जेल जाना तय हो गया है। इससे तामिलनाडू के राजनीति स्थिरता में भुचाल आ गया है सता में बहुमत और जनता में सहानुभूति वाली सरकार का जेल जाने पर भाजपा की राजनीति सक्रिया और गठबंधन की राजनीति के आहट अब तामिलनाडू पर होने वाली है। यह एक राजनीति चाल के तरह किया गया कारवाई हो सकता है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">जयललीता@ अम्मा भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री है जिसके ही “ाासन काल में जेल जाना +पड़+ा। जयललीता पहली महिला मुख्यमंत्री है जिन्होंने 39 संसदीय सीटों में से 37 सीटे पर जीती और लोग सभा में बहुमत के साथ सता का कमान सभाली और लम्बी राजनीति “ाासन करने वाली महिला नेता का नाम एकलौता है। 2011 में हुए तामिलनाडू के चुनाव मंे अन्नाद्रमुद व उनके सहयोगीयों को जीत मिली थी। पूरी बहुमत से सता में आई इस सरकार का अभी डेढ साल का कार्यकाल बाकी है। जयललीता @ अम्मा का जेल जाना अन्नद्रमुक पाटी के लिए बड़ा झटका है 10 साल कि चुनाव नहीं लड़ने की अदालती फैसले से तामिलनाडू पर राजनीति समिकरण 2016 के चुनाव में बदलाव हो सकता है भाजपा और करूणानिधि या अन्य के गठबंधन के आहट है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पूरे दे”ा में जहां भाजपा की लहर है। तामिलनाडू में 18 साल पुरानी सरकार पर 18 साल पूराने मामले और न्यायापालिका के निर्णय एवं जांच एजेन्सी की लम्बी जांच प्रक्रिया पर प्र”न चिन्ह लगता है। इसलिए भी की 18 साल पहले आय से अधिक सम्पति के मामले प्रका”ा में आने के बाद भी जयललीता सता में कायम रही। अपनी ठाट बाट, एक रूपया के तन्खाह के अलावा 66 करोड के जमा आय, यही नहीं महंगे कपडे, और मंहगे चपल के सैकड़ों जोडियां के साथ दतक पुल के विवाह में किये ये खर्च, अम्मा नाम की कम्पनी और 100 से अधिक बैक एकाउंट दशार्या गया है। इन चीजों पर चर्चा लम्बे समय से तामिलनाडू में है और अभी भी रनींग पोजि”ान में है। एक तरह से कहे तामिलनाडू में अम्मा की कम्पनी की तूती बोलती है जहां सिमेन्ट के बोरा से लेकर पानी तक बेची जाती हो। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">सवाल यह उठता है अम्मा ने कई कम्पनीयां बनाई। यह कम्पनियां खुद के “ाासन काल में रजिस्टे”ान कराया होगा वह भी भारत के संविधान के अन्तर्गत ही , सारी कम्पनीयां से अच्छी आमदानी होती है और सारी कम्पनियों तामिलनाडू में काफी प्रचलित है। इन कम्पनियों के देख रेख के लिए केन्द और राज्य के अन्दर जांच एजेंसी भी बनी हुई है। जब एक केस को जांच करने में 17- 18 साल का समय लग जाता है। ऐसी स्थिति में इन विभाग का होने का क्या औचित्य? तामिलनाडू के तामाम विभाग पर सवाल बनता है। कई सालो पहले जब यह आय से अधिक सम्पति के मामले आये थे उसके बाद भी जयललीता ने “ाासन की कमान सभांले रखी थी। तब विपक्ष की भूमिका क्या थी। बहुमत वाली सरकार पर आये अदालती फेसला अन्नाद्रमूक की केन्द्रीय राजनीति के लिए यह पहला कदम तो नहीं जिसमें तामिलनाडू राज्य के तमाम एजेन्सी ने अपनी राजनीति साध रहा हों</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अन्नाद्रमुद के पास पहले से पनीरसेल्वम, राजकाज सभालने के लिए प्रयाप्त है अभी पार्टी में कोई संकट नहीं है। अदालत के फैसले के बाद तामिलनाडू में तनाव का महौल है। सहानूभूति और अम्मा के साथ अन्नाद्रमुक की स्थिति का पता चलता है। राज्य सभा में अन्नद्रमुक की 11 सीटे और विधानसभा में 37 सीटे अब काफी नहीं होकर नये गठबंधन की ओर इंसारा करता है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पूरे दे”ा में महारा’ट और बिहार में नये गठबंधन की राजनीति चल रही है तामिलनाडू में करूणानिधि सक्रिय हो गये है साथ में भाजपा कोे सक्रिय होना लाजमी है अच्छे दिन की “ाुरूवात “ाायद अम्मा के जेल जाने पर तामिलनाडू पर अजमा सकते है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">देखना होगा की भाजपा के केन्द्र्रीय “ाासन काल और अगामी चुनाव की आहट ने राज्य के अन्दर राजनीति के हलचल कें एक बदलाव के लिए सता परिवर्तन के लिए या सिर्फ इस भ्र’टाचार से लिप्ति को सजा देने के लिए है आने वाला समय तामिलनाडू की राजनीति की नयी दास्ता कहेगा। </span></div>
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-78350559792823264562016-03-22T18:04:00.004-07:002016-03-22T18:04:47.670-07:00जंगलों से उठती परियोजनाओं के विरोध की ज्वाला<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">झारखंड की राजधानी रांची से 90 किलोमीटर दूर चतरा प्रखंड का टण्डवा गांव। घाटियों और पहाडि़यों के पार। जंगलों से होकर सरसराती सांप की तरह भागती काली सड़कें और फिर माइंस इलाके में घुसते ही बारिश के बीच उठता अधजले कोयलों का धुंआ। करीब से दिखता है दामोदर नदी की दुर्दशा और काली घाटियों पर अधखुले माइंस का नजारा। इसके बाद भी कुछ हलचल नजर आती है। और वह है जंगल में उठती परियोजनाओं के खिलाफ जन विरोध की ज्वाला।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">टण्डवा के ग्रामीण सेंट्रल कोल फिल्ड्स, सीसीएल की दो परियोजनाएं, मगध व आम्रपाली का जोरदार विरोध कर रहें हैं। वे इन परियोजनाओं के लिए जान देने के लिए तो तैयार हैं, पर जमीन नहीं। परियोजनाओं के लिए गलत तरीके से जमीन की बंदोबस्ती कराए जाने के खिलाफ उनका गुस्सा फूट रहा है। गुरूवार को टण्डवा में कई गांवों के लोग जुटे और सामूहिक रूप से सीसीएल की परियोजनाओं का विरोध किया। बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरूष सभी तीर-धनु’ा, लाठी-डंडा और हंसिया लेकर शामिल हुए। टण्डवा के अंचल कार्यालय परिसर में सभा हुई। बारि’ा के बीच भी लोग छाता लेकर डटे थे। आदि हक संघर्ष समिति, जमैक और कर्णपूरा बचाओ संघर्ष समिति के सदस्यों ने भी गांववालों का साथ दिया।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">कितनी जमीन चाहिए </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">सीसीएल की मगध परियोजना के लिए 1247 हेक्टेयर व आम्रपाली परियोजना के लिए 1741.90 हेक्टेयर जमीन की जरूरत है। इसमें मगध परियोजना के लिए 11 गांव जिसमें लातेहार के बालूमाथ प्रखंड के दो गांव और चतरा प्रखंड के टण्डवा के 9 गांव की जमीन प्रस्तावित है। आम्रपाली परियोजना के लिए टण्डवा की जमीन प्रस्तावित है। इस परियोजना की 1247 हेक्टेयर जमीन में 690 हेक्टेयर वनभूमि, 198.36 हेक्टेयर रैयती जमीन और 358.54 हेक्टेयर गैरमजरूआ खास जमीन ’ाामिल है। वहीं, आम्रपाली परियोजना के लिए 216 हेक्टेयर वनभूमि, 503 हेक्टेयर रैयती जमीन और 2021.90 हेक्टेयर गैरमजरूआ खास जमीन की जरूरत होगी.</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">ग्रामीणों का कहना है कि 2006 में जब इस क्षेत्र में दो परियोजनाएं शुरू करने की बात हुई और जनसुनवाई के लिए ग्रामीणों को बुलाया गया, तब लोगों ने मंच पर चढ़कर इसका विरोध किया। लोगों का विरोध देखकर सीसीएल के पदाधिकारी मंच तक आये भी नहीं। भूमि अधिग्रहण के नये कानून के अनुसार किसी भी परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण के निमित 80 प्रतिशत लोगों की सहमती जरूरी है। जब कि ग्रामसभा ने इन परियोजनाओं का शुरू से ही विरोध किया है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">दलालों को मिला जमीन का पट्टा</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">ग्रामीणों के अनुसार गैरमजरूआ जमीन का पट्टा स्थानीय ग्रामीणों को मिलना चाहिए। लेकिन सीसीएल ने गलत तरीके से बंदोबस्ती करा कर जमीन परियोजनाओं के लिए हथियाने का प्रयास किया है। आदि हक जनसंघर्ष मोर्चा के सदस्य इलियास अंसारी का कहना है कि गैरमजरूआ खास जमीन के लिए भू माफियाओं की मार्फत दलाल खडे कर उन्हें पट्टा दिया गया और दलालों ने वह पट्टा सीसीएल को दे दिया। इस तरह फर्जी बंदोबस्ती से सीसीएल को 150 एकड़ जमीन का पट्टा मिल गया। जब लोगों ने इसकी शिकायत डीसी से की, तो उन्होंने भूमि सत्यापन का आदेश दिया। इस क्रम में पता चला कि दलालों व भू-माफियाओं को जमीन का पट्टा दे दिया गया है। जब कि ग्रामीण लंबे समय से जमीन पर सामूहिक पट्टे की मांग कर रहे हैं। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पदाधिकारियों को बनाया था बंधक</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">दो माह पहले देवलगड्डा गांव की ग्रामसभा ने इस विषय पर विचार-विमर्श किया और सीसीएल के एक पदाधिकारी व राजस्व कर्मचारी को बंधक बना लिया था। ग्रामसभा ने उनसे लिखित रूप से आदेश मांगा कि बिना ग्रामसभा की अनुमती के गांव में किसी परियोजना का प्रवेश नहीं होगा। उन्होंने लिखित आदेश तो दिया, पर मुक्त होते ही करीब 20 ग्रामीणों पर मुकदमा लाद दिया। बाद में वे ग्रामीण जमानत पर बाहर आए।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">एनटीपीसी के प्रोजेक्ट से जुड़े हैं कोल परियोजनाएं</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">ने’ानल थर्मल पावर काॅरपोरे’ान, एनटीपीसी का पावर प्लांट का ’िालान्यास पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने किया था। इस पावर प्लांट के अंतगर्त कर्णपूरा घाटी जहां हजारीबाग, चतरा और लातेहार की जमीनों का अधिग्रहण प्रस्तावित है। इस पावर प्लांट के लिए 2600 एकड़ जमीन चाहिए, जिसमें 1400 एकड़ जमीन उन्हें मिल चुका है। ये जमीनें ऐसे लोगों ने दी है जो गांव से बाहर रहते हैं। पावर प्लांट के लिए कोयला चाहिए। जिसके लिए इन कोल परियोजनाओं को जल्दी ’ाुरू करने की छपटाहट है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">क्या कहता है नया भूमि अधिग्रहण कानून </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">1.नये भूमि अधिग्रहण कानून के तहत शेड्यूल एरिया में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करने से पहले ग्राम सभा की अनुमती जरूरी है। इसके बिना भूमि अधिग्रहण नहीं होगा।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">2.शेड्यूल एरिया के अलावे दूसरी जगहों पर भूमि अधिग्रहण से पहले 80 प्रतिशत स्थानीय रैयतों व किसानों की सहमती जरूरी है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">3.कई साल पहले विस्थापित हुए लोगों को भी न्याय मिलेगा।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">4. पांच साल पुराने जमीन अधिग्रहण मामलों में भी यदि लोग निजी कंपनियों के लिए जमीन देने को तैयार नहीं थे, तो वैसी जमीनें वापस होगी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">क्या कहते हैं ग्रामीण</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">1.पिछली दो परियोजनाओं में हमारा परिवार बार- बार विस्थापित हुए हैं। मैंने विस्थापन का दंश झेला है। अब और किसी को विस्थापित होते हुए नहीं देख सकता। हमारा संघर्ष जारी रहेगा।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- अर्जुन समद, विस्थापित</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">2. टण्डवा अनुसूचित क्षेत्र में है, जहां छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट लागू है। वनाधिकार कानून के तहत स्थानीय लोगों को पट्टा मिलना चाहिए, लेकिन उन्हें पट्टा नहीं देकर भू-माफियाओं को पट्टा दिया जा रहा है। पिपरवार परियोजना के किसी विस्थापित का पुनर्वास नहीं किया गया। दूसरी बात, खेती योग्य जमीन पर परियोजनाएं क्यों चलायी जायें?</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- दीपक दास, कर्णपुरा बचाओ संघर्ष समिति</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">3.बाहरी लोगों को गैरमजरूआ खास जमीन का पट्टा देकर परियोनाओं के लिए गलत तरीके से जमीन हथियाने की तैयारी है। स्थानीय आदिवासी, मूलवासियों ने नाम पट्टा देने का इराना नहीं, क्योंकि ये ग्रामीण परियोजनाओं के लिए जमीन नहीं देंगे।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- इलियास अंसारी, आदि हक संघर्ष मोर्चा </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">क्या कहती हैं टण्डवा की महिलाएं</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">1. सात एकड़ जमीन है हमारा। धान, मकई, लोटनी, सुरगुज्जा, सब्जियां उगाते हैं। जमीन कैसे दें? हम जमीन बिलकुल भी देना नहीं चाहते। हमारी जमीन हमारी है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- झरनी देवी, होन्हें गांव</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">2. परिवार में दो लड़का और आठ लड़कियां हैं। पूरा परिवार खेती - गृहस्थी पर ही टिका है। जमीन चली गयी, तो हमारे पास क्या बचेगा?</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- गंगिया उरांव, देवलगड्डा गांव</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">3. हम किसी दूसरे को लूटने नहीं जाते हैं। अपनी जमीन पर जो उपजाते हैं, उसी से खुश हैं। किसी परियोजना के लिए जमीन नहीं देना चाहते।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- फुलमनी, देवलगड्डा गांव</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">क्या कहते हैं पदाधिकारी</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">यहां जो समस्याएं दिखी हैं उनसे एसडीओ को अवगत कराया जायेगा। इसके बाद एडिशनल कमिशनर व डिप्टी कमिशनर को इनकी जानकारी दी जायेगी। इसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाए।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- रश्मी लकड़ा, बीडीओ सह सीईओ, टण्डवा।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">परियोजनाओं के लिए हमें सरकार द्वारा जमीन उपलब्ध करायी जाती है। जमीन पर यदि किसी तरह का विवाद है तो सरकार उसे दूर करने के बाद ही हमें देगी। यदि लोगों का विरोध है तो इसकी पूरी रिपोर्ट आने के बाद ही आगे की कार्रवाई करेंगे।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">- एसएन सिंह, जेनरल मैनेजर, लैंड एंड रेवेन्यू, सीसीएल</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-747502867176507522015-05-11T00:21:00.003-07:002015-05-11T00:21:35.558-07:00राजनीति पार्टी में महिला विंग और सक्रिय राजनीति में महिलाएं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<b style="color: #cccccc; font-size: 21.3333339691162px;">आलोका रांची </b></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>भारत में बड़ी और बूढ़ी राजनीतिक पार्टियां हंै, काग्रेस, भाजपा, और सी0पी0आई, सी0पी0एम0, इनके हाथों में लम्बी संसदीय राजनीति में सक्रिय भूमिका रही. व्यवस्था को अपने हाथ में रखा, राजनीति के तरीके अपने मतलब से चलाये. जिसमें परिवारवाद से लेकर भ्रष्टचार लबरेज रहा। इन पार्टियां का राजनीति सफर लम्बा रहा प्रक्रिया भी लम्बी रही. पर इससे जनता असंतुष्ट रही।. जनता की असंतुष्टी ने क्षेत्रिय राजनीतिक पार्टी को जन्म दिया और ये क्षेत्रिय राजनीतिक पार्टियां कुकुरमुते की तरह गांव की चैपाल से लेकर नगर के पान दुकान तक छा गयी। राज्य स्तर की स्थानीय राजनीति पार्टिया स्थानीय मुद्दा को राजनीति समस्या बनाया जिससे राज्य के अन्दर उनकी ताकत तो बढ़ी। इस बढ़ती ताकत ने नई राजनीति समस्या को पैदा कर दिया। स्थिति यहां तक पहुंची कि भारत की जनसंख्या और जाति के आधार पर राजनीतिक पार्टीयां का गठन ने भाषा, संस्कृति, जाति और क्षेत्रवाद को जन्म दे दिया। जाति की राजनीति आसमान छूने लगी। समिकरण ऐसा बना कि केन्द्र की राजनीति के तर्ज पर वंशवाद, भाई भतीजावाद को जगह मिली। एक तरह से कह सकते है परिवारवाद जातिवाद भारत कि राजनीति पर हावी रहा। उसी के नक्से कदम में झारखण्ड भी आगे बढ़ चला। इन वाद के हावी होने के क्रम में कभी महिलावाद अपनी जगह नहीं बना पाई कारण कि पुरूष राजनीति ने महिलाओं को सत्ता तक आने का मौका ही नहीं दिया। बल्कि राजनीति पार्टी में महिलाओं को इस्तेमाल किया।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>राजनीति है परिवर्तन के द्वारा </b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>कहा जाता है जिस देश में जिनती तेज राजनीति होगी उतनी ही तेजी से परिर्वतन होगा। इसमें सत्ता का परिवत्र्तन जरूरी नहीं, पर राजनीति गतिवधि जैसे जैसे तेज होती है। समाज में परिवर्तन भी तेजी से होता जाता है। इस परिर्वतन और राजनीति दौर में पूरी राजनीति की गलियारों में एक वर्ग का कब्जा है.। यह वर्ग कभी महिलाओं को राजनीति में आने का मौका नहीं देता है। भारत की प्रधानमंत्री महिला जरूर रही पर वह पिता के बनाये सता की परम्परा को चला रही थी। भारत के 65 साल कि आजादी के बाद इंदिरा गांधी ही महिला प्रधानमंत्री रहीं। इन्होंने भी कभी राज्य स्तर पर महिला मुख्यमंत्री को लाने की कोशिश नहीं की। महिलाओं के साथ- साथ यही स्थिति दलित, आदिवासी, मुस्लिम, और युवाओं के साथ रहा। यही कारण है कि स्थानीय पार्टी का उभरना और स्थानीय मुद्दा का उठना लाजिमी रहा। पर महिलाओं को राजनीति में लाना किसी का मकसद नहीं रहा। </b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>सत्ता के इस गलियारे में नव गठित झारखण्ड की राजनीति राह पर केन्द्र कि राजनीति हावी रही। स्थानीय राजनीति और राष्ट्रीय राजनीति के संघर्ष-सफर में वर्चस्व की लड़ाई जारी है। इस वर्चस्व की लड़ाई में अलग- अलग कार्ड का इस्तेमाल पार्टी स्तर पर किया गया। राष्ट्रीय और स्थानीय पार्टी के बीच जब-जब सत्ता का समीकरण गड़बडाया तब-तब महिला, जाति, दलित, आदिवासी की बात आई। मौका मिलते ही पत्नीवांद भी हावी रहा है पर संगठन से जुड़ी महिलाएं सता की राजनीति में नहीं आ पाई। </b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>खास तौर पर महिलाओं के राजनीति के कदम पर गौर किया जाए तो हर राजनीतिक पार्टी की ंमहिला विंग, दलित विंग, आदिवासी विंग रही हंै। इस विंग से एक भी महिला नेता का उभर कर नही आ पाना, अपने आप में एक सवाल है। यही कारण है कि महिलाएं संसदीय चुनाव की प्रकिया में झारखण्ड में खड़ी नहीं मिलती हंै 2001 में झारखण्ड में पहला मंत्रीमण्डल बना, झारखण्ड का इतिहास गढ़ा गया। उस वक्त आदिवासी पुरूष मुख्यमंत्री बने, जबकि बीजेपी के पास कई ऐसी महिलाएं थी। जो राजनीति में लम्बे समय से जुड़ी है। </b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>यही हालत अन्य सभी पार्टी के साथ रही और आखिकार पूरा मंत्रिमंडल महिलाओं के बिना ही गठन हो गया। 81 विधानसभा वाला यह मंत्रीमंडल में औरत गौण हो गयी। लम्बी राजनीति संघर्ष के बाद 8 महिलाओं ने राजनीति में भागीदारी निभाई। लम्बी राजनीति संघर्ष में रही डा0 सुधा चैधरी, प्रतिभा पाण्डे, के अलावा अनेकों महिलाएं कहां गायब हो गयी जो नेशनल पार्टी के लिए काम करती थी। जिसका नाम चुनाव आने पर भी नहीं लिया जाता हंै।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>झारखण्ड अलग राज्य के बाद में मेनका सरदार ने पूर्व सिंहभूम में संक्रिय राजनीति कर झा0 विधान सभा तक पहंची है जोबा माझी, अन्नपूर्णदेवी, सीता सोरेन पति के स्थान पर या परिवार के द्वारा प्रोजेक्टेड महिलाएं है इनका राजनीति जीवन का संधर्ष दिखता नहीं है इसलिए ऐसी महिलाएं राजनीति में रह कर भी महिलाओं के लिए नगण्य है गीता कोड़ा, गीताश्री उरांव, विमला प्रधान की स्थिति राजनीति पार्टी में महिलाओं की मांग के आधार पर लाया गया हंै। इन महिलाओं को न राजनीति पार्टी द्वारा सक्रियता प्रदान किया गया और न महिलाएं खुद को राजनीति में शामिल करने के लिए सक्रिय रही, चुंकि पुरूष वर्चस्व की ससंद प्रणाली में एका दुका ही महिलाएं राजनीति में आई और महिलाओं को स्थान बनाने में लगी हंै। उपस्थिति मात्र दर्ज किये हंै। </b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>झारखण्ड में महिलाएं सक्रिय हैं। तब जब पति राजनीति में सक्रियता प्रदान करते है । 24 जिलों के यह झारखण्ड में बड़ी राजनीति पार्टी के महिला विंग है पंचायत चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण के बावजूद भी महिलाओं को पुरूष द्वारा चुनाव लड़ा कर मुखिया, सरपंच, वार्ड पार्षद तक बना दिया। अलग- अलग जाति समुदाय मंे पंचायत चुनाव से राजनीति की आशा दिखाई दे रही है। पत्नी को राजनीति क्षेत्र में उतार कर, ये महिलाएं सामाजिक काम के आधार या इस चुनाव में अपनी इच्छा से नहीं आई है। यह एक मजबूरी है, महिला आरक्षण के कारण महिलाओं को उनके पतियों द्वारा चुनाव में उतारा गया है। चुनाव जीतने के बाद महिलाओं के सारे काम, उनके निर्णय पति ही कर रहे। यहां तक कि निर्णय और ब्लाॅक जाने का काम पति के हाथ में है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को स्वयं के निर्णय से राजनीति सता के गतिलयारों को झांकने का मौका तो मिल रहा है पर वह सता के अनुभव लेने तक उनके लिए स्वतंत्र राजनीति के लिए खुद को खड़ा करना मुश्किल होगा। इसमें भी पूरूष की राजनीति संक्रियता के साथ राजनीति गभ्भीरता दिखाई देती रही हंै। </b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>आदिवासी और मूलवासी में जो महिलाएं उच्च वर्ग से शिक्षित है । उनका एका- दुका राजनीति में प्रवेश हो चुका है। आदिवासी महिलाएं झारखण्ड में काफी सक्रिय हैं पर वह सामाजिक मुद्दों को लेकर झारखण्ड कि राजनीति उठा- पटक से उन्हें लेना देना नहीं। उनका चूल्हा से लेकर चुनाव तक की प्रक्रिया आंदोलन के माध्यम से चल रही है। जिस जाति समुदाय आज भी राजनीति और राजनीति पार्टी, के महिला संगठनों से दूर है जिसमें एक ही आबादी मुस्लिम महिलाओं की रही है, इन समुदाय के अल्संख्य संगठन है। वह सिर्फ अपनी व्यक्तिगत लाभ या जातिगत लाभ तक सिमित हंेच उनका अपने समाज की समस्या राजनीति समस्या नहीं बन पाई जिससे पूरे झारखण्ड में मुस्लिम महिला राजनीति आर्थिक सामाजिक, संस्कृति रूप से पिछड़ती चली जा रही है। वही स्थिति आदिमजनजाति समुदाय की रही है। आदिमजनजाति के समूह की अपनी समस्या रही हंै। वहां पुरूष वर्ग ही राजनीति से वंचित है तो महिलाओं के लिए स्वयं के बल पर स्थान बना पाना कल्पना के परे हंै।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>आज समाज और राजनीति दोनों में बदलाव आया है । समाज में परिवार टूट रहे है । वही महिलाओं को संगठित करने की प्रकिया तेजी से चल रही है। स्वयं सहायता समूह से लेकर मुहल्ले और गांव-टोला, में महिलाओं का संगठन है । इन संगठनों में कार्यरत महिलाएं काफी सक्रिय है पैसा जमा करना बैक से जोड़ना और पैसा के बदले पैसा बनाने के खेल में वो शामिल हो चुंकि है । जिसका एकमात्र उद्देश्य किसी भी तरह का लाभ लेना। आज समाज में यह स्थिति है कि घर टूट रहे है और बाहरी समाज पूंजी के लिए महिलाओं को संगठित किये जा रही है। जो लोग इन्हें संगठित करते है या कर रहे है और करते आ रहे है, उनमें से राजनीति पार्टी भी शमिल है । पर सता का विकेन्द्रीकरण इस महिला संगठन को राजनीति सक्रियता प्रदान नहीं कर सकता और न परिवार को बचा सकता है। टूटे हुए परिवार घर के बाहर संगठित होने का बात करते है निश्चत रूप से एक राजनीति प्रक्रिया हो सकती है। जब परिवार टूट रहा ह,ै समाज टूट रहे है तब राजनीति पार्टी का टूटना तो तय है। झारखण्ड में भी कई राजनीति पार्टी के अन्दर विभाजन हो चुका हंै वही राजनीति पार्टी के विभाजन कि शिकार संगठन में महिलाओं का विभाजन हो रहा है। उंचे ओहदे पर कार्यरत रही महिलाएं राजनीति कर रही महिलाओं ने भी महिलाओं के लिए राजनीति में आने का रास्ता साफ नहीं कर पा रही है और न प्रयास कर पा रही हंै। </b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>संसदीय चुनाव का फल इतना मीठा होता है कि पुराने और पहचान रही पार्टी में अपना किस्मत अजमाना चाहते है । इस दौर में यह परिर्वतन आया कि हर महिला किसी न किसी संगठन के सदस्य है जिसका रिश्ता राजनीति पार्टी के साथ भी है । यह स्थिति बुर्जुआ पार्टी के भी साथ है और झारखण्ड और भारत में बुर्जुआ पार्टी की स्थिति में औरतों को उपेक्षित रखने और उपेक्षित रखने के सिवाय कोई विकल्प नहीं हैं ।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>संसदीय चुनाव में रही कम्युनिस्ट पार्टी भी जिसके खेमे में समाजवाद लाने कि कल्पना है ।उसकी के आधार पर संसदीय चुनाव में अपने को संघर्षरत मानती है और ठीक- ठीक राजनीति दृष्टिकोण रखने वाली पार्टी माना जाता है ।जिसका झारखण्ड में राजनीति सफर काफी कमजोर रहा है ।ऐसे स्थिति में कमजोर वर्ग वाली महिलाओं को कम्युनिस्ट पार्टीयां के साथ कार्य कर रही है । पर उन्हें चुनावी प्रकिया से वो कोशो दूर हंैं इस दूरी से कम्युनिस्ट पार्टीयां में नाममात्र की महिलाएं संगठन रह गयें हंेच जिससे न राजनीतिकरण की सभंवना है और न राजनीति से कोई लाभ मिलने वाला हैं ।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>तामाम तरह कि राजनीति प्रकिया में कुल मिलाकर राजनीति में महिलाएओं की स्थिति दयनीय है पर परिवार कि राजनीति में वे सक्रिय है यदि महिलाएं राजनीति में अपनी भागीदारी निभाएंगी तो समाज में एक नया परिवर्तन तो आएगा और समाज को राजनीति रूप में परिवर्तन की ओर ले जाने में इनकी हस्तक्षेप पूरे राज्य की राजनीति को एक नयी गति प्रदान करेगा। </b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b><br /></b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-32047255078096531432015-05-11T00:19:00.002-07:002015-05-11T00:19:54.987-07:00महिला के आंदोलन की दिशा क्या है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 29.3333339691162px; line-height: 33.7333335876465px;"><b>आलोका</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 29.3333339691162px; line-height: 33.7333335876465px;"><b>2014 के चुनाव मेरे मन में कई सवाल खड़ा कर रहा है इस चुनाव में मोदी की लहर को लोगो ने बताया की यह सता का परिवर्तन की लहर है इस परिवर्तन के दौर में सता का परिवर्तन मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की है इससे क्या परिवर्तन होने वाला है यह अदृश्य है। जिसे मेरा जेहन पचा नहीं पा रहा है इसलिए भी नहीं की चर्चा जो चल रही है वह मात्र मेरे हिसाब से सत्ता का हस्तान्तरण की हो सकती है। जिसका अभी ठोस प्रमाण नहीं है। लोकतंत्र की इस प्रक्रिया में जनत द्वारा चुना जाना ही अंतिम माना जाता रहा है जिसकी ताकत हम देखेगे। यह सत्ता परिवर्तन महासमर में एक सवाल बनता है कि महिला ताकत राजनीति राजनीति संधर्ष में कहा है?</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 29.3333339691162px; line-height: 33.7333335876465px;"><b>मैंने कई लेख महिलाओं की हित और आंदोलन के मूल्यांकन करते हुए लिखे है जिसमे राजनीति संगठन पर महिलाओं को राजनीति भागीदारी से दरकिनार जैसे कई सवाल को लिखी पर मेरा यह सवाल कागज के पन्नों पर या कागज के अक्षरों पर घुमती फिरती मुरझाती रही है यह भी सवाल आया कि महिला सशक्तिकरण के नाम पर लाखों महिलाओं को संगठित किया गया और यह सत्य भी है जिसे सरकार और राजनीति पार्टी ने काफी मेहनत की कई तरह के प्रेक्टिस में लाए महिलाए घर से बाहर आई शिक्षा ली नौकरी पाई राजनीति संगठन में भाग ली स्वतंत्र हुई कई बहस पर भाग लेती रही कई जगहों पर अपने को खड़ा कर पाई जिसके तामाम उदाहरण हमारे समाज में हमारे अगल- बगल में मौजूद है जिसका असर हुआ कि महिला हिंसा कानून से लेकर महिलाओं के आजादी तक मांग समाहित है।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 29.3333339691162px; line-height: 33.7333335876465px;"><b>मुझे इस चुनाव के बाद यह लगने लगा है कि महिलाओं का राजनीति सशक्तिरकण किया जाना चाहिए इसलिए भी कि हर इंसान का काम का उदे्दश्य का अन्तिम लक्ष्य राजनीति होता है उसी तरह महिलाओं के सशक्तिकरण का लक्ष्य राजनीतिकरण होना चाहिए तभी महिलाए राजनीति रूप से सोच सकेंगे। हमारे समाज की समाजिक ढ़ाचा ही कुछ ऐसा है कि महिलाओं को हर कुछ मांग कर जीना है यानि की महिलाओं को एक मालिक चाहिए जिससे वह मांग सके।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 29.3333339691162px; line-height: 33.7333335876465px;"><b>मैं जब स्कूल में पढ़ती थी उस वक्त रांची की एक महिला संगठन महिलाओं को मुददो के साथ लगातार संधर्ष करती थी। उस संगठन को चलाने वाली महिलाए प्रोफसर थी वह महिलाओं के समस्या को लेकर सड़क से संसद तक अपनी आवाज उठाती वह भी राजनीति रूप से उनकी राजनीति समझदारी ने राजनीति में महिलाओं लाने में बाध्य होना पड़ा ये सभी महिलाएं समाज की प्रेरणा जरूर बन गयी है पर राजनीति महिला नही बन पाई ऐसी स्थिति में पूरे भारत में चल रहे महिलाओं की आंदोलन पर कड़ा सवाल उठता है िकइस आंदोलन का क्या औचत्य?</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 29.3333339691162px; line-height: 33.7333335876465px;"><b>महिलाएं संगठित है वह भी भेडिया के समूह की तरह उनका कोई मकसद नहीं है। यदि मकसद होता तो 2014 के इस चुनावी समर में राजनीति पार्टी मे ंचुनाव के समय जिस तरह से दल- बदल का खेल चला उसे खेल का इस्तेमाल कर महिलाएं भी सत्ता परिर्वतन राजनीति की धारा में शमिल हो सकती थी। मुख्यधारा की राजनीति का दामन थाम सकती थी पर ऐसा वह कर नहीं पाई यदि यह हुआ होता तब भारत की तस्वीर आधी आबादी के लिए कुछ और होता और महिलाएं इस सत्ता हस्तान्तरण में नहीं वास्तव में राजनीति परिवर्तन की लहर दौड़ता। संस्कृति गतिशीलता की लहर होती हर क्षेत्र में परिर्वतन का उमग होता है। अफसोस भारत के किसी भी महिला संगठन ने राजनीति के इस गतिविधि पर सवाल नहीं किये ।तब मतलब समझ में आता है कि महिलाओं ने मलिक के लिए रास्ता साफ किया है और अभी महिलाओं को सत्ता की जरूरत नहीं दिखाई दे रहीं है।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 29.3333339691162px; line-height: 33.7333335876465px;"><b>अब महिलाओं के तामाम संगठन संस्था आंदोलन को यह मूल्यांकन करना चाहिए की वह घर के अन्दर की राजनीति में आपने को फिट समझती है या फिर उन्हें चुनावी राजनीति में आने की जरूरत है यह बहुत जरूरी है कि समाज में आधी आबादी के लिए राजनीति पार्टी ने जो एजेण्डा बनाया है अपने मेनीफेसटो में उसे स्वीकार कर लेना या एस पर आत्म आलोचना जैसे कुछ संवाद की स्थिति बन पाए। महिलाओं को क्या जरूरत है? क्या समस्या है? क्या चाहिए? यह तय कौन करेगा इसे तय करने के लिए उन तामाम राजनीति पदो के लिए चुनावी समर में झोकना होगा और राजनीति में रह कर राजनीति बहस चलानी होगी।</b></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-75051129904325617592015-05-11T00:17:00.000-07:002015-05-11T00:17:47.617-07:00पुलिस मुखविरी बनाम बलात्कार <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">आलोका </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">नक्सल समस्या देश की बड़ी समस्या हंै। इस समस्या से झारखण्ड के चैबीसो जिले प्रभावित हैं। विगत 5 सालों से केन्द्र सरकार लगातार नक्सल समस्या को निपटने के लिए तहर- तरह के हथकन्डे अपना रही है। ग्रीनहंट प्रोजेक्ट, आईपीए प्रोजेक्ट, आत्मसम्र्पन करने वाले नक्सलों को पुरस्कार देना एवं उन्हें नौकरी का प्रलोभन देना, एसपीओ कि नियुक्ति कराना वैगरह उन्हीं हथकन्डों के हिस्से हैं। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">झारखण्ड में जहां विकास कि रौशनी नहीं पहुंची है, और लोग अपने हक अधिकार को नहीं जानते उन्हीं इलाकों में नक्सलयों का विकास हुआ है। सरकार के नजर में नक्सली समस्या है जबकि नक्सलियों के नजर में नक्सलवाद समस्या का समाधान हैं। इन्हीं अंतरविरोधों के बीच झारखण्ड और केन्द्र सरकार नक्सलियों/ नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए ग्रीनहंट अभियान चलाया। जिसके तहत निर्दोष आदिवासियों, मूलवासियों, शोषितों एवं पीडितों का इनकाउंटर किया तथा कई लोगो जेल में डाल दिया। आज कल प्रशासन नक्सलियों की मुखविरी के लिए एसपीओ की नियुक्ति कर रहा है। इस नियुक्ति का न ही कोई लेखा जोखा है और न ही कोई प्रमाण। एसपीओ कि नियुक्ति के लिए पहले गांव के दंबग और गुंडा किस्म के लोगो का चयन किया जाता था। उनका काम था नक्सलियों की पहचान कराना, उनकी गिरफतारी करना, उनकी हत्या कराना इत्यादि इसके बदले में प्रशासन उन्हें 4000 रूप्ये महिना देती है। आजकल तो एसपीओ की नियुक्ति में लड़कियों का इस्तेमाल किया जा रहा है।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">महिला एसपीओं के नियुक्ति के बाद प्रशासन उससे जो कहती है बड़ा ही शर्मनाक है। विश्वस्त सुत्रों से ज्ञात हुआ है कि लड़कियां बड़े नक्सली नेताओं के साथ झुठ प्रेम का स्वांग रचती हैं और उन्हें गिरफतार करवाती हैं। इस प्रक्रिया में यदि लड़की को कुछ हो जाए तो प्रशासन उसकी जिम्मेवारी भी नहीं लेगा। क्यों कि उन एसपीओ लड़कियों के पास कोई प्रमाण नहीं होता। बाद में लड़कियां उनके घर परिवार बदनाम होते है सो अलग। राज्य और केन्द्र सरकारों के द्वारा नक्सलवाद खत्म करने का यह तरीका एक षडयंत्र हंै। और षडयंत्रकारी सरकार कभी भी जनहित की सरकार हो ही नहीं सकती। यदि नक्सवाद षडयंत्र करता है तो वह भी समाजहित में नहीं है। क्योंकि षड़यंत्र के गर्भ से क्रांति का जन्म नहीं होता है। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">छः हजार एसपीओ (मुखविरी) कार्यरत है वीरबंकी में </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">वीरबंकी लाल कोरीडोर का इलाका हैं। इस इलाके में नक्सलियों को खत्म का अभियान जारी हंै। खुंटी जिला के अड़की ब्लाॅक से एक कि0मी0 की दूरी पर अड़की थाना स्थिति है। थाना से कुछ ही दूरी पर पंचायत भवन है। जहां सरकार के द्वारा मिलिट्ररी के जवानों को रहने कि सुविधा प्रदान की गयी है। यहां नक्सलियों और प्रशासन के बीच संघर्ष जारी हंेच</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"> वीरबंाकी का यह इलाका नक्सल के कब्जें में हैै। वहां न केन्द्र की चलती न राज्य सरकार की चलती है. वहा चलती है तो बंदुक की सरकार। इस गांव के जो लड़कियां पढ़ने के लिए गांव से बाहर जाती हैं, उन लड़कियों को पुलिस निशाना बनाती आ रही है। नक्सलियों के बारे में जानकारी देने पर उन छात्राओं को पुलिस कि नौकरी तथा 4000 रूपये महिना देने का प्रलोभन देकर उन्होंने मुखविर के रूप में इस्तेमाल कर रही है। जिन्हें आज एसपीओं के नाम से जाना जाता हंै। पूरे वीरबांकी इलाका में 6000 एसपीओं कार्यरत हंै। इनमें अधिकांश छात्र एवं छात्रा हैं।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">देवन्द्र मुण्डा कौन है</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">चर्चा है सुत्रों ने बताया कि देवन्द्र मुण्डा नामक व्यक्ति की नियुक्ति एसबीओ कि लिए अड़की थाना के में किया गया है। जिसका एसपीओ के लिए लडकियों की बहाली करना और फंस चुकी लडकियों को आॅफिसर के पास परोसना। जिसमें सबसे ज्यादा 15 साल से भी कम उम्र कि लड़कियां छा़त्रा है वह गांव में नक्सल कहां, कौन है उनके निशानदेह पर नक्सल से जुडे लोगो की हत्या कि जाती हंै हत्या के बाद गांव में उस लड़की के सहयोग मिलने कि खबर पहुंचाया जाता ताकि लड़की पैसे की मांग न करें और गंाव वापस जाने पर उसे वहां के लोग हत्या कर देगे कि धमकी दी जाती हंै, गोली मार देने कि धमकी दी जाती है और लड़की को जैसा चाहा वैसा उपयोग करते है। मतलब कि उन लड़कियों का षारिरक सोषण होता हंै।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">शानी मुण्डा को पुलिस ने बनाया मुखविरी-ः</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">शांनी मुण्डा 8वीं की छात्रा हंै। उसकी उम्र 14 साल हंै। वह कटूई गांव की दाड़ी टोला के निवासी है। उसके पिता बिरजू मुण्डा साधारण किसान है। सप्ताहिक हाट में पान बेचते है। मां गांगी मुण्डा पूर्ति हडि़या बेचती है। शानी मुण्डा के माता पिता ने अपनी बेटी को हाईस्कूल कि शिक्षा दिलाने के लिए गांव की कुछ लड़कियों के साथ पढाई करने के लिए अड़की ब्लाॅक भेजा था। शानी मुण्डा और उसके ही गांव की कुछ लडकियां अड़की ब्लाॅक में थाना के पास हीे 250 रू0 प्रतिमाह किराये के मकान में रहकर परियोजना विधालय में पढ़ाई शुरू किया था। क्योंकि यह स्कूल उसके गांव से दूर था। जिस मकान में रहती थी उसका मकान मालिक हडिया बेचता था। उसके पास गांव के आसपास के लोग और अडकी थाना के पुलिस जवान हडिया पीने आते थे। कुछ समय बाद कुछ लड़कियां घर छोड कर चली गयी और साथ में रहने वाली शानी मुण्डा वहां अकेली रह गयी। जिसका सम्र्पक यहां के थाना द्वारा नियूक्त एसबीओ का काम करने वाला देवेन्द्र मुण्डा से हुई। देवेन्द्र मुण्डा ने शानी को 4000 रूपये तन्खा पर एसपीओ यानि कि नक्सल की मुखविरी करने के लिए रखा। इसके लिए उसने शानी मुण्डा को प्रशिक्षत भी किया। प्रशिक्षण के बाद शानी मुण्डा नक्सल से जुड़े एक व्यक्ति सुखराम को अपने प्रेम जाल में फसाकर कर पुलिस इनकाउंटर में मरवा भी चुकी हैं। सुत्रों के अनुसार पुलिस ने इसकी सूचना गांव में दिया कि शानी के कहने पर सुखराम की हत्या हो गयी। हत्या के बाद शानी मुण्डा के प्रति गांव वाले गुस्से में हंै। वह गांव नही जाना चाहती थी। हत्या के बाद अपना डेरा बदल कर खूंटी जोजोटोली आ गयी। कुछ दिन बाद शानी मुण्डा अपने डेरा से गायब हो गयी। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">खंूटी थाना के एसपी डा0 एम तमिल वाणन ने बताया कि शानी मुण्डा को नक्सली उठा कर ले गये थे और उसे काफी प्रताडित किया गया है। 16 दिनों तक वह नक्सल के कब्जे में रही है और 5 जुलाई को नक्सली ने उसे मानवधिकार कार्यकर्ता श्री शषीभूषण पाठक समाजिक कार्यकर्ता मुरहू के आलेस्टयर बोदरा को सौपा। 5 जूलाई को शषीभूषण पाठक और आलेस्टयर बोदरा ने उसे रांची के पुलिस पदाधिकारी के पास ले गये। रांची के पदाधिकारियों ने खूंटी एस पी से फोन पर केस दर्ज करने की बात कहीं। 6 तारीख को शानी मुण्डा खूंटी थाना लाई गयी। एस पी ने कहा कि केस दर्ज किया है जिसमें धारा 363 ए, 376, 313, 323, 344, 120 बी धारा के तहत नक्सली पर केस हुआ हंै। उसने नक्सल द्वारा प्रताडित किया जाने की बात एसपी को बताई है ‘‘जबकि शानी मुण्डा 6 तारीख की सुबह को रांची के इलेक्टोनिक मिडिया के सामने कहा था’’ कि 4000 हजार रूपये देने पर एसपीओ के काम करने के लिए उसे एसबीओ देवन्द्र मुण्डो ने उसे रखा था। एक महिना पैसा दिया, फिर नहीं दिया। 7 महिने तक काम कराया। शानी मुण्डा ने कहा कि मैं काम छोड चुकी थी इसलिए कि देवन्द्र मुण्डा मुझे पैेसे नहीं देता था और मुझे गोली मार देने की घमकी देकर मेरे साथ शारीरिक शोषण करता था। साथ ही रात के अंधेरे में मुझेे अड़की थाना, रनिया थाना, तमाड़ थाना हुटू दलभंगा (पीकेट) में दुसरे पुलिस पदाधिकारी पास ले जाता था। विरोध करने पर गोली मार देने की धमकी देता, यही नहीं देवेन्द्र मुण्डा कई दिनों से बलात्कार करता रहा हंै। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">एसपी ने 6 जूलाई से गायब किया षानी मुण्डा को </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">इघर 6 जूलाई को शानी पुलिस थाना गयी और वह फिर से गायब हो गयी। ठीक पांच दिन बाद 11 जूलाई को खूंटी एसपी ने एक प्रेस कान्फेन्स कर लडकी को खुंटी जिला के मिडिया के सामने लाया गया। जहां शानी ने अपने बयान बदल कर कहा कि नक्सली हमें उठा कर ले गये थे। उन्होंने हमें यातना भी दी। 13 जूलाई को नावो की महिला समुह खूंटी पहुंची उन्होंने खुंटी एस पी डा0 एम तमिल वाणन से तामाम जानकारी ली और आग्रह किया कि शानी मुण्डा से मिलना चाहती है। एसपी ने कहा वह मेरे पास नहीं है, शानी मुण्डा अपने परम्परागत पति समत पाहन और उसके पिता एवं बड़े पिता के साथ वीरबंकी, कटुई के दाड़ी टोला में रह रही है। एस पी के बताये गये जानकारी के आधार पर महिला समूह ने वीरबंकी के दाड़ी टोला पहुंची जो काफी घना जंगल था। वहां शानी मुण्डा उसका पिता और उसका होने वाला पति नहीं मिले। वहा उसकी बड़ी मां जावनी मुण्डा और बड़े पिता सोमा मुण्डा से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि वह पहले अड़की ब्लाॅक कार्यालय के नजदीक 7- 8 लड़कियों के साथ 250 रू0 मे डेरा लेकर रहती थी। कुछ ही समय पहले खूंटी के जोजो टोली गयी हंै। महिला समुह ने उसकी बड़ी मां के बताये जगह पर गयी वहां भी शानी और उसके परिवार नहीं मिले , महिला समूह महिला थाना, चाईल्ड वल्फेयर सेन्टर का निरीक्षण किया पर शानी मुण्डा का पता नहीं चला। ंमहिला समूह ने प्रेसवार्ता कर कहा कि खूंटी के एसपी शानी को क्यों छुपा कर रखी है पुलिस के नियत पर शंक है और वह शानी मुण्डा को अपने प़क्ष मे ंव्यान देने के लिए उस पर ंदबाब बना रही हंैं। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">8वां कलास में पढ़ने वाली शानी मुण्डा की उम्र 14 साल है वह नाबालिक है एस पी ने न ही काउसिंलिग की और न ही चाईल्ड वल्फेयर सेन्टर में उस केस को भेजा। बल्कि पुलिस प्रशासन ने आपने बचाव में शानी मुण्डा को नजरबंध कर दिया हैं।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">इघर अड़की में जहां शानी पहली बार अपना घर लिये हुए थी वहां 7- 8 लड़की सामूहिक सहयोग से घर का किराया देती थी। कुछ समय बाद वे लड़कियां कहां चली गयी किसी को पता नहीं। उसमे से एक लड़की रोलो मुण्डा की लाश मिली थी। हो सकता है साथ में रहने वाली लड़कियां पुलिस के चंगुल में उनके इसारा में काम करने के क्रम में मार दिया गया हो। एक मानवधिकार कार्यकर्ता ने बताया कि 6000 हजार लड़का लडकी को पुलिस ने अपने मुखविरी के लिए प्रलोभन देकर फंसा रही हंै। पुलिस प्रशासन बच्चो के शिक्षा के अधिकार एवं मानवाधिकार का उलंधन लगातार कर रही हंै।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">लडकियांे के पढ़ने की इच्छा बनी जी का जंजाल </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">वीरबंकी गांव के लड़कियों की पढ़ने की इच्छा ने उसे जीविन में समस्या उत्पन कर दिया। गांव से बाहर आने वाले बच्चों में लडकियां कि संख्या अधिक है ।जिसमें सबसे अधिक 7वां कलास से लेकर 10वीं कलास तक की लडकियों शामिल है जिन्हें पैसा और नौकरी देने के प्रलोभन पर स्कूल कि लड़किया को मुखविरी के काम में लगाया जाता हंै। जब पुलिस उस लडकी निशान देह पर हत्या करती वह नक्सल हो चाहे न हो उसे दिखाया जाता है वह नक्सल था और इन-काउटर में मारा गया कि घोषणा होती है ।गांव में जिसका बेटा मारा गया उसके यहा सूचना पुलिस द्वारा भेजा जाता है कि फलना के बेटी के कहने पर उसकी हत्या कर दी है इघर पुलिस वाले उसे लडकी को घमकी देते है गांव में यह सूचना है कि तुम्हारे निशान देह पर नक्सल को मार गिराया गया है </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">कटुई गांव के एक महिला रूकता मुण्डा ने बताया कि गांव में विकास के नाम पर स्कूल है तो शिक्षक नही और शिक्षक है तो स्कूल नहीं का फर्मूला चल रहा है ।उन्होंने बताया कि आर्थिक तंगी यहां के गांव वालो ंको होती है हमलोग गांव समाज के बच्चों को पढ़ाना चाहते है इसलिए गांव के बाहर ब्लाॅक में पढ़ने भेजते है गांव में रम्पा नाम कि एक महिला ने बताया कि गांव में पहले रोलो मुण्डा नाम की एक छात्रा कि हत्या हो चुकी वह लड़की गांव में किसी के बेटे कि हत्या पुलिस से करवाई थी। गांव में लोगों को जानकारी है कि उसी ने सूचना दिया था। बाद में पुलिस ने गांव वाला को बताया कि रोलो मुण्डा के कहने पर यह हत्या हुई है रोलो मुण्डा गर्मी की छुट्टी में गांव वापस आई थी। उसकी हत्या हो गयी जिसकी जांच पुलिस ने नहीं कर पाई। वहां मामला ठंडे बस्ते में चला गया। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">शानी मुण्डा का परिवार में पांच बहन और एक भाई है पिता बिरजू मुण्डा किसान और बाजार के दिन में पान कि दुकान करते है मां गांगी मुण्डा पूर्ति सप्ताहकि बाजार में हडिया बेचती हंै उनका छोटा सा जंगल के अंदर मिट्टी का घर है पांचों बच्चों को अड़की के स्कूल में पढाते है वह स्कूल सरकारी है स्कूल में पढ़ रहे बच्चों के लिए घर के उत्पादन दिया जाता है और बाजार से हडिया और पान बेच कर जा रकम कमाते है उसे महिना में तेल साबून के लिए दिया जाता हैं। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">लाल काॅरीडोर वीरबंकी</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">झारखण्ड कि राजधानी रांची से अलग होकर बना नया जिला खुंटी । यह जिला अभी अभी अपने अस्तित्व में आने का प्रयास कर रहा हंै। इस जिला के अन्तर्गत अड़की ब्लाॅक है। मुण्डाओं का बड़ा इलाका माना जाता है। इसी इलाका में नक्सली के बड़े नेता कुंदन पाहन का तुती बोलती हंै। रांची से खुंटी 35 कि0मी0 और खुटी से अड़की 20 कि0 मी0 अडकी से कटुई गांव 10 कि0 मी0 कटुई गांव से दाड़ी गांव 4 कि0मी की दूरी में बसा है जहां परिन्दा भी बिना आदेश के उडते नहीं होगे। प्राकृति सौन्द्रय का मिषाल नही पर मानव का कठिन परिश्रम से गांव जीवित हंै। अभावग्रस्त, बिमार गांव वीरबंकी में बगावत रास्ते अपनाया। इन गांवों में श्रम मिलता है और संघर्ष चलता हंै। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">कटूई गांव के दाड़ी टोला वीरबंकी अड़की ब्लाॅक के अंतर्गत बिहड़ जंगल वाला गांव है यह मनाहातू पंचायत के अन्तर्गत आता हंै अड़की ब्लाॅक से 20 कि0मी0 की दूरी, दूरी पैदल चलने वाले के लिए भारी है क्योंकि कटूई गांव के जाने का रास्ता कही उंचाई तो कही नीचा यानि कि यह पैदल चलने वाले के लिए 40 कि0 मी0 से के बराबर होगा। सप्ताह में दो दिन बाजार लगती है वीरबांकी बाजार जिसमे गांव के तामाम लोग अपने श्रम के उत्पादन लेकर बेचने आते है। सड़क एक साल पहले बनी थी। सड़क की हालत एक बारिश में पोल खोल दी। गांव सें एक बार सवारी गाडी निकलती है वह भी बाजार के दिन में, और शाम चार बजे तक कटूई गांव से 5 कि0 मि0 की दूरी तक वापस आ जाती है फिर लोग अपने अपने घर पैदल चल कर जाते है गांव ऐसा कि 100 गज की दूरी पर एक मिट्टी घर उस घर से फिर 100 गज कि दूरी पर एक और घर, कटूई टोली मंें 30 से 35 घर मुश्किल से होगे पर जंगल घना शाम को इन जंगलो पर जहां चिडियों कि चहचहाट और कौआ कि आवाज घर वापसी के समय होती है वह इस गांव में नहीं मिला, लगता है ग्लोबल परिवर्तन के कारण ऐसा हुआ होगा शनिवार का दिन तारीख कहे तो 13. 07.13 को महिला समूह के साथ गावं में प्रवेश करने का मौका मिला धनी जंगल के वादियों में एक भी आदमी के आवाज नहीं आ रही थी कई कटहल के पेड में बड़े बड़े कटहल जो अब पक्क चुके है कोइनार के साग और आम की खुशबू से जंगल अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा हो दूर जंगल के कही -कही से गाय या बैल के गले में बंधे घंटी की आवाज से लग रहा था यहां लोग होगे और आगे कोई बस्ती होगी। और वह था कटूई गांव का दाड़ी टोला </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">वीरबंकी का पूरा इलाका लाल काॅरीडोर और जंगल आर्थिक जाॅन वाला रहा है। इस इलाका को सरकारी एजेंड़ा में लम्बे समय पहले ही विकास से ओझल माना था। इसलिए इंटीग्रेटेड एक्सन प्लान के तहत वहां एक पूल बनाई जा रही है गांव में सरकार द्वारा कोई योजना को लागू नहीं किया गया पर यह इंटीग्रेटेड एक्सन प्लान के द्वारा पुल बन रहे है जो पूरा हो चुका है। लेकिन जिस गांव में पीने के पानी के लिए चापाकल नहीं हो मनरेगा द्वारा कोई कुआ और तालाब नहीं बनाया गया हो गांव में पहुंचने के लिए पीसीसी रोड कि व्यवस्था नहीं हो स्कूल गांव में है ही नहीं पीएचसी गांव में बनाया नहीं गया हो वहां इस योजना को लाना कितना उचित और अनुचित होगा यह समझने कि जरूरत हंै झारखण्ड के दुसरे इलाका में जहां आर्थिक और औधोगिक जाॅन रहा हंै। जहां कई बड़ी बड़ी कम्पनी की तूती बोलती हो वहां केन्द्र सरकार के मंत्री जयराम रमेश भी अपनी विकास के ताल मिलाने के लिए वहां पहुंचे और बार बार उन इलाको की चर्चा अखबार और सरकार के खाते में होती रही। खूंटी जिला के यह वीरबंकी इलाका क्यों सौतेला व्यौहार झेल रहा हंैं? ये सरकार से जानने की जरूरत है।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">गांव कृषि प्रधान है वहां मुण्डा समुदाय के लोग रहते है हर परिवार अपनी जीविका का उपार्जन खेती से करते रहे है उसके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं हंै गांव में मुण्डा किली के अपना पडाह व्यवस्था है ग्राम सभा है पर निषक्रय है गांव में योजनाओं के बारे में लोग नहीं जानते खेती के प्रति उनका लगाव जबजस्त है इसलिए गांव के लोग शहर के प्रति जाना नहीं चाहते है बारिश आने पर पूरे साल के लिए चावल का उपज ही उनकी सफल कृषि की पहचान है बाकी समय जंगल पर उनकी निर्भरता होती है गांव मंे साइकिल जिनके घर में वह अमीर माना जाता है आज भी बैलगाड़ी के माध्यम से बाजार तक अपने सामान को पहुंचाने का एकमात्र साधन हंै।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-73625403429687671282015-05-11T00:02:00.001-07:002015-05-11T00:03:10.018-07:00जांच एजेन्सी +न्यालाय = राजनीति<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>आलोका</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>तामिलनाडू के राजनीति में नया मोड़ आया है यह मोड़ 2001 में भी देखने को मिला था पर उस वक्त के चल रहे राजनीति स्थिति कुछ और थी। सीधे- सीधे कहे तो भाजपा केन्द्र पर नहीं थी। अभी स्थिति यह है कि भाजपा केन्द्र में शासन कर रही हैं। तामिलनाडू के राजनीति हलचल और जांच एजेन्सी एवं न्यायलय के प्रकिया से राजनीति मोड में एक बदलाव भारत के राजनीति में भी दिखने वाली है। अन्नाद्रमुक पार्टी की बड़ी नेता जयललीता का अदालती फैसला के बाद जेल जाना तय हो गया है। इससे तामिलनाडू के राजनीति स्थिरता में भुचाल आ गया है सता में बहुमत और जनता में सहानुभूति वाली सरकार का जेल जाने पर भाजपा की राजनीति सक्रिया और गठबंधन की राजनीति के आहट अब तामिलनाडू पर होने वाली है। यह एक राजनीति चाल के तरह किया गया कारवाई हो सकता है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>जयललीता/ अम्मा भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री है जिसके ही शासन काल में जेल जाना ़पड़़ा। जयललीता पहली महिला मुख्यमंत्री है जिन्होंने 39 संसदीय सीटों में से 37 सीटे पर जीती और लोग सभा में बहुमत के साथ सता का कमान सभाली और लम्बी राजनीति शासन करने वाली महिला नेता का नाम एकलौता है। 2011 में हुए तामिलनाडू के चुनाव मंे अन्नाद्रमुद व उनके सहयोगीयों को जीत मिली थी। पूरी बहुमत से सता में आई इस सरकार का अभी डेढ साल का कार्यकाल बाकी है। जयललीता / अम्मा का जेल जाना अन्नद्रमुक पाटी के लिए बड़ा झटका है 10 साल कि चुनाव नहीं लड़ने की अदालती फैसले से तामिलनाडू पर राजनीति समिकरण 2016 के चुनाव में बदलाव हो सकता है भाजपा और करूणानिधि या अन्य के गठबंधन के आहट है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>पूरे देश में जहां भाजपा की लहर है। तामिलनाडू में 18 साल पुरानी सरकार पर 18 साल पूराने मामले और न्यायापालिका के निर्णय एवं जांच एजेन्सी की लम्बी जांच प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह लगता है। इसलिए भी की 18 साल पहले आय से अधिक सम्पति के मामले प्रकाश में आने के बाद भी जयललीता सता में कायम रही। अपनी ठाट बाट, एक रूपया के तन्खाह के अलावा 66 करोड के जमा आय, यही नहीं महंगे कपडे, और मंहगे चपल के सैकड़ों जोडियां के साथ दतक पुल के विवाह में किये ये खर्च, अम्मा नाम की कम्पनी और 100 से अधिक बैक एकाउंट दशार्या गया है। इन चीजों पर चर्चा लम्बे समय से तामिलनाडू में है और अभी भी रनींग पोजिशन में है। एक तरह से कहे तामिलनाडू में अम्मा की कम्पनी की तूती बोलती है जहां सिमेन्ट के बोरा से लेकर पानी तक बेची जाती हो। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>सवाल यह उठता है अम्मा ने कई कम्पनीयां बनाई। यह कम्पनियां खुद के शासन काल में रजिस्टेशन कराया होगा वह भी भारत के संविधान के अन्तर्गत ही , सारी कम्पनीयां से अच्छी आमदानी होती है और सारी कम्पनियों तामिलनाडू में काफी प्रचलित है। इन कम्पनियों के देख रेख के लिए केन्द और राज्य के अन्दर जांच एजेंसी भी बनी हुई है। जब एक केस को जांच करने में 17- 18 साल का समय लग जाता है। ऐसी स्थिति में इन विभाग का होने का क्या औचित्य? तामिलनाडू के तामाम विभाग पर सवाल बनता है। कई सालो पहले जब यह आय से अधिक सम्पति के मामले आये थे उसके बाद भी जयललीता ने शासन की कमान सभांले रखी थी। तब विपक्ष की भूमिका क्या थी। बहुमत वाली सरकार पर आये अदालती फेसला अन्नाद्रमूक की केन्द्रीय राजनीति के लिए यह पहला कदम तो नहीं जिसमें तामिलनाडू राज्य के तमाम एजेन्सी ने अपनी राजनीति साध रहा हों</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>अन्नाद्रमुद के पास पहले से पनीरसेल्वम, राजकाज सभालने के लिए प्रयाप्त है अभी पार्टी में कोई संकट नहीं है। अदालत के फैसले के बाद तामिलनाडू में तनाव का महौल है। सहानूभूति और अम्मा के साथ अन्नाद्रमुक की स्थिति का पता चलता है। राज्य सभा में अन्नद्रमुक की 11 सीटे और विधानसभा में 37 सीटे अब काफी नहीं होकर नये गठबंधन की ओर इंसारा करता है।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>पूरे देश में महाराष्ट और बिहार में नये गठबंधन की राजनीति चल रही है तामिलनाडू में करूणानिधि सक्रिय हो गये है साथ में भाजपा कोे सक्रिय होना लाजमी है अच्छे दिन की शुरूवात शायद अम्मा के जेल जाने पर तामिलनाडू पर अजमा सकते है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>देखना होगा की भाजपा के केन्द्र्रीय शासन काल और अगामी चुनाव की आहट ने राज्य के अन्दर राजनीति के हलचल कें एक बदलाव के लिए सता परिवर्तन के लिए या सिर्फ इस भ्रष्टाचार से लिप्ति को सजा देने के लिए है आने वाला समय तामिलनाडू की राजनीति की नयी दास्ता कहेगा। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-18792905587373690852015-05-10T23:57:00.000-07:002015-05-10T23:57:03.159-07:00उग्रवाद प्रभावित गुरूरपिड़ी गांव में जुदा-जुदा था माहौल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">ग्रामीणों ने बगैर अंगरक्षक के गांव पहुंचे विधायक को सर आंखों पर बैठाया</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">रांची: गुरूवार को नामकुम प्रखंड के लाली पंचायत के गरूरपिड़ी गांव का माहौल कुछ जुदा-जुदा था। गांव में नक्सली आतंक का खौफ मानो अतीत बन गया था और अतिथि देवो भव् का संस्कार अनुषासन। शायद झारखंड के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि कोई विधायक बगैर अंगरक्षकों के अकेले ही इस अति उग्रवाद प्रभावित गांव में पहुंचा और गांव के लोगों ने उन्हें सर-आंखों पर बैठाया। और बैठाएं भी क्यों नहीं, आजादी के बाद पहला मौका था, जब कोई विधायक इस गांव में पहुंचा। नक्सल प्रभावित इस गांव में जब पहली बार निरसा विधायक अरूप चटर्जी पहुंचे तो ग्रामीणों की खुषी का ठिकाना नहीं रहा। मौका था गांव में अखड़ा का उद्घाटन का। इसी मौके पर गांव के लोगों ने विधायक को न्योता था। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि विधायक उनके बुलावे पर गांव आएंगे, लेकिन जब विधायक का काफिला गांव में पहुंचा तो लोग खुषी से झूम उठे। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">गौरतलब है कि गांव में राज्यसभा सांसद परिमल नाथवानी के फंड से अखड़ा का निर्माण हुआ है। इसके उद्घाटन पर ही गांव के लोगों ने विधायक को आमंत्रित किया था। विधायक ने गांव पहुंचते ही मषाल जलाकर अखड़ा उदघाटन समारोह का शुभारंभ किया। इसके बाद उन्होंने गांव में बिरसा मंुडा की प्रतिमा का अनावरण भी किया। अखड़ा का उद्घाटन ग्राम प्रधान दिग्विजय मुंडा, पाहन जमुराय मुंडा और पूर्व मुखिया बुदराम मुंडा ने पारंपरिक पूजा-पाठ से किया। इस अवसर पर विधायक चटर्जी ने कहा कि इस सुदूरवर्ती गांव में आकर भारत की असली तस्वीर का दर्षन हुआ। राजधानी से सटे इस गांव की दुर्दषा देखकर हैरत में हूं। इस गांव के विकास के लिए विधान सभा में आवाज उठाऊंगा। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">हवा में तीर चलाकर किया स्वागत</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">गांव में विधायक एवं अन्य अतिथियों का स्वागत कुछ अलग ही अंदाज में किया गया। गांव के एक किलोमीटर पहले से ही पारंपरिक तीर - धनुष लेकर जंगलों में छिपे बिरसा मुंडा के वेषभूषा में ग्रामीण अचानक सड़कों पर आए और आसमान में तीर चलाकर उनका स्वागत किया। मुख्य अतिथि आगे-आगे बढ़ते रहे और ग्रामीण आसमान में तीर चलाते रहे। बड़ी संख्या में ग्रामीण पारंपरिक नृत्य करते हुए आगे बढ़ रहे थे। उनके पीछे-पीछे विधायक और अन्य अतिथि चल रहे थे। नृत्य के साथ विधायक को वीर बिरसा मुंडा की प्रतिमा तक ले जाया गया। गांव के बच्चों ने कहा वे अपने गांव में पहली बार किसी विधायक का दर्षन कर रहे हैं। बच्चे विधायक अरूप चटर्जी से हाथ मिलाकर बेहद खुष थे। वे विधायक के समक्ष गांव की समस्याएं भी रख रहे थे। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #cccccc;">गांव में अखड़ा के उदघाटन के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए। इस बीच चतरा से आई समाजिक कार्यकर्ता निर्मला केरकेट्टा ने गरूड़पीड़ी गांव के प्रतीक चिन्ह गरूड़ पक्षी की प्रतिमा का अनावरण किया। इस मौके पर सरना फुटबाॅल क्लब गरूड़पीड़ी एवं नामकुम फुटबाॅल टीम के बीच मैच का आयोजन हुआ। पूरे कार्यक्रम का संचालन एतवा मुंडा ने किया। ग्रामीणों ने पूरे कार्यक्रम में अपना पूरा सहयोग दिया। काफी संख्या में आस-पास के लोग इस कार्यक्रम में जुटे थे। मौके पर राज्यसभा सांसद नाथवानी की प्रतिनिधि नुसरत जहां, नलीन, संजय बोस, अलोका व अन्य लोग उपस्थित थे। </span></b></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-87277582008261486532015-05-10T23:52:00.003-07:002015-05-10T23:54:00.167-07:00अधिकार आधारित विकास में बिरहोर समुदाय लाभ से दूर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: center;">
<div style="text-align: justify; text-indent: 48px;">
<b><span style="color: #cccccc;">संदर्भ-ंउचय वन अधिकार कानून से बिरहोर समुदाय को लाभ दिलाने में सरकारी चुनौती बरकरार</span></b></div>
<div style="text-align: justify; text-indent: 48px;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify; text-indent: 48px;">
<b><span style="color: #cccccc;">आलोका सीएसडीउस फेलोसिप के तहत</span></b></div>
<div style="text-align: justify; text-indent: 48px;">
<b><span style="color: #cccccc;"><br /></span></b></div>
<div style="text-align: justify; text-indent: 48px;">
<b><span style="color: #cccccc;">एक लंबे समय तक चली बहस के बाद वर्ष 2006 में भारत सरकार ने वन अधिकार अधिनियमत लागू किया। इसका मुख्य उद्धेश्य पी-सजय़ दर पी-सजय़ी जंगल में निवास करने वाले परिवारों की मूलभूत आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करना था साथ ही यह कानून उस जमीन का लिखित रूप में मालिकाना अधिकार देता है, जंगल में रहने वाली जनजातियां या परंपरागत रूप से रहने वाले लोग या खेती करते आए हैं। पिछले एक दशक में अधिकार आधारित विकास की दिशा में सरकार का यह एक महत्वपूर्ण कदम था। इस कानून के लागू होने के बाद जंगलों में पी-सजय़ी दर पी-सजय़ी रहने वाले परिवारों में उम्मीद की एक नई किरण जगी थी। चूंकि यह कानून 1927 में बने भारतीय वन अधिनियम की विसंगतियों को भी दूर करता है। आजाद भारत मेें जंगल और जंगल में रहने वाले परिवारों को लेकर पहली बार बने वन अधिकार कानून के आने से ऐसा लगा था कि इसका लाभ सबसे पहले इसके सबसे ज्यादा जरूरतमंद आदिम जनजाति के बिरहोरों को मिलेगा। इस कानून के आने से कोई बिरहोर परिवार भूमिहीन नहीं रहेगा। इस जनजाति के सभी परिवारों के पास अपनी जमीन होगी। इसमें वे खेतीबारी शुरू करेंगे और अपनी मूलभूत आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। इसके साथ ही यह जनजाति अधिकार आधारित विकास की दिशा में एक नया सफर शुरू करेगा। लेकिन हकीकत यह है कि वन अधिकार कानून के लागूूूूूूूूूूूूूूूूूूूू होने के करीब आठ साल बाद भी इसके सबसे ज्यादा हकदार बिरहोर समुदाय को कोई विशेष लाभ नहीं मिला है। जमीन के मामले में आज भी -हजयारखंड के बिरहोर समुदाय की स्थिति पूर्वत् है। राज्य में वन अधिकार अधिनियम के तहत अबतक कुछ गिने-ंउचयचुने बिरहोर परिवार को ही जमीन का पट्टा मिला है। यहां के बिरहोर प्रारंभ से ही जंगलों में निवास करते रहे हैं। -हजयारखंड में मुख्य तौर से दो प्रकार के बिरहोर समुदाय निवास करता है। एक समुदाय जंगलों में हमेशा इधर से उधर घूमते-ंउचयफिरते रहता है। ये घुमक्कड़ प्रवृति के कहे जाते हैं। इनका दूसरा समुदाय जंगलों में कहीं-ंउचयकहीं स्थाई रूप से निवास करते हैं। दोनों समुदाय के बिरहोरों का जंगल ही जीवन है। परंपरागत आधार पर इनका मुख्य पेशा शिकार करना है। ये जंगलों में मुख्य रूप से खरगोश पकड़ते हैं और उसे आसपास के गांव या बाजार में बेचते हैं। ये जंगली लकडि़यों की छाल से रस्सी बनाने का भी काम करते हैं। जंगल से शहद निकालने और चटाई बनाने का काम भी अब ये करते हैं। इसे भी वे जंगलों के आसपास बसे किसानों और ग्रामीणों के बीच बेचते हैं। इस तरह इनका ये पेशा इनके लिए आर्थिक आधार है। ये आज भी कंदमूल से ही अपना पेट भरते हैं। ये पत्ते के बने कुरहे में रहते हैं। बीमार पड़ने पर जड़ी-ंउचयबूटियों से अपना इलाज खुद करते हैं। आधुनिक पेशे के रूप में इन्होंने खेती और मजदूरी को अपनाया है। इससे यह जाहिर है कि ये खेती के कार्य में निपुण हैं। अगर इन्हें जमीन मुहैया कराई जाए तो ये खेती कर अपना विकास कर सकते हैं। इनका पारिवारिक रहन-ंउचयसहन भी प्रारंभ से ही जंगलों के अनुकूल रहा है। पति शिकार करता है और पत्नी खाना बनाती है। हालांकि शिकार करने में पत्नी भी दक्ष होती है। जरूरत पड़ने पर वे भी शिकार में पति की मदद करती हैं। इसी तरह पति भी भोजन बनाने में निपुण होता है और जरूरत पड़ने पर वह पत्नी को मदद करता है। भोजन की व्यवस्था करने में भी पत्नी-ंउचय पति का साथ देती हैं। शिकार से लेकर भोजन के लिए कंद-ंउचयमूल की तलाश में इनके बच्चे भी इनके साथ होते हैं। इस तरह से देखा जाए तो जंगल ही इनका जीवन है। जंगलों के बगैर इनका जीवन जल के बगैर मछली जैसी है। जंगलों के बगैर इनके जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। इसके बावजूद सरकार ने इस जन-ंउचयजाति के लिए वन अधिकार अधिनियम कानून में इनके लिए कोई कोई विशेष व्यवस्था नहीं की है। इसके कारण राज्य में इन्हें इस कानून का कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है। वैसे -हजयारखंड में वन अधिकार कानून की स्थिति भी अन्य राज्यों के अपेक्षा निराशाजनक ही है। पिछले सात-ंउचयआठ सालों में उड़ीसा में वन कानून के तहत मालिकाना हक पाने वाले लोगों में 3.4 लाख, छत्तीसग-सजय़ में 3.1 लाख, मध्य प्रदेश में 2.0 लाख, आंध्रप्रदेश में 1.7 लाख, महाराष्ट में 1.5 लाख और त्रिपुरा में 1.2 लाख लोग शामिल हैं। -हजयारखंड में यह आंकड़ा हजारों लोगों में ही सीमित है। इनमें बिरहोरों की संख्या नगण्य है। व्यू प्वांईट -हजयारखंड के एक आंकड़े के मुताबिक वन कानून के तहत राज्य में अबतक मात्र 15 हजार 873 लोगों को ही जमीन का पट्टा उपलब्ध कराया गया है। इतने लोगों के बीच 9104.212 हेक्टेयर भूमि लोगों को उपलब्ध कराई गई है। राज्य में जिला स्तर पर वन कानून के तहत छह सौ से अधिक और अनुमंडल स्तर पर एक हजार से अधिक आवेदन लंबित हैंै। आरसीसीएफ हजारीबाग प्रक्षेत्र में आने वाले कोडरमा, हजारीबाग, चतरा, बोकारो व गिरिडीह में कुल 2547 आवेदन आए। इसमें से 910 दावों को निरस्त कर दिए गए। वहीं जिलास्तरीय समिति ने 1490 आवेदनों को स्वीकृत कर अनुशंसा के लिए सरकार केे पास भेजा। आरसीसीएफ बोकारो प्रक्षेत्र के रामग-सजय़, धनबाद, बोकारो में 7895 आवेदनों में से 4101 स्वीकृत किए गए। दुमका प्रक्षेत्र के दुमका, पाकुड़, गोड्डा, साहेबगंज, देवघर व जामताड़ा जिलों में 5664 दावों में से मात्र 1958 दावे ही स्वीकृत किए गए। वहीं सिंहभूम प्रक्षेत्र के प0 सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-ंउचयखरसांवा जिले में 5389 दावों में से 4491 दावे स्वीकृत किए गए। सीसीएफ वाईल्ड लाईफ प्रक्षेत्र के लातेहार, ग-सजय़वा, हजारीबाग, पूर्वी सिंहभूम व गुमला जिले में 3429 दावों में से 1813 दावे स्वीकृत किए गए। रांची प्रक्षेत्र के रांची वन क्षेत्र के खूंटी, सिमडेगा, गुमला व लोहरदगा में 2740 दावों में से 2273 दावे ही स्वीकृत किए गए। दिलचस्प बात तो यह है कि पूरे राज्य में स्वीकृत दावों में से बिरहोर समुदाय के दावों की संख्या कितनी है, यह जानकारी राज्य सरकार के पास भी नहीं है। अंगुलियों पर गिने-ंउचयचुने बिरहोर परिवार को कुछ इलाके में जमीन का पट्टा मिला भी तो उसपर वे काबिज नहीं हैं। कई जिलों से ये सूचना है कि बिरहारों को पट्टे में मिली जमीन पर कब्जा जंगलों के आसपास रहने वाले दबंगों का है। वन कानून बनने से पहले जब इसके मसौदे पर बहस जारी थी तो देश के कई जाने-ंउचयमाने लोगों ने अंदेशा व्यक्त किया था कि इस कानून का दुरउपयोग हो सकता है। जंगल और इसकी जमीन असली हकदारों के बजाय दूसरे लोगों के हाथों में जा सकती है। इसके साथ ही वन और वन्य पदार्थों की लूट हो सकती है। फिर भी सरकार ने जंगल में रहने वालों के विकास के लिए यह कानून लागू किया। कानून तो लागू हुआ, पर इस कानून के तहत इसके असली हकदारों को लाभ पहुंचाने की चुनौती अब भी शेष लगता है। </span></b></div>
</div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-81900389892399411872015-05-10T23:51:00.000-07:002015-05-10T23:51:01.363-07:00झारखण्ड में बिरहोर महिलाओं की स्थिति और सामाजिक प्रदृष्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">आलोका सीएसडीएस फेलोसिप के तहत</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">झारखण्ड के आदिमजनजाति बिरहोर महिलाओं की प्रस्थिति विविधतापूर्ण रहीं है 2002-2003 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड की बिरहोर की आबादी के हिस्सा में महिलाओं की आबादी 1940 है जबकि पूरी आबादी 6579के लगभग है। जनसंख्या में लिंगानुपात अलग रही है।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">समाजिक प्रस्थिति में पुरूषों के लगभग समकक्ष संलग्न रहने वाली बिरहोर महिलाओं की अपनी ही मेहनत से अर्जित आर्थिक उपलब्धियों का उपभोग भी अलग रही है दैनिक जीवन में परिवार के काम के अलावे जंगल से लकड़ी पता चुनने के कार्य में अपने को व्यस्त रखती है। गांव से मर्दो के बीना दुसरे स्थानों में नही जाती है। बाजार- हाट छोड कर परिवार और संगे सबधी के यहां अपने पति- पिता, भाई के साथ जाती है। परिवार को चलाने में औरतों की भूमिका पुरूषों की तुलना में अधिक है। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">समाजिक दायित्व के साथ जीवन का दायित्व महिला अधिक उठा रही है चुकि बिरहोर समुदाय भी पुरूष प्रधान समाज रहा है वहां भी महिलाओं के अपेक्षा पुरूषों द्वारा निर्णय प्रकिया महत्व होता है। महिलाएं उनके निर्णय को तर्जी देती है। घर से लेकर गांव की समस्याओं के लिए महिलाओं अनभिज्ञ है। आज भी वे परिवार में तमाम तरह के काम के साथ अपने को व्यस्त रखती है। वे काफी मेहनती तथा कठिन श्रम करने वाली होती है इन्हें गृहकार्य के अलावे जंगलों में अपने लिए जूगाड में दिन रात जूड़ी रहती है। आदिमजनजाति समूदाय जिन इलाकों में रहते वहां रोजगार के लिए सिमित आयाम उपलब्ध होने के कारण वन पर निर्भरता अधिक है।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">संवैधानिक व्यवस्थाएं</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">जनजातीय कल्याण के लिउ भारतीय संविधान में विशेष घ्यान दिया गया है उनके हितों की सुरक्षा के लिए सरकार ने जरूरी संरक्षण प्रदान किये है।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">‘‘1’’ संविधान के अनुच्छेद 16 ‘‘4’’ तथा 335 के अनुसार सार्वजनिक संवाओं और सरकारी नौकरियों में अनुसूचितजनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित रखने का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया है। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">‘‘1’’ संविधान के दसवें भाग तथा पांचवे- छठे अनुसूचिती में जनजातीय क्षेत्र के सम्बन्ध में विशेष व्यवस्था की गई है। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">‘‘3’’ संविधान के भाग 6 अनुच्छेद 164 में बिहार , झारखण्ड एवं अन्य राज्य में जनजातीय कल्याण मन्त्रलय स्थापित करने का अधिकार है।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">‘‘4’’ संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 46 में जनजातियों की शिक्षा की उन्नति और आर्थिक हितों की सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान देना राज्य का कर्तव्य माना गया है।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">स्ंविधान के अनुच्छेद 338 में राष्टपति को यह अधिकार दिया गया है कि आदिमजनजाति के कल्याण के लिए एक विशेष अधिकार की नियुक्ति करें तो उनके समस्या एवं उसके निदान के उपाय हेतु राष्टपति को सुझाव दे</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">छेखा जाए तो आदिमजनजाति के सुरक्षाद्व शिक्षा एवं अर्थ व्यवस्था के सम्बन्ध मं संवैधानिक व्यवस्था की हैद्व जिसका लाभ बिरहोर जनजाति के लोग कुछ हद तक उठा रहे है। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">औधोगिक करण ने बिरहोर महिलाओं के जीवन में पविर्तन लाया</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">झारखण्ड में औधोगीकरण ने जनजातिय समाज में परिवर्तन लाने का महत्वपूर्ण कारण है। इसका असर बिरहोर समूदाय के महिलाओं के जीवन के कोरीडोर पर पड़ा है बार बार विस्थापन से लोगो ने अपने पूर्वजों के स्थान से अलग होतो गये और पूरा परिवार घुमतू के नाम से जाना जाने लगा। वह पूराना गांव अब बिरहोर के पास नहीं है वे रेाजगार की तलाश में अब शहर में जाने लगे है महिलाएं भी पति, पिता, भाई के साथ शहर ईटभटटा में काम करने जाने लगी है। जिस परिवार ने वन के किनारे आज भी रह रहे है वे अपने परम्परागत काम रस्सी बनाने की प्रकिया को चालू किये हुए है। बदले गांव, बदलता वन और बदलते संधर्ष ने बिरहोर महिलाओं को खेती की ओर प्रेरित कर दिया। जिससे अब महिलाएं उत्पादन के साधन के साथ जूड गयी है। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;">बिरहोर महिलाओं की शैक्षणिक स्थिति</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #999999;"> वर्तमान समय में शिक्षा का महत्व बिरहोर समूदाय के महिलाओं पर पड़ा है। गांव के अंदर शिक्षा की व्यवस्था ने महिलाओं और लड़कियों को पढ़ने के लिए प्रेरित किये है। कस्तूबा गांधी विधालय से लेकर आदिमजनजाति विधालय में लडकियों स्कूल जाती है। यह शिक्षा उन्हें मघ्यमिक विधालय तक ले पा रही है लेकिन नाम लिखना और अखबार पढ़ सकती है गांव में महिलाएं शिक्षित बहु ला रही है जिसे परिवार में पढ़ने का महौल तैयार हो रहा है। इसके अलावा गैर सरकारी संस्थान द्वारा बिरहोर समूदाय के बीच शिक्षा संबधित कार्य कर रहे है। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-58867956576239464152015-05-10T23:44:00.001-07:002015-05-10T23:44:25.574-07:00आदिमजनजाति बिरहोर कम होता षिक्षा का स्तर जिम्मेवार सरकार और गैरसरकारी संस्थाएं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>आलोका</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>सीएसडीएस/ यूएनडीपी फेलोसिप के तहत </b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<br /></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>झारखण्ड के अनुसूचित राज्य है। 24 जिला वाला यह राज्य के हर जिले में अनुसूचित जनजाति के शिक्षा के लिए मध्य विधालय, उच्च विधालय बालिका विधालय की स्थापना की गयी है। जिसमें लगभग 24 जिले में यह विधालय संचालित है वहां आदिवासी बच्चों के अलावा बिरहोर समूदाय के बच्चों भी पड़ते है। जिसमें सबसे सुदूर गांव के बच्चों के लिए यह व्यवस्था है। इस शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए सरकार और गैर सरकारी संस्था ने कभी प्राथिमिकता की सूची में नहीं रखा</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>बदलते शिक्षा व्यवस्था में झारखण्ड में शिक्षा और शिक्षित होने के लिए बिरहोर समूदाय को प्रेरित कर दिया है। जंगल का वह भाग जहां कभी सूरज के रौशनी के अलावे और कुछ नहीं पहुंचता था। आज वहां बच्चे अपने को शिक्षित करने के लिए गांव से बाहर अनुसूचित जनजाति विद्यालय में जा रहे है। जंगल का ध्नापन खत्म हो रहा है। जंगल के अन्दर और जंगल पर निर्भर लोगो के पास संकट आया है। उनके जीवन स्तर में भी परिवर्तन आ चुका है इन समूदाय के बीच अब संसाधन का अभाव दिखने लगे है। इनके जीवन में पूंजी का महत्व बढ़ा है आर्थिक सबलता बनने के लिए लिखना पढ़ना और डिग्री लेने के प्रति रूचि जग गयी है 60 साल पहले की स्थिति अब बिरहोर के गांव में नहीं रही। उनके मूल स्वरूप में परिवर्तन आने लगा है। उनके हिस्से का वन और वनप्राणी अब जंगल के समाप्त होने से उनके उपर संकट आ गया। संकट से उबरने के लिए उन्होंने शिक्षा को भी एक रास्ता को चुना।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>24 जिले वाला झारखण्ड में बिरहोर शिक्षा का स्तर में अक्षर ज्ञान के अलावा नन मैटिक और इंटर तक की शिक्षा लिए हुए लोगो की संख्या 2 प्रतिशत तक आ गयी है। छोटी आबादी अपने को बचाने के लिए मुख्यधारा के साथ जुड रहे है वे बहारी समाज के साथ अपने के बीच मेल मिलाप बढ़ा रहे है। नौकरी और की ओर बढ़ रहे है। जिससे उनके रहन- सहन में परिवर्तन होता जा रहा ह ैअब वह शिक्षित हो कर परिवार और समाज के बीच रहना ज्यादा पंसद करने लगे है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>अनुसूचित जन जाति के विधालय - सरकार ने अनके लिए अवासीय विधालय की व्यवस्था कर दिये है पर उनके शिक्षा का स्तर दर अब भी कम है दो स्कूल उदाहरण के रूप में हम देखते है एक तो रांची की राजधानी से 150 कि0मी0 दूर गुमला के विशूनपूर के आदिमजनजाति आवासिय विधालय दुसरा रांची के राजधानी के मुख्यालय से 23 कि0मी0 के बुण्डू ब्लाॅक के स्थित आवासिय विधालय की स्थिति जिसमें जिसमें गुमला के विशूनपूर के विधालय में बंद पड़े है उस विधालय के बिहार के संस्था को संचालित करने के लिए दे दिया गया है जहां एक भी स्थानिय यानि की जहनगुटूआ के एक भी बच्चे नहीं जाते है। वहां पढ़ाने वाले शिक्षक भी बिहार के है। लम्बे समय से विधालय बंद रहता है। बाहर से देखने से लगा इसकी स्थिति खडहर जैसे है वहां कभी विद्यालय खुलता ही नहीं है। आसपास के लोगो से जानकारी लेने पर बच्चों ने बताया की यह विधालय में स्थानिय लोग पड़ने नही जाते है गांव के क्षत्रपति ने बताया की गांव में लोग शिक्षत है पर सरकार इनको शिक्षा के काम में नहीं लगाती है। और न गांव में शिक्षा समिति का गठन किया गया है। बिजय बिरहोर ने बताया की गांव के बच्चे बाहर के स्कूल मे जाते है। इस लिए की यहां शिक्षा के लिए शिक्षक की कमी है और सही तरीके से पढ़ाई नही हो पाती है। हमारे गांव में आंगनबाड़ी केन्द्र है यहां के स्थानिय महिला द्वारा संचालित है जिसमें 40 बच्चे जाते है। लेकिन आवासिय विधालय में हमारे गांव के एक भी बच्चा नही जाता है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>वही बुण्डू के अमनबुरू मे ं6 स्कल बिल्डिगं है। जिसमें 5 में स्कूल और एक में आवासिय विधालय है जिसमें 88 बच्चे है। 7 शिक्षक हे जिसमें पहला कलास से लेकर 6 कलास तक की पढ़ाई होती है। विघालय बनने के बाद कभी मरमत नहीं किया गया आधे से अधिक कलास रूप टूट चुके है। पीने के पानी का संकट हर वक्त बना रहता है। सरकार रहने के लिए उचित व्यवस्था करने में असमर्थ है स्कूल में के लिए तमाम संसाधन है पर वह इन बच्चों को नहीं मिलता है। रमेश शंकर मुण्डा ने बताया की हमारे यहां 6वी तक कलास होती है इससे 12 तक कलास करने की मांग 2007 से लगातार किया गया। जब रांची के डीसी के के सोन रहे थे तो उन्होने कहा था इसे उच्च विधालय बना कर रहेंगे लेकिन सोन बदल गये। नये डीसी आये जिसने कभी हमारी सुुनी तक नहीं। न हमारे पास कभी आये। सुमन मुण्डा जो स्कूल के प्रधानमंत्री है ने बताया की हम दुसरे स्कूल के बारे नहीं जानते है पर हमें तमाम विषय पर शिक्षा मिलनी चाहिए जिसके लिए शिक्षक नहीं है। शिक्षक के आभाव में हम अच्छी शिक्षा से वंचित रह रहे है। वही सुनील बिरहोर ने बताया की हमारा घर अमनबुरू में है हम बीच बीच में घर जाते है रहते है चार कलास में पढ़ते है। यहा तो सब टूटा हुआ है मास्टर हमें पढ़ाते है पर कलास रूप का अभाव है। महेश्वर लोहरा ने बताया की हम 6वी कलास में पढ़ रहे है इसके बाद हम कहा पढ़ने जाएगे यह हमारे लिए चितंा का विषय है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>बच्चों रखा प्रस्ताव - कहा हमारे स्कूल में कम्प्यूटर की शिक्षा शुरू किया जाए। फुटबाॅल की व्यवस्था की जाएं। खेलने के लिए सरकार की और से जूते दिये जाए। खेल और कला संस्कृति की शिक्षक की नियुक्त हो। स्कूल को 12 तक की पढ़ाई शुरू किया जाना चाहिए यदि सरकार हमारे यह प्रस्ताव को मान लेगी तो हमारा विधालय अन्य विधालय से अच्छा हो जाएगा। </b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>बिरहोर षिक्षित बेरोजगार- अमनबुरू में हर घर में शिक्षित व्यक्ति है 8 कलास तक के शिक्षा सब के पास है वे अब अपने को मानते है शिक्षित बेरोजगार दुबराज बिरहोर नन मैटिक है उन्हे पता है सरकार उनके लिए विशेष नौकरी की व्यवस्था किये है पर वह नहीं जानते है की वह कहा जाकर नौकरी की मांग करे। उसकी पत्नी हजारीबाग में आंगनबाडी सेविका है। वही सुरेश बिरहोर सिल्ली में पलायन कर गया है वहां बिरहोर समूदाय के बीच काम करते है। बीच बीच में अपने गांव आते है। अमनबुरू और ढीपा टोली से 12 लडके स्कूल जाते है 04 लडकीयां कस्तूरबा गांधी स्कूल में रह कर पढ़ाई करती है। गांव में शिक्षित बहु लाने की प्रथा हर हर घर में बहु नन मैटिक या 8वी तक की पड़ाई कर चुकी है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>अमन बूरू आवासीय विधालय के शिक्षक प्रमेश्वर लोहरा ने बताया की बुण्डू के गांव में बिरहोर अब धीरे- धीरे शिक्षत हो रहे है रोजगार से जुड रहे है पलायन कर दूसरे स्थानों में रोजगार खोज रहे है बच्चे स्कूल में रहते है। स्कूल में शिक्षक की कमी है। सरकार व्यवस्था करेगी तभी संभव हो पाएगा। शिक्षा के प्रति बच्चों को काफी इच्छा है। 6वी तक की पढ़ाई के बाद बच्चे भटक जाते है। इसका विकल्प नहीं खोज पा रहे है अन्य स्कूल काफी दूर है जहां बच्चों के रहने की व्यवस्था नहीं है इस लिए उच्च शिक्षका के प्रति थोड़ी उदासीनता है। गांव के ग्राम प्रधान ने बताया कि हम हर रविवार को गांव सभा की बैठक करते है उसमें शिक्षा के सवाल को उठाते है सरकार हमारी नहीं सुनती है हम चाहते है तकनीकी शिक्षा के साथ अन्य शिक्षा के साथ बच्चों को जोड़ा जाए जो हमारे गांव में नहीं है। समय परिवर्त हो चुका है शिक्षा में भी परिवर्तन आ रहा है। लेकिन हमारे गांव में पुराने नियम कायदे से शिक्षा चल रही है इसमें परिवर्तन लाने की जरूरत है। </b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>आदिमजनजाति के स्कूल बेहाल-ः झारखण्ड में सरकार ने आदिमजनजाति के लिए उच्च विद्यालय 248 और मध्य विद्यालय 88 विधालय की स्थापन कर संचालित तो कर रही है पर इसकी बदहाली और गरीबी से उबरने के लिए कभी प्रयास नहीं किया है। शिक्षा अधिकार कानून के तहत इन स्कूलों में वो तमाम व्यवस्था बच्चे को नहीं मिल पा रही जिसका वे हकदार है। तकनीकी युग में हर स्कूल कम्पूटर से जहां शिक्षा ग्रहण कर रहे है वही आदिमजनजाति बिरहोर के बच्चे आज भी पुरानी पद्धति से शिक्षा लेने के लिए मजबूर है। सरकार ने लड़के और लड़कियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था ने दोनो के बीच दूर बना दिया है कस्तूरबा गांधी स्कूल में लडकियों के लिए शिक्षा का जो व्यवस्था है वह व्यवस्था आदिमजनजाति विद्यालय में लड़कों को नहीं मिल पा रहा है ऐसे स्थिति मे समाज में बराबरी की शिक्षा का सवाल पर प्रश्न चिन्ह लगता है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>बच्चों के षिक्षा के अधिकार को लेकर चल रहे हजार संस्था-ः इंटरनेट में शिक्षा के लिए काम करने वाली संस्थाओं के लम्बीकतार मौजूद है। कई फंडिग एजेन्सी भी शिक्षा के लिए झारखण्ड में काम करने के लिए फंड दिए गये है। ऐसे हजार संस्था है जिनके पास बच्चों के शिक्षा के लिए काम तो कर रही पर वह आदिमजनजाति के अन्तर्गत अति पीछड़ा वर्ग पीटीजी के लिए किसी संस्था ने ने अपना काम करना शुरू नहीं किया है। शिक्षा के अधिकार के लिए नये नारे के बीच इन समूदाय के बीच काॅलेज की शिक्षा से बेखबर है रांची में कल्याण विभाग छोड आदिमजनजाति के बच्चों के लिए कोई सुधने वाला नही है। राज्य सरकार और गैरसरकारी संस्थान ने आदिमजनजाति के शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण तरीके से काम नहीं किया जिससे आदिमजनजाति के बिरहोर समूदाय को शिक्षा के माध्यम से उच्च स्थान प्राप्त नहीं हो पा रहा है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>अनुसूचित जनजाति सरकार की उपयोजना में षिक्षा पर बजट कम</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>झारखण्ड में अनुसचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति उपयोजना की स्थिति वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 26 प्रतिशत है वही पीटीजी की आबादी सबसे कम होती जा रही है इसी जनगण्ना के अनुसार इस वर्ष 2014 15 के बजट में राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के विकास के लिए योजना बजट में से 26 प्रतिशत राशि आदिवासी समुदाय के लिए आंबटित किया जाना चाहिए</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>अनुसूचित जनजाति उपयोजना का बजट 2014-15 राशि</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<br /></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>2012-13 ए इ</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>1213-14 बी ई</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>1213-14 आर ई</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>1215-15आर</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>ई</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>क्ुल आबटित बजट</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>12438.010</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>19151.90</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>17949.370</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>26754.970</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>अनुसूचित जनजाति में आबंटित बजट</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>5217.800</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>8866.505</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>6816.258</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>7965.010</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>अनुसूचित जनजाति में आबंटित बजट प्रतिशत</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>41.95</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>46.30</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>37.97</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>29.77</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>क्ुल कितना बजट आंबटित होना चाहिए था जनसंख्या के अनुसार </b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>3233.8826</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>4979.494</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>4666.8362</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>6956.2922</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>स्रोत राज्य प्लान 2014 - 15 झारखण्ड सरकार</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>वितीय वर्ष 2014-15 का झारखण्ड सरकार द्वारा अनुमानित कुल प्लान बजट रू0 26754.97 करोड़ है। जिसके अंतर्गत अनुसूचित जनजाति उपयोजना के लिए रू0 7965.010 करोड आंबटित किये गए है जो की जनसंख्या अनुपात के अनुसार से कही अधिक है। विश्लेषण के अनुसार यह बात सामने आता है की वैसे तो आबंटन कही अधिक किया जाता है परन्तु इस आबटन का सीधा लाभ जन समुदाय को नहीं मिलता</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>शिक्षा विभाग में आंबटित बजट</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>1. झारखण्ड सरका ने प्राथमिक शिक्षा विभाग में टीएसपी तथा एस सी एस पी के अन्तर्गत सबसे बड़ा आबंटन बच्चों के लिए पोषक आहार योजना में किया है। जिसकी राशि टीएसपी में रू 82.56 करोड़ है तथा एस सी एस पी में रू0 32.64 है। यह योजना एक जरूरी एवं महत्वकांक्षी योजना है। जिसमें यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इसका सीधा लाभ आदिवासी और आदिमजनजाति के बच्चे तक पहंुचे।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>2. इसी प्रकार माध्यमिक शिक्षा विभाग में भी सामान्य श्रेणी की लड़कियों के लिए मुफत साईकिल वितरण करने हेतू उपयोजना के रू0 1.6 करोड़ आबंटित किये गए है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>3. उच्च शिक्षा विभाग मं भी सरकार ने उपयोजना के अंतर्गत रांची विश्वधिालय को रू0 8 करोड़ का अनुदान, दुमका विश्वद्यिालय को य0 8 करोड का अनुदान, कोल्हान को 7 करोड़ का अनुदान दिये गये जिसका सीधा लाभ आदिमजनजाति के समुदाय को नहीं हो पा रहा है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>कल्याण विभाग में झारखण्ड सरकार ने आदिवासी क्षत्रों में शिक्षा हेतु रू0 130 करोड़ का अनुदान और धारा 275 ए एडिसनल टी एस पी के अंतर्गत टीएसपी से रू0 100 करोड का अनुदान दिया है जो सराहनी है</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>टीएसपी से ही रू0 30 करोड की पोस्ट एंटैस छात्रवृति तथा रू0 30 करोड़ की प्राथमिकशाला छात्रवृति रू0 20 करोड की माध्यमिकशाला छात्रवृति रू0 15 करोड की उच्चशाला छात्रवृति का भी प्रावधान किया है यह सारी योजनाएं छा़ छात्राओं को सीधा लाभ पहुंचती है और नियमों के अनुसार है तथा उनके शिक्षा विभास ए भी सहायक है इसलिए इस प्रकार की योजनाओं में राशि बढ़ाई जानी चाहिए। और सरकार चाहती तो यह पैसा का उपयोग आदिमजनजाति के बिरहोर बच्चों के उच्च शिक्षा के साथ तकनीकी शिक्षा के लिए उपयोग कर सकती थी।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc; font-family: Kruti Dev 010;"><span style="font-size: 21.3333339691162px;"><b>इसके बाद भी आदिमजनजाति बिरहोर के बच्चे के शिक्षा का स्तर उठ नहीं पा रहा है कही न कही सरकार और गैरसरकारी संस्था से चुक हो रहीं है।</b></span></span></div>
<div align="center" class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-26391107223557527752015-05-10T23:40:00.002-07:002015-05-10T23:40:30.772-07:00भूमिहीन है बिरहोर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>आलोका सीएसडीएस फेलोसिप के तहत</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>भारत एक कल्याणकारी देश है यहां सबसे कमजोर वर्ग के लिए अलग से कल्याणकारी योजना चलाई जा रही है जिससे लिए करोडों का बजट है करोड़ों के बजट और हजारों के आबदी वाला बिरहोर विकसीत नही हो पा रहा है इसका अर्थ है कि कही न कही सरकार की इच्छा शक्ति की कमी ने बिरहोर समूदाय के जीवन स्तर को उठाने में सकक्ष्म नहीं हो पा रही वहीं 2005 में वन कानून पारित हुआ जिसके अन्तर्गत वन के अंदर रहने वाले समूदाय को वन पर पट्टा और अधिकार देने की पहल हूई वह भी अधूरा ही रह गया। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>झारखण्ड के 24 जिले वाला राज्य में 14 जिले में आदिमजनजाति बिरहोर निवास करते है। इनका निवास स्थान गांव और शहर ासे दूर जंगल होता है जहां वे अपने परिवार या अपने समूदाय के छोटे समूह के साथ रहते है। पहले तो वन का धना पन इनके जीविका का आधार था बदलते परिस्थति ने और जलवकायू परिवर्तन ने इन छोटे समूदाय के जीविका पर संकट खड़ा कर दिया। ऐसे स्थिति में आदिमजनजाति के जीवन कोरीडोर के अन्दर पलायन, परिवर्तन और श्रम के प्रति इनका आकर्षण बढ़ा बिरहोर स्वयं से रोजगार की तलाश करने और उत्पादन के साधन के साथ जूडते चले गये। बिहार एककृति राज्य के समय बिरहोर की स्थिति काफी खराब थी झारखण्ड अलग राज्य बनने के बाद इन समूदाय के लिए राज्य सरकार के आदिमजनजाति कल्याण विभाग ने थोड़ा बहुत काम करने का प्रयास किया जिसमें झारखण्ड आदिवासी कल्याण शोध संस्थान ने 2002-2003 में शोध झारखण्ड में रह रहे आदिमजनजाति के स्थिति और जरूरत के साथ उनकी आबादी को निकाला यही नहीं विभाग ने कई इलाकों में जैसे धनबाद और चतरा के कोरी गांव में बिरहोर को खेती के साथ जोड़ इंिदंरा आवास कृषि योग्य भूमि, सब्जी की खेती, वृद्व पेशन, सोलर सिस्टम के साथ अनपूर्ण योजना के साथ जोड़ा गया। जिससे बिरहोर की स्थिति में थोड़ा परिवर्तन आए वे स्थाई रूप से वही गांव में रह गये जहां वह धुमते हुए पहुंचे थे। उनका अपना देशज ज्ञान के आधार पर रस्सी बनाने, जाल बनाने की कला उन्हे है। इन कला को वों बेच कर अपने परिवार को चलाने में सहयोग करते है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>क्0 सं0 <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>प्रखण्ड का नाम<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>परिवार की संख्या <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आबादी <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>खेती योग्य भूमि<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>ब्ंाजर भूमि <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>अशिक्षा का दर <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>साक्षर दर</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>1<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>कोडरमा<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>198<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>766<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>10 स्क्यार<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>61 स्क्यार<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>635<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>131</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>2<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>धनबाद <span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>44<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>137<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>123<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>126<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>12</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>3<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बेकारो<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>47<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>297<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>50<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>280<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>17</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>4<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गिरिडीह<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>77<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>258<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>33<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>221<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>37</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>5<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>चतरा<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>415<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>1256<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>6<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हजारीबाग<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>580<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>1873<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>1602<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>271</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>7<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सराईकेला<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>24<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>76<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>76<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>8<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>पश्चिमी सिंहभ्ूाम<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>192<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>585<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>637<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>48</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>9<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सिमडेगा<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>35<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>174<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>05<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>05<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>140<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>34</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>10<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गुमला<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>141<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>11<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लोहरदगा<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>10<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>58<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>12<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>रांची<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>37<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>636<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>13<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>गढ़वा<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>159<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>14<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>लातेहार<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>94<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>00</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>टोटल बिरहोर की संख्या झारखण्ड में 6579 स्रोत झारखण्ड आदिवासी कल्याण शोध संस्थान कल्याण विभाग रांची</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>झारखण्ड के 14 जिले जहां आदिमजनजाति बिरहोर समूदाय का रह रहे वहां जंगल की स्थिति अब दैनिय हो गयी है। वहां बिरहोर समूदाय के पास स्वास्थ्य जैसी समस्या लगातार बरकरार बनी हुई है। जहां सरकार के स्वास्थ्य उपकेन्द्र का सही तरीके से काम नहीं कर पाता वही नये तरह के बीमारी के लिए दवा और इलाज पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा पा रहे है। वहीं बेरोगारी उनके जीवन की सबसे बड़ी समस्या है। आजादी के लम्बे समय के बाद भी ये समुदाय को बेरोजगारी का दंस झेल रहा। आज भारत में सबसे कमजोर कोई समाज है वह आदिमजनजाति समुदाय का समाज है जिनके पास अपने जीवन जीने के लिए कुछ भी नही,ं वह पूरी तरह प्राकृति और अपने श्रम के बल पर जिन्दा है। जिन प्रखण्डों में बिरहोर समूदाय के लिए सरकारी सहायता प्रदान कर कृषि के काम से जोड़ा है जिसमें चतरा के केारी, ईटखोरी बगोदर सिंहभूम हजारीबाग, रांची के इलाका में आत्म निर्भर बन रहे है। और उनका पलायन नहीं हो रहा है वे अब किसान बन कर उत्पादन के साथ जीवन यापन कर रहे है वही चतरा के चाड़म, गोपालपूर, लातेहार के सरजू इलाके में आज तक इंदिरा आवास योजना लागू नहीं हो पाई है। वहीं इन जिलोें में बिरहोर समुदाय पूरे साल भर में 1000 रूप्ये कमा पाते। घनबाद के तोपचांची प्रखण्ड में स्वास्थ्य और कुपोषण की स्थिति बरकरार है। वहां बिरहोर समुदाय के बीच शिक्षा का महत्व है यदि इन युवाओं को स्वास्थ्य संबध कार्य में लगाया जाए तो इससे बिरहोर के बीच स्वास्थ्य और कुपोषण की समस्या नहीं रहेगी। पूरे झारखण्ड में बिरहोर समूदाय भूमिहीन है इन्हें स्थाई रूप से भूमि के साथ जोड़ना चाहिए।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>बिरहोर ने समाधान के कई रास्ते बताये और उन्हे आशा है कि सरकार इसे पूरा करेगी। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऽ<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बिरहोर को वन भूमि पट्टा दे कर उन्हें सिचाई की व्यवस्था कर किसान बनाया जा सकता है।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऽ<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>भारत सरकार के हस्तकला विभाग के माध्यम से बिरहोर के बना रस्सी को बाजार में पहुंचाया जाए।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऽ<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>हर गांव में स्वास्थ्य उपकेन्द्र की स्थापन हो गांव में 15 दिन में एक दिन डा0 का आना जाना हो</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऽ<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बिरहोर टोली में आंगनबाड़ी केन्द्र की स्थापना। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऽ<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>इनके बीच गाय पालन मुर्गी पालन, बकरी पालन, आदि का योजना को लागू करना।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऽ<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>आय बढ़ाने के लिए वन उत्पादन के एवं लाह की प्रशिक्षण किया जाना।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऽ<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बालिकाओं की रक्षा की पर सोचना होगा</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऽ<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मनरेगा का काम बिरहोर मांग रहे है।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>ऐसी अनुसंशा 2002-2003 में सरकार के पास किये गये है जिसमें कई बिरहोर के जरूरत को ध्यान में रख कर तैयार किया गया। जिससे आज तक पूरा नहीं कर पाए।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b><br /></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-52980007129224082432015-05-10T23:37:00.005-07:002015-05-10T23:37:59.639-07:00लाडली योजना बिरहोर के पहूंच से दूर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b style="color: #cccccc;">आलोका सीएसडीएस के तहत </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>लाडली योजना और बिरहोर की आबादी- सरकार की जितने भी योजना और स्कीम है वह सभी समूदाय के लिए बना दिये जाते है। जिसमें एक योजना है लाडली योजना, के अन्तर्गत दो बच्चों सरकार की ओर रियायत दी जाएगी। यदि दो बच्चो से अधिक बच्चे जन्म लेने पर सरकारी लाभ से वंचित हो जाएगे। जिसमें पढ़ने से लेकर साइकिल वितरण तक शामिल किया गया है। लेकिन यह योजना आदिमजाति के किसी भी समूदाय पर लागू नहीं सरकार ने इनके लिए अलग से प्रावधान की व्यवस्था की पर वह भी लागू नहीं है। जिसमें आदिमजनजाति के दो से अधिक बच्चे होने के बावजूद वो इस योजना का लाभ उठा सकते है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>झारखण्ड के रांची, चतरा, हजारीबाग, गुमला, गिरिडीह आदि जिलों में बिरहोर की संख्या अधिक है यहां उनके परिवार में बच्चों की स्थिति अच्छी नहीं है ऐसी स्थिति में इस योजना का लाभ उन्हें मिलना चाहिए जबकि सरकार ने इस योजना को आदिमजनजाति तक पहुचाया ही नहीं जिससे आदिमजनजाति के बिरहोर के बच्चे इससे वंचित हो रहे है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>भारत एक कल्याणकारी राज्य है यहा वंचित समुदाय की रक्षा के लिए कई योजनाएं है। लेकिन झारखण्ड में रहने वाले आदिमजनजाति बिरहोर समूदाय सूदूर वन क्षेत्र के अन्दर रहते है जिनके पास शिक्षा का आभाव के साथ संचार और सरकारी योजनाओं जानकारी का अभाव है सरकार अपने मन से कभी भी योजना को लागू जैसे तैसे कर देती है। जिससे कई योजनाओं का लाभ बिरहोर समूदाय को नहीं मिल पाता है। ऐसे स्थिति कई गांव बिरहोर के सरकारी योजनाओं से के बारे में समझ नहीं रख पाते है।</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>बिरहोर की जनसंख्या 1871 से 1981 तक इनकी जनसंख्या 4377 हो गयी थी। जिसमें 11 जिलों के 50 प्रखंडों एवं लगभग 75 गांव में वे निवास करते थे। 1991 सेंसक्स में बिरोहर की आबादी 8038 देखा जाए तो उनके ग्रोथ रेट 45.54 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। लेकिन 2001 के सेंसक्स में बिरहोर की आबादी घट कर 7514 हो गयी। इसके घटने का सरकारी कारण मात्र एक है कि वे धुमकर है कही चले गये होगे। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>झारखण्ड में आदिवासियों की संख्या 72 से 27 प्रतिशत हो गयी है वही आदिमजनजाति में बिरहोर की संख्या घट रहे है उपर से सरकार के इस लाडली योजना के अन्तर्गत बिरहोर समुदाय के उपर लागू कर दिया जाए तब उनके अस्तित्व का खतरा मंडराने लगेंगा इसका कारण यह हैं की सरकारी योजना ही जंगल के क्षेत्र में ठीक से लागू नहीं हो पा रहा है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>सरकार के पास इन समूदाय के लिए प्रयाप्त योजना तो है पर वन क्षेत्र और नक्सल प्रभावित होने के कारण सरकार वन क्षेत्र में जाना नहीं चाहती। यही नहीं गांव में आवगमन का साधन नहीं होने पर बिरहोर ब्लाॅक कार्यालय नहीं पहुंच पाते है।दोनो के पास समस्या है और इसका समाधान के रास्ते दोनों के पास नहीं है। दोनों के पास इच्छाशक्ति की कमी है। सरकार योजना को लागू कराने नहीं जा पा रहीं है और बिरहोर अपने यथास्थिति में जीना चाहते है। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2049807106890379191.post-70511469526269038132015-05-10T23:35:00.004-07:002015-05-10T23:35:46.100-07:00झारखण्ड विधानसभा चुनाव में आदिमजनजाति बिरहोर समुदाय राजनीति पार्टी के एजेण्डा में नहीं है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b style="color: #cccccc;">आलोका, रांची सीएसडीएस/यूएनडीपी फेलोसिप के तहत</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cccccc;"><b>2014 का लोकसभा चुनाव की सरगर्मी झारखण्ड में बढ़ती जा रही है राजनीति का मिजाज बदलता जा रहा है। राजनीति पार्टी में फेरबदल के साथ चुनाव के एजेण्डा में आदिमजनजाति बिरहोर समूदाय के लिए स्थान नहीं है। रांची के बुण्डू, तमाड, बुडमू, जोन्हा, चतरा के सिमरिया,प्रतापपुर, लावालौग, गुमला के विशूनपूर के जेहनगूटआ के गांवों के दौरा कर वहां के आदिमजनजाति बिरहोर समूदाय से वर्तमान में चल रहे राजनीति स्थिति के बारे में जानने की कोशिश की गयी गयी जिसमें पाया कि गांव में लोग अपनी समस्याओं को लेकर बैठक तो करते है पर किसी राजनीति पार्टी को वोट देना है यह उनके बैठक के एजेण्डा में नहीं होता है। किसी राजनीति पार्टी ने कभी उनसे वोट नहीं मांगने आया इस लिए भी की किसी राजनीति पार्टी ने कभी उनके जीवन स्तर को उच्चा उठाने के लिए किसी प्रकार के प्रयास नहीं किये। उन गांवों में वोट के लिए लोग निकले है जहां शहर थोड़ा नजदीक है। दूर दराज के जंगल क्षेत्र में चुनाव का असर नहीं होता है। आदिमजनजाति को यह भी नहीं पता होता की किस राजनीति पार्टी का चुनाव चिन्ह क्या है। कमोबेस इन सारे स्थानों में वोट के लिए कभी कोई आया ही नहीं राजनीति पार्टी के लिए ये समूदाय जरूरी नहीं है स्कूल यदि नजदीक है और वोट के लिए बुथ बन गया तो भी किसी राजनीति पार्टी ने उसे कभी बुथ कमीटी में नहीं रखा। </b></span></div>
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<span style="color: #cccccc;"><b>इन बिरहोर समुदाय से यह जानने की कोशिश की गयी की राजनीति में रूचि क्यों नहीं है। वह भी नहीं जानते देखा जाए तो बिरहोर समूदाय में आज भी उनके अन्दर नेतत्व और अधिकार को समझते नहीं है इसलिए अपनी मांग को उठा नहीं पाते उनके पास कई समस्या है जिसे वे लोगो के पास बोल नहीं पाते है जिसमें भाषागत समस्या और नेतत्व विकास की कमी ने उसे अपनी जरूरत से दूर कर दिया है राजनीति वजूद नहीं है बिखरा हुआ परिवार है। छोटी आबादी के समूह होने के कारण आवाज विहिन है अपने आवाज को बुलद करने के लिए एकजूटता की कमी है। यदि आमिजनजाति के मृत्यू होने पर राजनीति होती है। मृत्यू के कारण किसी राजनीति पार्टी के सवाल नहीं बनता है। उनके निवास का स्थान पहाड़ और जंगल है जहां लोग जाना नहीं चाहते है। </b></span></div>
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<span style="color: #cccccc;"><b>बिरहोर के कई गांव है जहां 50 से 60 वोट है। जिसे किसी ने मांगने नहीं आए और न ये किसी पार्टी को देने गये। आज भी गांव में पुरूष वोट के बारे में जानकारी कम रखती तब वहां के महिलाओं और युवाओं की स्थिति और भी खराब है। चुनाव के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है।</b></span></div>
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